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    सुप्रीम कोर्ट की राज्यों को फटकार, कहा- मरीजों से हो रहा जानवरों से भी बुरा बर्ताव

    सुप्रीम कोर्ट की राज्यों को फटकार, कहा- मरीजों से हो रहा जानवरों से भी बुरा बर्ताव

    लेखन भारत शर्मा
    Jun 12, 2020
    03:24 pm

    क्या है खबर?

    अस्पतालों में मरीजों से हो रहे रहे दुर्व्यवहार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ी नाराजगी जताई है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के अस्पतालों में कोरोना मरीजों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है।

    जस्टिस एमआर शाह, एसके कौल और अशोक भूषण की पीठ ने सभी राज्यों के अस्पतालों की स्थिति पर सवाल खड़े किए और दिल्ली में शवों की अदला-बदली और जांच नहीं होने पर खासी नाराजगी जताई।

    सवाल

    सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में जांच नहीं किए जाने का कारण पूछा

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दिल्ली में कोरोना जांच की धीमी रफ्तार पर संज्ञान लेते कहा कि दिल्ली देश में कोरोना का हॉटस्पॉट बना हुआ है और प्रतिदिन संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है। इसके बाद भी यहां जांच कम की जा रही है।

    पीठ ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि जब चेन्नई और मुंबई में प्रतिदिन 16,000 से 17,000 लोगों की जांच की जा रही है तो फिर दिल्ली में 5,000-7,000 जांच ही क्यों की जा रही है।

    जानकारी

    जांच में शिथिलता नहीं बरत सकती है राज्य सरकार- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और अहमदाबाद में प्रतिदिन 10,000 से अधिक मामले आ रहे हैं। इसके बाद भी जांच कैसे कम कर सकते हैं। जांच से बचना समाधान नहीं है। अधिक जांच करना सरकारों की जिम्मेदारी है।

    विवरण

    तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दी यह दलील

    सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि अनुच्छेद 21 एक "सभ्य प्रस्थान" का अधिकार देता है।

    इस पर जस्टिस शाह ने कहा कि कुछ जगह शव कचरे के डिब्बे में मिले हैं। उनके साथ जानवरों से भी बदतर बर्ताव किया जा रहा है!

    इस पर मेहता ने बताया कि कुछ अस्पतालों में शवों के बगल में मरीजों का इलाजा किया जा रहा है, तो कोर्ट ने पूछा कि इस पर केंद्र ने क्या किया।

    स्थिति

    अस्पतालों की लॉबी में शवों को लावारिश छोड़ा- सुप्री कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इंडिया टीवी की 10 जून की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि शवों को न केवल वार्ड के अंदर रखा गया था, बल्कि लॉबी और वेटिंग एरिया में भी लावारिश छोड़ दिया गया था।

    रिपोर्ट से पता चला है कि कोरोना समर्पित 200 बेड वाले लोक नायक अस्पताल में कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट तक नहीं दिया जा रहा है।

    जस्टिस भूषण ने खुलासा किया कि अस्पताल में मरीजों की हालत बदतर हो रही है।

    बेड

    अस्पतालों में बेड उपलब्ध होने के बाद भी मरीजों को नहीं मिल रहे- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अस्पतालों में बेड खाली होने के बाद भी मरीजों को हासिल करने के लिए परेशान होना पड़ रहा है। राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि अस्पतालों में आवश्यकता वाले मरीजों को बेड उपलब्ध कराए जाएं।

    पीठ ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों ने रोगियों की दयनीय स्थिति को उजागर किया है। इससे अदालत को मजबूरन इस पर संज्ञान लेना पड़ा है। अदालत ने केंद्र सरकार को जांच प्रक्रिया को सरल बनाने का भी आदेश दिया है।

    शव

    अस्पताल द्वारा रिश्तेदारों को मृतक की सूचना नहीं देना बहुत दुखद- सुप्रीम कोर्ट

    अस्पतालों में कोरोना मरीजों के शवों के प्रबंधन पर नाराजगी जताते हुए जस्टिस भूषण ने कहा केंद्र सरकार की ओर 15 मार्च को जारी किए गए आदेशों का किसी ने पालन नहीं किया है।

    ऐसे उदाहरण हैं जब अस्पताल द्वारा मौत की सूचना तक नहीं देने से मृतक के परिजन अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए। यह बहुत दुखद स्थिति है।

    इस मामले में दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सरकार को को नोटिस जारी किया गया है।

    नोटिस

    लोक नायक अस्पताल को जारी किया अलग नोटिस

    सुप्रीम कोर्ट ने लोक नायक अस्पताल और केंद्र सरकार को अलग-अलग नोटिस जारी किए। सुप्री कोर्ट ने कहा कि नोटिस आज ही जारी किया जाए और संबंधित राज्य के मुख्य सचिव या राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सचिव के हस्ताक्षर के तहत जवाब दाखिल किया जाए।

    इस पर दिल्ली के प्रतिनिधि ASG संजय जैन ने कहा कि उन्होंने नोटिस को स्वीकार कर लिया है। इस पर पीठ ने कहा कि आपको इससे कहीं अधिक करना होगा।

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