भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को पूर्ण लाइसेंस मिलने में लग सकता है सालभर का समय- रिपोर्ट
हैदराबाद स्थित फार्मा कंपनी भारत बायोटेक को कोरोना वायरस वैक्सीन कोवैक्सिन के लिए पूर्ण मंजूरी पाने में एक साल का वक्त लग सकता है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि अभी तक इस वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल पूरा नहीं हुआ है। कंपनी को फॉलो-अप स्टडी करने की जरूरत है। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, तब तक वैक्सीन की पूर्ण मंजूरी का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता। आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
कंपनी ने जमा किया है प्रभावकारिता का डाटा
इकॉनोमिक टाइम्स से बात करते हुए सरकारी अधिकारी ने कहा कि भारत बायोटेक को अभी यह बताना बाकी है कि उसकी वैक्सीन कोरोना वायरस के खिलाफ कितनी सुरक्षा देती है। इसके लिए तय समय उनके प्रोटोकॉल में लिखा गया है। ऐसा नहीं होने तक कंपनी को भारतीय दवा नियामक से वैक्सीन के लिए पूर्ण मंजूरी का लाइसेंस नहीं मिलेगा। बता दें कि अभी तक कंपनी ने तीसरे चरण का प्रभावकारिता से जुड़ा डाटा जमा किया है।
पूर्ण लाइसेंस मिलने में लग सकता है एक साल का वक्त
कोवैक्सिन को तीसरे चरण के ट्रायल में 77.8 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। अब कंपनी को फॉलो-अप स्टडी कर प्रोटोकॉल के मुताबिक प्रतिरक्षाजनकता (इम्युनोजेनसिटी) का डाटा देना होगा। इस ट्रायल में अंतिम वॉलेंटियर के शामिल होने के लगभग एक साल बाद पूर्ण मंजूरी का लाइसेंस मिलता है। कंपनी ने तीसरे चरण में प्रभावकारिता से जुड़ा डाटा दवा नियामक के पास जमा करवा दिया है, लेकिन अभी उसे पूर्ण लाइसेंस मिलना बाकी है।
गर्भवती महिलाओं पर इस्तेमाल की भी नहीं मिली मंजूरी
दवा नियामक ने आपात इस्तेमाल की मंजूरी के तहत कोवैक्सिन का उपयोग जारी रखने को कहा है। साथ ही कंपनी को गर्भवती महिलाओं पर यह वैक्सीन इस्तेमाल करने की मंजूरी अभी तक नहीं मिली है।
क्या होते हैं पूर्ण लाइसेंस के फायदे?
पूर्ण लाइसेंस मिलना कंपनी के लिए कई मायनों में फायदेमंद होता है। अगर किसी वैक्सीन को पूर्ण लाइसेंस मिल जाता है तो वह महामारी के खत्म होने के बाद भी बाजार में रह सकती है। इसके अलावा पूर्ण लाइसेंस मिलने पर कंपनियों को अपनी वैक्सीन का प्रचार करने की अनुमति मिल जाती है। साथ ही साथ लोगों का इससे वैक्सीन पर भरोसा भी बढ़ता है और इससे वैक्सीन को लेकर होने वाली हिचकिचाहट कम करने में भी मदद मिलती है।
तीसरे चरण में 25,800 लोगों पर हुआ था ट्रायल
भारत बायोटेक ने तीसरे चरण में 25,800 लोगों पर कोवैक्सिन का ट्रायल किया था। इसमें यह वैक्सीन 77.8 प्रतिशत प्रभावी पाई गई है। अभी तक इस डाटा को किसी भी प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित नहीं किया गया है और कंपनी का कहना है कि तीन महीने के अंदर इस डाटा को किसी पत्रिका में प्रकाशित कर दिया जाएगा। इससे पहले मार्च में आए अंतरिम डाटा में कोवैक्सिन को दूसरी खुराक के बाद 81 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था।
कंपनी ने ICMR के साथ मिलकर बनाई है वैक्सीन
बता दें कि भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के साथ मिलकर कोवैक्सिन को विकसित किया है और यह पूरी तरह से स्वदेशी वैक्सीन है। इसे कोरोना वायरस को ही निष्क्रिय करके विकसित किया गया है। इसके लिए ICMR ने भारत बायोटेक को जिंदा वायरस प्रदान किया था, जिसे निष्क्रिय करके कंपनी ने वैक्सीन विकसित की। भारत के अलावा ब्राजील जैसे कुछ देशों ने भी इसकी खुराकें मांगी हैं।
सितंबर तक WHO से मंजूरी मिलने की उम्मीद
कोवैक्सिन की जनवरी में क्लीनिकल ट्रायल मोड में आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिली थी और शुरूआत में इसका बेहद कम उपयोग हुआ था। पिछले महीने ही दवा नियामक ने इसे क्लीनिकल ट्रायल मोड से हटाने की मंजूरी दी थी और अब इसका बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। भारत इस वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूरी दिलाने के प्रयासों में लगा हुआ है। सितंबर तक कोवैक्सिन को संगठन की हरी झंडी मिलने की उम्मीद है।