#NewsBytesExplainer: श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देने के बदले भारत को क्या मिला था?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले श्रीलंका के कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा चर्चा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उसने इस द्वीप को बेरहमी से श्रीलंका को दे दिया था। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। आइए समझते हैं कि कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को देने के बदले भारत को क्या मिला था।
कहां है कच्चातिवु द्वीप?
कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा-सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। ये भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित है। कहा जाता है कि इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। 285 एकड़ में फैला यह द्वीप 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानंद के अधीन था। इसकी लंबाई 1.6 किलोमीटर और चौड़ाई केवल 300 मीटर है।
द्वीप को लेकर भारत-श्रीलंका में क्या समझौते हुए?
पहले द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों दावा करते थे। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस संबंध में श्रीलंकाई सरकार के साथ समझौते किए थे। 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में हुए समझौतों के तहत यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया। हालांकि, भारतीय मछुआरों को यहां विश्राम करने, जाल सुखाने और द्वीप पर स्थित चर्च में बिना वीजा जाने की छूट दी गई।
द्वीप के बदले भारत को क्या मिला?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कच्चातिवु द्वीप पर दावा छोड़ने के बदले भारत को वेज बैंक मिला। 1976 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसमें कहा गया था, "वेज बैंक भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थित है और भारत के पास इस क्षेत्र और इसके संसाधनों पर संप्रभु अधिकार होगा। श्रीलंका के मछली पकड़ने वाले जहाज और जहाज पर मौजूद व्यक्ति वेज बैंक में मछली पकड़ने में शामिल नहीं होंगे।"
वेज बैंक क्या है?
वेज बैंक केप कोमोरिन के दक्षिण में भारत के क्षेत्रीय जल के बाहर स्थित एक महाद्वीपीय शेल्फ है। यह कन्याकुमारी के दक्षिण में 10,000 वर्ग किलोमीटर का समुद्री पनडुब्बी पठार है, जो जैव विविधता से समृद्ध है और भारत का सबसे समृद्ध मत्स्य संसाधन माना जाता है। यहां समुद्र की गहराई 50 से 200 मीटर है। उथला होने के चलते यहां मछलियों और समुद्री जीवों की 60 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है।
भारत-श्रीलंका में क्यों हुआ था समझौता?
अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने अपनी एक रिपोर्ट में श्रीलंका और भारत के पूर्व राजनयिकों के हवाले से लिखा है कि 1970 के दशक में इंदिरा सरकार द्वारा यह समझौता सद्भावना में किया गया था। इसके तहत दोनों देश ने 'कुछ पाया' और 'कुछ खोया'। श्रीलंका के एक पूर्व राजनयिक का कहना है कि दोनों देशों ने समझौते पर बातचीत करते हुए अपने-अपने रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा था।
समझौते पर विशेषज्ञों का क्या कहना है?
श्रीलंका में भारत के राजदूत रहे अशोक कांथा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "इस तरह की वार्ताओं में शामिल कोई भी राजनयिक यह कह सकता है कि कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होता है। आपको सब कुछ नहीं मिलेगा। समझौते में कुछ मिलता है तो कुछ खोना भी पड़ता है। श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा के समाधान ने दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूती प्रदान की है। इससे समुद्री सीमा और अन्य विवादों को सुलझाने का मार्ग खुला।"
कच्चातिवु पर प्रधानमंत्री ने क्या कहा था?
प्रधानमंत्री ने 'एक्स' पर लिखा था, 'आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाली! नए तथ्यों से पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने बेरहमी से कच्चातिवु द्वीप को छोड़ दिया। इससे हर भारतीय नाराज है और लोगों के मन में यह बात बैठ गई है कि हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते! भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना 75 वर्षों से कांग्रेस का काम करने का तरीका रहा है।'