किसी की अनुपस्थिति में SC/ST के लोगों पर की गई अपमानजनक टिप्पणी अपराध नहीं- सुप्रीम कोर्ट
क्या है खबर?
देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST एक्ट) को लेकर शुरू से विवाद चलता आ रहा है। देश में इसके दुरुपयोग के कई मामले सामने आ चुके हैं।
अब उत्तराखंड के ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि घर की चारदीवारी में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी अपराध की श्रेणी में नहीं आती है।
प्रकरण
उत्तराखंड निवासी युवक ने दी थी हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती
उत्तराखंड निवासी हितेश वर्मा के खिलाफ अनुसूचित जाति की महिला ने निर्माण कार्य विवाद में हुई कहासुनी को लेकर SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था।
पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उसके खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी। हितेश ने हाईकोर्ट में SC/ST एक्ट तहत उसके खिलाफ की गई कार्रवाई को अनुचित बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया।
इस पर हितेश ने सुप्रीम कोर्ट में आदेश को चुनौती दी थी।
आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दिया यह आदेश
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने महिला को अपनी जमीन पर निर्माण कार्य की अनुमति नहीं दी है।
इस तरह मामला पूरी तरह से दीवानी न्यायालय का है। ऐसे में जब तक पीड़ित के साथ दुर्व्यवहार, धमकी या उत्पीड़न न किया जाए तब तक इसे SC/ST एक्ट में शामिल नहीं किया जा सकता है।
विशेषतौर पर उस स्थिति में कि पीड़ित केवल अनुसूचित जाति से संबंध रखता है।
खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की चार्जशीट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के लिए सभी अपमान या धमकी SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं होते है। ऐसा तब ही होगा जब वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित हो।
पीठ ने यह भी कहा कि इसे अपराध तभी माना जाएगा जब अपमानजनक टिप्पणी सामाजिक तौर से सबके सामने अपमानित करने के इरादे से की गई हो।
इस मामले में आरोपों का कोई आधार नहीं है। इसलिए आरोपपत्र को खारिज किया जाता है।
जानकारी
याचिकाकर्ता के खिलाफ अन्य अपराधों में होगी कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता हितेश वर्मा के खिलाफ अन्य अपराधों में दाखिल FIR पर संबंधित कोर्ट कानून के मुताबिक सुनवाई करते रहेंगे। अदालत के इस फैसले का अन्य मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
टिप्पणी
जब किसी ने देखा या सुना नहीं तो यह अपमान कैसे?
पीठ ने अपने 2008 के एक फैसले का हवाला देते हुए सार्वजनिक अपमान और बंद कमरे में कही गई बात का फर्क बताया।
कोर्ट ने उस फैसले में स्पष्ट किया था कि जब अपमान चारदीवारी के बाहर, घर के लॉन या बालकनी में किया गया हो, जहां से लोगों ने देखा या सुना हो तब उसे अपराध माना जाएगा।
इस मामले में महिला ने बंद कमरे में अपमानित करने की बात कही है, जिसे किसी अन्य ने नहीं सुना।
जानकारी
गवाहों की मौजूदगी स्पष्ट नहीं कर पा रही पुलिस
पीठ ने कहा कि आरोप पत्र में कुछ गवाहों के नाम दिए गए हैं, लेकिन पुलिस यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि घटना के समय पर मौके पर मौजूद थे। ऐसे में हितेश के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत अपराध करना स्पष्ट नहीं है।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में SC/ST एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर लगाई थी रोक
बता दें कि 20 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट के दुरुपयोग के चलते इसमें मिलने वाली शिकायतों पर तुरंत FIR और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
इसके बाद पूरे देश में SC/ST के लोगों ने प्रदर्शन किया था। जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद संसद में कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून, 2018 लागू किया था। जिसमें शिकायत मिलने के बाद तुरंत FIR और गिरफ्तारी होगी।