भारत में परीक्षा की विफलता छीन रही जिंदगी, 3 साल में हजारों छात्रों ने की आत्महत्या
बदलते परिवेश और तनावपूर्ण जिंदगी ने लोगों के जीवन को बोझिल बना दिया है। इसके चलते देश में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि शिक्षा का बढ़ता बोझ भी आत्महत्या के कारणों में शामिल हो रहा है। परीक्षा में विफलता के कारण हर साल हजारों विद्यार्थी अपनी जिंदगी समाप्त कर रहे हैं। यही कारण है कि 3 सालों में देश में 5,800 से अधिक विद्यार्थियों ने आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठाया है।
छात्रों ने की सबसे अधिक आत्महत्या
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2020 से 2022 तक 4,88,509 लोगों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या की है। इनमें से 7.98 प्रतिशत यानी 38,983 आत्महत्या विद्यार्थियों ने की थी। इनमें से 5,848 विद्यार्थियों ने परीक्षा में विफलता के कारण अपनी जिंदगी समाप्त कर ली। इन विद्यार्थियों में 3,275 छात्र और 2,573 छात्राएं शामिल रही हैं। इस रिपोर्ट में भारत की नई शिक्षा नीति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
18 साल से कम उम्र के 3,000 से अधिक बच्चों ने आत्महत्या
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इन तीन सालों में परीक्षा की विफलता के कारण आत्महत्या करने वाले कुछ छात्रों में से 3,161 की उम्र तो 18 साल से कम की रही है। इसी तरह 2,732 छात्रों की उम्र 18-30 साल के बीच रही है। इससे स्पष्ट होता है कि छात्रों में शुरुआत से ही परीक्षा का दबाव शुरू हो जाता है और वह इसमें असफलता मिलने पर अपनी जिंदगी को खत्म करने जैसा कदम उठाने से भी नहीं हिचकते हैं।
परीक्षा के विफलता के कारण 2022 में हुई सर्वाधिक आत्महत्याएं
परीक्षा में विफलता के कारण सबसे ज्यादा आत्महत्या साल 2022 में हुई हैं। इस साल 2,095 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की, जिसमें 1,137 छात्र और 958 छात्राएं थीं। इसी तरह साल 2020 में इसी कारण से कुल 2,080 विद्यार्थियों ने अपनी जिंदगी समाप्त की थी, जिसमें 1,147 छात्र और 933 छात्राएं शामिल रही हैं। इनके अलावा साल 2021 में यह आंकड़ा कुछ हद तक कम होकर 1,673 रहा था, जिसमें 991 छात्र और 682 छात्राएं शामिल थीं।
एशियाई देशों में अधिक सामने आए इस तरह के मामले
एक अध्ययन के अनुसार, पश्चिमी देशों की तुलना में एशियाई देशों में परीक्षा में असफल होने के कारण आत्महत्या के मामले अधिक सामने आए हैं। एशिया में शैक्षणिक उत्कृष्टता को उच्च सम्मान में रखा जाता है। यही कारण है कि कोरिया में कुल आत्महत्याओं का 12.9 प्रतिशत, ईरान में 5 और बांग्लादेश में 25 प्रतिशत छात्रों ने परीक्षा में असफलता के कारण आत्महत्या जैसे कदम उठाए हैं। ऐसे में यह बहुत ही चिंतनीय विषय बन गया है।
परीक्षा में विफलता के बाद आत्महत्या करने के पीछे हैं कई कारक
परीक्षा में विफलता के कारण आत्महत्या में कई कारक भूमिका निभाते हैं। इनमें व्यक्तिगत कारकों में कम आत्मसम्मान, उच्च अपेक्षा, तनाव, शारीरिक या यौन शोषण का इतिहास और बौद्धिक कमजोरी प्रमुख हैं। इसी तरह सामाजिक कारकों में अति-महत्वाकांक्षी माता-पिता, कमजोर पारीवारिक पृष्ठभूमि, आलोचनाएं, साथियों के साथ तुलना, परिवार में समर्थन की कमी, शराब, हिंसा, परिवार में मनोवैज्ञानिक और आर्थिक समस्याएं जैसे कारण की छात्रों को इस तरह के आत्मघाती कदम उठाने के लिए दुष्प्रेरित करते हैं।
प्रवेश परीक्षा में असफलता ने बढ़ाए आत्महत्या का मामले
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में आत्महत्या रोकथाम केंद्र के रूप में काम ने वाले गैर सरकारी संगठन (NGO) 'स्नेहा' का कहना है कि नियमित शिक्षा में पूरक परीक्षा की सुविधा शुरू किए जाने के बाद आत्महत्या के मामलों में कमी आई थी। हालांकि, वर्तमान में तेजी से बदलती शिक्षा में विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा में असफलता ने आत्महत्या के मामलों को फिर से बढ़ा दिया है। यह सबसे चिंताजनक स्थिति बन गई है।
NSPS के बाद भी ज्यादा नहीं बदले हैं हालात
'स्नेहा' के अनुसार, केंद्र सरकार ने 21 नवंबर, 2022 को अपनी राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS) शुरू की थी, लेकिन उसके बाद भी परीक्षा में विफलता के कारण आत्महत्या के मामलों में अपेक्षित कमी नहीं आई है। इसका कारण कि लाखों छात्र हर साल व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए परीक्षा देते हैं, लेकिन सीटें सीमित होने के कारण सभी का नंबर नहीं आता है। ऐसे में परीक्षा की असफलता से छात्र आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं।
कोटा में पिछले साल 29 छात्रों ने की आत्महत्या
राजस्थान के कोटा में हर साल 300 से अधिक कोचिंग सेंटरों में दाखिला लेने के लिए 2 लाख से अधिक छात्र पहुंचते हैं, लेकिन सफल कुछ ही होते हैं। इसी असफलता के कारण में कोटा में 2023 में 29 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली।
नई शिक्षा नीति भी पूरी तरह से नहीं हो पा रही सार्थक
केंद्र सरकार ने एक नई शिक्षा नीति पेश की है, जिसका उद्देश्य शैक्षिक प्रणाली में सुधार करना और एक प्रगतिशील, लचीली और समावेशी शिक्षा प्रणाली की दृष्टि से स्कूल और कॉलेज दोनों शिक्षा को अधिक समग्र और बहु-विषयक बनाना है। हालांकि, मौत के आंकड़ों से साबित होता है कि सरकार के प्रयास कागज पर तो मजबूत हैं, लेकिन वास्तविकता में उनके सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे में सरकार को अब कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।
यहां से लें सहायता
अगर आप या आपके जानने वाले किसी भी प्रकार के तनाव से गुजर रहे हैं तो आप समाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के हेल्पलाइन नंबर 1800-599-0019 या आसरा NGO के हेल्पलाइन नंबर 91-22-27546669 पर संपर्क कर सकते हैं। यहां से आपको अपेक्षित मदद मिल सकेगी।