कोरोना के कारण नियमित स्वास्थ्य सेवाओं पर बुरा असर, लाखों बच्चों को नहीं लगे टीके

कोरोना वायरस महामारी के कारण देश में अन्य बीमारियों के लाखों मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाया है। कुछ महीनों से डॉक्टर भी इस मामले को लेकर चेता रहे हैं कि लाखों मरीजों को उनकी दवाएं, डायलिसीस और अहम चीजों से वंचित रहना पड़ रहा है। अब सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों से इस बात पर मुहर लग गई है कि कोरोना के कारण स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित रहीं, जिनका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
इस सप्ताह जारी किए आधिकारिक आंकड़ों में पता चला है कि मार्च से लेकर जून तक देश की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित रहीं, जिसके कारण ऑपरेशन कराने वाले मरीजों की संख्या में भारी कटौती का सामना करना पड़ा। इस साल फरवरी महीने में देशभर में 11.7 लाख छोटे और 4.23 लाख बड़े ऑपरेशन हुए थे। लॉकडाउन और दूसरी पाबंदियों के चलते जून में इनकी संख्या घटकर क्रमश: 4.24 लाख और 1.1 लाख रह गई।
नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) के तहत काम करने वाले हेल्थ मैनेजमेंट सिस्टम की तरफ से इस सप्ताह अप्रैल, मई और जून के आंकड़े जारी किए गए हैं। इसमें पता चला है कि मार्च से ही OPD मरीजों की संख्या कम होनी शुरू हो गई थी। कैंसर, मधुमेह, और दिमागी परेशानियों आदि का सामना कर रहे मरीजों अस्पताल नहीं आ रहे थे। फरवरी 2020 में मधुमेह के 30.51 लाख मरीज अस्पताल आए थे। जून में यह संख्या 16.09 लाख हो गई।
इसी तरह फरवरी में हायपरटेंशन के 36.06 लाख और दिमागी बीमारियों 5.29 लाख मरीज मरीज अस्पताल पहुंचे थे। जून में इनकी संख्या घटकर क्रमश: 19.08 लाख और 1.80 लाख रह गई। ऐसा ही हाल अन्य बीमारियों के मरीजों का है।
इसी दौरान अन्य संचारी रोगों के कारण अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भी तेजी से घटी है। इससे भी चिंता की बात यह है कि देश में सबसे ज्यादा जानें लेने वाली बीमारी ट्यूबकुलोसिस (आम भाषा में टीबी) के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या कम हुई है। फरवरी में टीबी के 22,500 मरीज अस्पतालों में भर्ती हुए थे, जबकि जून में यह संख्या महज 7,151 रह गई।
इन आंकड़ों में यह भी बताया गया है कि कैसे कोरोना वायरस महामारी के कारण टीकाकरण की प्रक्रिया पर असर पड़ा है। अप्रैल में टीबी से बचाव के लिए दी जाने वाली BCG वैक्सीन जितने बच्चों को मिली, उनकी संख्या जनवरी की तुलना में आधी थी। इसका मतलब यह हुआ कि अप्रैल में मुख्यत: लॉकडाउन और अन्य कारणों से लगभग 10 लाख बच्चों को BCG वैक्सीन नहीं दी गई। आगे चलकर यह परेशानी खड़ी कर सकती है।
इनके अलावा आंकड़ो में सामने आया है कि मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं तक इस साल मार्च और अप्रैल में पहले की तुलना में कम महिलाओं की पहुंच थी। इसी दौरान देश में सबसे कड़ा लॉकडाउन लागू था। ऐसा हो सकता है कि इनमें से कुछ ने कोरोना संक्रमण के डर के कारण इलेक्टिव सर्जरी को स्थगित किया हो, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि इससे जुड़ी अन्य छोटी-बड़ी सर्जरी भी बेहद कम हुई हैं।