जानिए गलवान में चीनी सैनिकों के साथ लोहा लेने वाली बिहार रेजिमेंट का इतिहास
क्या है खबर?
लद्दाख में गत सोमवार रात को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में बिहार रेजीमेंट 16 केकमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू, जेसीओ कुंदन कुमार झा सहित 12 जवान शहीद हो गए।
शहीद संतोष गलवन घाटी में अपनी बटालियन के जवानों के साथ चीनी सेना द्वारा लगाए गए टैंट को हटवाने गए थे। उसी दौरान हिंसक झड़प हो गई।
यहां हम आपको बिहार रेजिमेंट और उसके शौर्य तथा पराक्रम का इतिहास बताएंगे।
स्थापना
साल 1941 में हुई थी बिहार रेजिमेंट की स्थापना
बिहार रेजिमेंट की स्थापना 15 सिंतबर, 1941 को हुई थी। इसके पहले कमांडिग ऑफिसर कैप्टन हबीबुल्लाह खान खटक थे। इस रेजिमेंट ने द्वितीय विश्वयुद्ध में अपना बेजोड़ पराक्रम दिखाया था।
इस युद्ध में अंग्रेजों ने इसी जवानों के ताकत और वीरता का लोहा मान लिया था। वर्तमान में बिहार रेजिमेंट अपनी 20 बटालियन, चार राष्ट्रीय राइफल एवं दो टोरिटोरियल आर्मी बटालियन के साथ दिलो जान से देश की सेवा में लगी हुई है।
जानकारी
बिहार ही नहीं बल्कि सभी जगह के सैनिकों की होती है रेजिमेंट में तैनाती
यहां हम स्पष्ट कर दें कि बिहार रेजिमेंट में केवल बिहार के लोगों को ही नियुक्ति नहीं दी जाती है। ऐतिहासिक रूप से इस रेजिमेंट की शुरुआत बिहार के जिलों से होने के कारण इसका नाम 'बिहार रेजिमेंट' रखा गया है।
प्रभाव
भारत-पाक युद्ध में भी दिखाया था बेजोड़ दमखम
बिहार रेजीमेंट की 10 वीं बटालियन को 1971 में भारत-पाक युद्ध में अगरतला के अखौड़ा पर कब्जा करने का आदेश मिला था।
पाकिस्तानी सेना टैंक व अन्य हथियारों से लैस थी। इसके बाद भी डेल्टा कंपनी ने मेजर केसी कटोच के नेतृत्व में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया और उनके बंकर नष्ट करते हुए अखौड़ा पर कब्जा कर लिया।
रेजीमेंट को युद्ध में वीरता के लिए अखौड़ा थियेटर सम्मान से सम्मानित किया गया था।
जानकारी
पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर किया मजबूर
साल 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना से संघर्ष के दौरान बिहार रेजिमेंट के जवानों ने गोलियां कम पड़ने पर दुश्मन को संगीनों से ही मार दिया था। उस दौरान पाकिस्तान के 96 हजार सैनिकों ने मजबूर होकर आत्मसमर्पण कर दिया था।
करगिल
करगिल युद्ध में किए दुश्मनों के दांत खट्टे
साल 1999 में करगिल युद्ध के दौरान बिहार रेजीमेंट के जवानों ने आपरेशन विजय में विपरीत परिस्थिति में भी पाकिस्तानी सैनिकों के दांत खट्टे करते हुए जुबार हिल व थारू पर कब्जा जमा लिया था।
करगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी को महावीर चक्र और शहीद मेजर मरियप्पन सरावनन को वीर चक्र से नवाज़ा गया था।
पटना के गांधी मैदान के पास कारगिल चौक पर शहीद हुए 18 जांबाजों की याद में स्मारक है।
कुर्बानी
उरी हमले में रेजिमेंट के 15 जवानों ने दी थी कुर्बानी
बिहार रेजिमेंट का नाम 18 सितंबर, 2016 को हुए उरी हमले में बड़ी वीरता के साथ लिया जाता है।
जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुकाबले में इस रेजीमेंट के 15 जवानों ने कुर्बानी दी थी।
