
कौन हैं भारत के डॉ कोटनिस जिन्हें चीन में नायक की तरह पूजा जाता है?
क्या है खबर?
चीनी राजदूत सन वेडोंग ने मंगलवार को कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में सहयोग के लिए भारत को धन्यवाद कहा।
उन्होंने कहा, "इस मुश्किल समय में मैं भारतीय दोस्तों की दयालुता से अभिभूत हूं। ये मुझे उस समय की याद दिलाता है जब डॉ कोटनिस ने कई जानें बचाईं और चीनी लोगों की आजादी में महान योगदान दिया।"
जिन डॉ कोटनिस का उन्होंने जिक्र किया, वे कौन हैं और क्यों उन्हें चीन में पूज्यनीय माना जाता है, आइए जानते हैं।
शुरूआती जीवन
महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था डॉ कोटनिस का जन्म
डॉ कोटनिस का पूरा नाम द्वारकानाथ शांताराम कोटनिस था।
उनका जन्म 10 अक्टूबर, 1910 को महाराष्ट्र के सोलापुर में रहा था।
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपनी सेवाएं देने के मकसद से उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से मेडिसिन की पढ़ाई की।
1938 में जब कोटनिस ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद पोस्ट-ग्रेजुएशन की तैयारी कर रहे थे, तब उन्हें चीन जाने का मौका मिला और उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।
जानकारी
जापान के हमले के बाद चीन ने मांगी थी मेडकिल मदद
दरअसल, 1937 में जापान ने चीन पर हमला कर दिया और दोनों देशों के बीच युद्ध चल रहा था। इसी समय चीनी क्रांतिकारी जनरल झू दे ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर सैनिकों की जान बचाने के लिए डॉक्टर भेजने का अनुरोध किया था।
भारतीय चिकित्सा मिशन
चीन गई पांच डॉक्टरों की टीम में शामिल थे कोटनिस
पत्र मिलने के बाद नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने पांच डॉक्टरों का एक 'भारतीय चिकित्सा मिशन' चीन भेजा।
इस मिशन में कोटनिस भी शामिल थे जिन्होंने चीन के बारे में बहुत अधिक जानकारी न होने के बावजूद जाने का साहसी फैसला लिया।
चीनी सैनिकों की मदद के लिए एशिया के किसी देश द्वारा भेजी गई ये पहली मेडिकल टीम थी और साम्यवादी चीन के संस्थापक माओ जेडोंग और जनरल झू दे ने खुद चीन में उनका स्वागत किया।
कार्य
हर मुसीबत झेलकर अपना काम करते रहे कोटनिस और उनके साथी डॉक्टर
चीन पहुंचने के बाद कोटनिस और उनके साथी डॉक्टरों ने घायल सैनिकों का इलाज किया।
इस दौरान उनका काम बेहत तनावपूर्ण रहा और रोजाना लगभग 800 सैनिक इलाज के लिए आते थे।
कई बार तो डॉ कोटनिस ने बिना पलक झपकाए लगातार 72 घंटे तक कार्य किया।
लगातार कार्य करने का कोटनिस और उनके साथियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ा, लेकिन हर मुसीबत को झेलकर वे अपना कार्य करते रहे।
जानकारी
कोटनिस को मिला अच्छे कार्य का इनाम
उत्तरी चीन में अपनी सेवाएं देने के बाद 1939 में कोटनिस माओ के नेतृत्व वाली सैन्य टुकड़ी से जुड़ गए और दिन-रात उसके घायल सैनिकों का इलाज किया। जल्द ही उन्हें बेथून अंतरराष्ट्रीय शांति अस्पताल का निदेशक नियुक्त कर दिया गया।
प्यार और शादी
अस्पताल की नर्स से हुआ कोटनिस को प्यार
अपना काम समाप्त होने के बाद बाकी डॉक्टर को भारत लौट आए, लेकिन कोटनिस ने चीन में और अधिक समय रुकने का फैसला किया।
दरअसल, उन्हें बेथून अंतरराष्ट्रीय शांति अस्पताल की नर्स गुओ क्विंगलान से प्यार हो गया था।
कोटनिस और गुओ ने दिसंबर, 1941 में शादी कर ली और अगले साल अगस्त में दोनों के एक बेटा हुआ।
उन्होंने अपने बेटे का नाम यिनहुआ रखा जिसमें 'यिन' का शाब्दिक अर्थ भारत और 'हुआ' का अर्थ चीन है।
मौत
महज 32 साल की उम्र में हुई कोटनिस की मौत
कोटनिस चीनी लोगों में काफी घुल-मिल गए थे, लेकिन उनका ये सफर जल्द ही समाप्त हो गया और 9 दिसंबर, 1942 को महज 32 साल की उम्र में मिर्गी का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई। उनकी मौत पर पूरे चीन ने शोक जताया।
कोटनिस की मौत पर जेडोंग ने कहा था, "सेना ने एक मदद करने वाला हाथ खो दिया है, देश ने एक दोस्त खो दिया है। हम उनकी अंतरराष्ट्रीय भावनाओं को हमेशा दिमाग में रखेंगे।"
परिवार
1967 में बेटे और 2012 में पत्नी का हुआ निधन
कोटनिस की मौत के बाद उनके बेटे यिनहुआ ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने का फैसला किया और मेडिकल की शिक्षा ली। लेकिन वे अपने पिता के कदमों पर चल पाते, उससे पहले ही 1967 में उनका देहांत हो गया।
यिनहुआ मेडिकल कॉलेज से ग्रुजेएट होने वाले थे और मेडिकल लापरवाही को उनकी मौत का कारण बताया गया।
अपने पति और बेटे को खोने के बाद गुओ 2012 में दुनिया छोड़ने तक अकेली रहीं।
जानकारी
कोटनिस के परिजनों से मिलने मुंबई आती थीं गुओ
अपनी मौत से पहले गुओ कई बार मुंबई में कोटनिस के परिजनों से मिलने आईं और उन्हें भारत के लोग बेहद पसंद आए। भारत-चीन के कई राजनयिक कार्यक्रमों में भी वे अतिथि रहीं, जिनमें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए आयोजित कार्यक्रम भी शामिल है।
यादें
आज भी चीन के लोगों की यादों में जिंदा हैं कोटनिस
कोटनिस की मौत के दशकों बाद आज भी चीन के लोगों के जहन में उनकी यादें ताजा हैं और उन्हें एक नायक के तौर पर पूजा जाता है।
हुबेई प्रांत में उनका एक स्मारक बनाया गया है जहां उनकी प्रतिमा लगी हुई है।
उनकी याद में चीन ने डाक टिकट भी जारी किए हुए हैं।
यही नहीं, 2009 में पिछली सदी में चीन के विदेशी मित्रों की सूची में कोटनिस को शीर्ष में रखा गया था।
साझा विरासत
भारत दौरे के समय कोटनिस के परिजनों से मिलना नहीं भूलते चीनी नेता
कोटनिस के प्रति चीन की श्रद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत दौरे पर आए कई चीनी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तमाम व्यस्तताओं के बावजूद मुंबई में कोटनिस के परिजनों से मिलना नहीं भूलते।
मौजूदा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनसे पहले राष्ट्रपति रहे हू जिंताओ भी मुंबई जाकर कोटनिस के परिजनों से मुलाकात कर चुके हैं।
भारत-चीन की साझा विरासत को प्रदर्शित करने के लिए चीनी नेता ऐसा करते हैं।