पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को नहीं मिली नागरिकता, 18 महीनों में 1,500 वापस लौटे
क्या है खबर?
पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता नहीं मिलने से मायूस होकर वापस लौटना पड़ रहा है।
नागरिकता देने के लिए केंद्र सरकार के सख्त नियमों के चलते सैकड़ों शरणार्थियों को वापस पाकिस्तान लौटना पड़ा है।
हालत यह है कि पिछले 18 महीनों में नागरिकता नहीं मिलने के कारण 1,500 पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को वापस लौटना पड़ा है। इसमें केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों की ढिलाई प्रमुख कारण रही है।
वापसी
इस साल वापस लौटे 334 पाकिस्तानी हिंदू
सिमंत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि इस साल जुलाई तक 334 पाकिस्तानी हिंदुओं को वापस लौटना पड़ा है। इसी तरह 2021 से इस साल तक करीब 1,500 हिंदू शरणार्थी पाकिस्तान वापस लौट चुके हैं।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों की ओर से बरती गढ़ी ढिलाई के कारण पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों में काफी मायूसी है और उन्हें वापस लौटना पड़ा है।
पैसा
पैसों की कमी के कारण पूरी नहीं कर पा रहे आवश्यक औपचारिकताएं- सोढा
सोढा ने कहा, "नागरिकता के लिए आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए शरणार्थियों के पास धन या संसाधन नहीं हैं। इसी तरह पैसा खर्च करने पर भी नागरिकता की गारंटी नहीं है।"
उन्होंने कहा, "लगभग 25,000 पाकिस्तानी हिंदू भारतीय नागरिकता चाहते हैं। वो 10-15 साल से यहां हैं। साल 2004 और 2005 में नागरिकता अनुदान शिविरों में 13,000 शरणार्थियों को नागरिकता दी गई थी, लेकिन पिछले पांच सालों में महज 2000 को ही नागरिकता मिली है।"
नियम
क्या है नागरिकता हासिल के लिए आवश्यक नियम?
सोढा ने कहा कि पाकिस्तान से विस्थापित हिंदुओं को भारतीय नागरिकता पाने के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के नियमों के अनुसार, नागरिकता के लिए विस्थापित पाकिस्तानी हिंदुओं के पासपोर्ट का नवीनीकरण करना होता है और पाकिस्तान दूतावास से पासपोर्ट सरेंडर प्रमाण पत्र लाना होता है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान दूतावास पासपोर्ट नवीनीकरण और सरेंडर शुल्क 8,000 से 10,000 रुपये तक कर रखा है। यह राशि जुटाना शरणार्थियों के लिए बहुत मुश्किल है।
अपील
सोढा ने नियमों में ढील देने की मांग
सोढा ने सरकार से नए पासपोर्ट नियमों और भारतीय नागरिकता के लिए पाकिस्तानी पासपोर्ट को सरेंडर करने की बाध्यता को खत्म करने सहित नियमों में ढील देने की मांग की है।
बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2018 में ऑनलाइन नागरिकता आवेदन प्रक्रिया शुरू की थी।
इसके तहत सात राज्यों में 16 कलक्टरों को पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, पारसियों, जैनियों और बौद्धों को नागरिकता देने के लिए ऑनलाइन आवेदन लेने को कहा था।