उरी सेक्टर स्थित भारतीय सेना के कैंप पर हुए हमले में कुल 17 जवान शहीद हुए थे। जिसमें सबसे ज्यादा 15 बिहार रेजिमेंट के थे। इनमें भी छह बिहार मूल के थे। ऐसे में यह रेजिमेंट कुर्बानी देने में भी अव्वल है।
मुंबई हमला
मुंबई हमले में भी मेजर उन्नीकृष्णन ने दी थी शहादत
बिहार रेजिमेंट के जवानों ने सीमा पर दूसरे देशों के खिलाफ ही नहीं बल्कि घर में हुए आतंकी हमलों में भी आतंकियों से जमकर लोहा लिया है।
साल 2008 में जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ था, तब NSG के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ऑपरेशन ब्लैक टॉरनैडो में शहीद हो गए थे।
दरअसल, मेजर उन्नीकृष्णन बिहार रेजीमेंट से ही थे और उन्हें प्रतिनियुक्ति पर NSG में भेजा गया था। इसमें उन्होंने जमकर अपना पराक्रम दिखाया था।
जानकारी
वीरता और पराक्रम के चलते बिहार रेजिमेंट को मिल चुके हैं ये सम्मान
बता दें कि बिहार रेजिमेंट के नाम आजादी से पहले पांच मिलिट्री क्रॉस और नौ मिलिट्री मेडल और आज़ादी के बाद से अब तक सात अशोक चक्र, नौ महावीर चक्र, 21 कीर्ति चक्र, 70 शौर्य पदक सहित तीन-तीन युद्ध और थियेटर सम्मान मिले हैं।
मोटो
पूरी सेना में प्रसिद्ध है बिहार रेजिमेंट का मोटो और वॉर क्राय
बता दें कि बिहार रेजिमेंट का मोटो शुरू से ही 'करम ही धरम' रहा है। इसके मुताबिक मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को ही रेजिमेंट के जवान अपना कर्म और धर्म मानते हैं।
वॉर क्राय के रूप में बिहार रेजिमेंट के वाक्य हैं 'जय बजरंग बली' और 'बिरसा मुंडा की जय'। इन वाक्यों से जवानों में जोश भर जाता है।
इसी रेजिमेंट ने संयुक्त राष्ट्र के शांति ऑपरेशनों के तहत सोमालिया और कोंगो में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
तैनाती
इसलिए दुर्गम इलाकों में की जाती है बिहार रेजिमेंट की तैनाती
सेना में कहा जाता है कि बिहार रेजीमेंट के जवान बहादुर और किसी भी परिस्थिति में ढलने की क्षमता रखते हैं।
यही कारण है कि इस रेजिमेंट के जवानों की तैनाती दुर्गम और जटिल परिस्थितियों वाले इलाकों में की जाती रही है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गलवन घाटी और कुछ अन्य दुर्गम स्थानों पर रेजिमेंट के ही जवान तैनात हैं।
इस रेजीमेंट केंद्र पहले आगरा से गया और बाद में 1949 में दानापुर स्थानांतरित कर दिया गया था।
जानकारी
बिहार रेजीमेंट की ही देन है देश का प्रतीक अशोक स्तंभ
देश का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ बिहार रेजीमेंट की ही देन है। बिहार रेजीमेंट ने इसे अपने चिह्न के रूप में चुना था। रेजीमेंट की कैप पर आज भी यही चिह्न है। बाद में भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के रूप में लिया।
16वीं बटालियन
साल 1985 में हुआ था बिहार रेजिमेंट की 16वीं बटालियन का गठन
गलवन घाटी में शहादत देने वाले वीर बिहार रेजीमेंट की 16वीं बटालियन के थे। इस बटालियन का गठन 11 फरवरी, 1985 को एसडी सलोखे के नेतृत्व में दानापुर में किया गया था।
इस बटालियन ने 1991-1993 में पूर्वी सेक्टर में ऑपरेशन राइनो में भाग लेकर सराहनीय प्रदर्शन किया।
इसी तरह 2001 में इस बटालियन को गुजरात में आये भूकंप में सहायता के लिए लगाया गया। इस बटालियन को 2005 में तीन सेना मेडल मिले थे।