लॉकडाउन में 65 प्रतिशत बुजुर्गों की आजीविका हुई प्रभावित, 42 प्रतिशत का बिगड़ा स्वास्थ्य- स्टडी
देश में लागू किए गए लॉकडाउन ने जहां प्रवासी मजदूरों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था, वहीं बुजुर्गों पर भी इसकी खासी मार पड़ी है। लॉकडाउन में देश के 65 प्रतिशत बुजुर्गों की आजीविका प्रभावित हुई थी। जिसमें उन्हें रोजगार नहीं मिला या फिर उनके वेतन में बड़ी कटौती हुई। हेल्पएज इंडिया द्वारा लॉकडाउन में बुजुर्गों की स्थिति जानने के लिए 'द एल्डर स्टोरी: ग्राउंड रियलिटी ड्यूरिंग कोविड 19' नाम से किए गए सर्वे में इसका खुलासा हुआ है।
5,099 बुजुर्गों पर किया गया था सर्वे
हेल्पएज इंडिया ने सर्वे में 17 राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेशों के 5,099 बुजुर्गों को शामिल किया था। जिसमें उनकी आय और स्वास्थ्य आदि पर सवाल किए गए थे। इसके परिणामों को सोमवार को 'विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस' पर जारी किया गया है।
60-69 आयु वर्ग के बुजुर्गों की आय हुई सबसे ज्यादा प्रभावित
सर्वे के अनुसार लॉकडाउन में 65 प्रतिशत बुजुर्गों की आजीविका प्रभावित हुई थी। इनमें सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत बुजुर्ग 60-69 वर्ष की आयु वर्ग के थे। इसी प्रकार 28 प्रतिशत बुजुर्ग 70-79 वर्ष आयु वर्ग यानी अधिक वृद्ध और पांच प्रतिशत बुजुर्ग 80 साल से अधिक आयु वर्ग यानी सबसे अधिक वृद्ध की श्रेणी के थे। इनमें से 71 प्रतिशत बुजुर्गों पर परिवार की जिम्मेदारी थी। इनमें 61 प्रतिशत ग्रामीण और 39 प्रतिशत बुजुर्ग शहरी क्षेत्रों के थे।
लॉकडाउन के दौरान 42 प्रतिशत बुजुर्गों की बिगड़ी तबीयत
सर्वे में सामने आया है कि लॉकडाउन के अवधि में 42 प्रतिशत बुजुर्गों की तबीयत बिगड़ी थीं। इनमें 61 प्रतिशत बुजुर्ग 60-69 वर्ष की आयु वर्ग, 31 प्रतिशत 70-79 वर्ष आयु वर्ग और 8 प्रतिशत 80 से अधिक आयु वर्ग के थे। चौंकाने वाली बात यह है कि इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र के 64 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र के 36 प्रतिशत बुजुर्गों की तबीयत बिगड़ी थी। इसका कारण था कि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा कम होती है।
78 प्रतिशत बुजुर्गों को आवश्यक सेवा और वस्तुओं तक पहुंचने में हुई परेशानी
सर्वे के अनुसार लॉकडाउन में 78 प्रतिशत बुजुर्गों को आवश्यक सेवा और वस्तुओं तक पहुंचने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इनमें सबसे ज्यादा परेशानी भोजन, किराने का सामान और दवाइयां हासिल करने में हुई। इसके बाद घरेलू मदद और बैंकिंग सेवाओं में परेशानी झेलनी पड़ी। सबसे ज्यादा 84 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र और शहरी क्षेत्र के 71 प्रतिशत बुजुर्गों को इन आवश्यक सेवाओं तक पहुंचने में मुसीबतें झेलनी पड़ी थीं।
61 प्रतिशत बुजुर्गों ने महसूस किया अकेलापन
सर्वे में यह भी सामने आया कि लॉकडाउन के दौरान 61 प्रतिशत बुजुर्गों ने घर में अकेलापन और सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस किया था। इनमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बुजुर्गों की संख्या बराबर यानी 50-50 प्रतिशत रही है।
बुजुर्गों को करना पड़ा त्रिस्तरीय संघर्ष- प्रसाद
हेल्पएज इंडिया के मुख्य परिचालन अधिकारी (COO) रोहित प्रसाद ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान बुजुर्गों को त्रिस्तरीय संघर्ष यानी उच्च स्वास्थ्य परेशानी, समाज से दूरी और आय की कमी का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि देश के अधिकांश बुजुर्गों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम करना पड़ता है। इसमें अधिकांश अकुशल श्रमिक हैं, जो असंगठित क्षेत्र से हैं। वह जीने के लिए नियमित मजदूरी करते हैं।
बुजुर्गों के लिए विशेष कार्य योजना की आवश्यकता
COO प्रसाद ने बताया कि देश में बुजुर्गों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि उन्हें सबसे अधिक मदद की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बुजुर्गों के उत्थान के लिए एक विशेष और समन्वित कार्य योजना लागू की जानी चाहिए।