#NewsBytesExplainer: खालिस्तान आंदोलन के भारत से निकलकर कनाडा और दूसरे देशों में फैलने की कहानी
भारत और कनाडा के बीच खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर विवाद चल रहा है। कनाडा इसमें भारत का हाथ बता रहे हैं तो भारत ने इन आरोपों को नकारा है। आप सोच रहे होंगे कि खालिस्तान भारत का मुद्दा है तो 11,000 किलोमीटर दूर कनाडा में इसकी गूंज कैसे सुनाई दे रही है। आइए आज समझते हैं कि खालिस्तानी आंदोलन कैसे शुरू हुआ और इसने दूसरे देशों में कैसे पैर पसारे।
कैसे हुई खालिस्तानी आंदोलन की शुरुआत?
खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत 1929 से मानी जाती है। तब कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में मास्टर तारा सिंह की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल ने पहली बार सिखों के लिए अलग देश की मांग की थी। आजादी के बाद भारत के बंटवारे से पंजाब भी 2 हिस्सों में बंट गया। एक हिस्सा पाकिस्तान तो एक हिस्सा भारत के पास रहा। इसके बाद सिखों ने अलग राज्य की मांग को और तेज कर दिया। इसे 'पंजाबी सूबा आंदोलन' कहा गया।
विदेश में खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत
1960 के दशक में पंजाब की राजनीति में सक्रिय जगजीत सिंह चौहान पहली बार खालिस्तानी आंदोलन को विदेश में ले गए। 1969 के पंजाब विधानसभा चुनाव हारने के बाद जगजीत ब्रिटेन चले गए और वहां खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की। 13 अक्टूबर, 1971 को जगजीत ने न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में विज्ञापन छपवाकर खालिस्तान नाम के नए देश की घोषणा की। इस तरह पहली बार दुनिया के सामने खालिस्तान की मांग खुलकर सामने आई।
खालिस्तान मुद्दे पर कैसे हुई पाकिस्तान की एंंट्री?
कहा जाता है कि 1971 के युद्ध में हुई हार का बदला लेने के लिए पाकिस्तान ने खालिस्तानियों का समर्थन करना शुरू किया। पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल याह्या खान ने जगजीत को पाकिस्तान बुलाया और पवित्र सिख दस्तावेज भेंट किए। पाकिस्तान ने जगजीत को पंजाब के सिख नेता के तौर पर प्रचारित किया। बाद में खुलासा हुआ कि जगजीत ने जो विज्ञापन दिया था, उसका खर्च पाकिस्तान ने उठाया था।
कनाडा में कैसे शुरू हुआ खालिस्तानी आंदोलन?
दरअसल, जगजीत ने कनाडा और अमेरिका के कई दौरे किए और यहां भी खालिस्तान आंदोलन को मजबूत करने का काम किया। 26 जनवरी, 1982 को सुरजन सिंह गिल ने कनाडा के वैंकूवर में खालिस्तान की निर्वासित सरकार का कार्यालय खोला। इस बीच कनाडा में तलविंदर सिंह परमार भी सक्रिय हुआ। 1985 में कनिष्क विमान हादसे में परमार की भूमिका सामने आई। भारत ने कनाडा से परमार को प्रत्यर्पित करने की मांग की थी, जिसे कनाडा ने ठुकरा दिया।
खालिस्तानियों के लिए कैसे जन्नत बन गया कनाडा?
1990 के दशक में भारत में खालिस्तानी आंदोलन धीमा पड़ने लगा। सरकार की सख्ती के बाद खालिस्तानियों ने कनाडा को अपनी पनाहगाह बनाया। 2007 में बैसाखी पर सर्रे शहर में निकली एक परेड में परमार को शहीद बताया गया। 1990 के बाद से ही भारत से बड़ी संख्या में सिख लोग कनाडा जाने लगे। यहां इनकी आबादी भी बढ़ी और राजनीति में भी वर्चस्व बढ़ने लगा। कई खालिस्तान समर्थक नेता तो कनाडा सरकार में मंत्री रहे हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस
खालिस्तान आंदोलन सिखों के लिए एक अलग संप्रभु राज्य की लड़ाई है। कुछ सिखों की मांग है कि भारत-पाकिस्तान के कुछ हिस्सों को मिलाकर उसे अलग देश घोषित किया जाए, जिसका नाम खालिस्तान हो। भारत में खालिस्तान आंदोलन का इतिहास काफी हिंसक रहा है। ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए खालिस्तानियों ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या करवा दी थी। 1995 में खालिस्तानियों ने पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी थी।