#NewsBytesExplainer: नेट न्यूट्रैलिटी क्या है और अब इस पर फिर से चर्चा क्यों हो रही?
इंटरनेट तक सभी की समान पहुंच की गारंटी देने वाली नेट न्यूट्रैलिटी एक बार फिर चर्चा में है। इसकी शुरुआत टेलीकॉम कंपनियों द्वारा कुछ दिन पहले भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के समक्ष एक दलील रखने से हुई। मुक्त इंटरनेट और नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थक टेलीकॉम कंपनियों की दलील को नेट न्यूट्रैलिटी के लिए खतरा मान रहे हैं। जान लेते हैं नेट न्यूट्रैलिटी क्या है और कई सालों बाद दोबारा इसकी चर्चा क्यों शुरू हुई।
क्या है नेट न्यूट्रैलिटी?
नेट न्यूट्रैलिटी एक सिद्धांत है, जिसका विचार है कि इंटरनेट सर्विस प्रदाताओं (ISP) और दूरसंचार कंपनियों को सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। इसका सिद्धांत है कि ISP और दूरसंचार कंपनियां विभिन्न वेबसाइटों, ऐप्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के प्रति किसी भी तरह का भेदभाव न करें। इसमें यह भी शामिल है कि इंटरनेट प्रदाता द्वारा किसी प्लेटफॉर्म का इंटरनेट ब्लॉक करने, धीमा करने या विभिन्न प्लेटफॉर्मों के बीच भेदभाव करने जैसा कोई काम नहीं होना चाहिए।
यहां से शुरू हुई चर्चा
कुछ दिन पहले रिलायंस जियो, एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) जैसी दूरसंचार कंपनियों ने एक सुझाव दिया था। इन कंपनियों ने कहा कि ओवर द टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म्स को दूससंचार कंपनियों को ट्रैफिक और इसी तरह के अन्य मापदंडों जैसे टर्नओवर और यूजर्स संख्या आदि के आधार पर नेटवर्क लागत का भुगतान करना चाहिए। OTT प्लेटफॉर्म में गूगल, व्हाट्सऐप सहित वो सभी प्लेटफॉर्म आते हैं, जो इंटरनेट के जरिए काम करते हैं।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कही ये बात
दूरसंचार कंपनियों के सुझावों से सहमति न रखने वाले डिजिटल अधिकार समूह इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा कि इससे इंटरनेट कंपनियों के परिचालन लागत में वृद्धि होगी, जो छोटे खिलाड़ियों को बाजार से बाहर कर सकती है। लोगों का यह भी कहना है कि टेलीकॉम कंपनियों के सुझाव से यूजर्स की पसंद और प्राथमिकता सीमित हो सकती है। कंपनियां अपने ऐप्स, वेबसाइट या प्लेटफॉर्म के सदस्यता शुल्क में वृद्धि कर सकती हैं। यह नेट न्यूट्रैलिटी के खतरा होगा।
विभिन्न ऐप्स के साथ यूजर्स की गोपनीयता को हो सकता है खतरा
इसके अलावा एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन आधारित सिग्नल जैसी ऐप को भी मुश्किल हो सकती है। दरअसल, यदि दूरसंचार कंपनियों के सुझाव लागू किए जाते हैं तो कंपनियों को अपनी ऐप्स से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ने या कस्टमर वेरिफिकेशन लागू करने की जरूरत हो सकती है। इससे यूजर्स की गोपनीयता और स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है। नेट न्यट्रैलिटी खत्म होने से इनोवेशन प्रतिबंधित हो सकता है और इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म पर कुछ सीमित कंपनियों का अधिकार हो सकता है।
शुरू हुआ सेव द इंटरनेट अभियान
इस मुद्दे के सामने आते ही नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थकों ने लगभग बंद हो चुके हस्ताक्षर अभियान सेव द इंटरनेट या इंटरनेट बचाओ अभिया को फिर शुरू कर दिया। इसे पहली बार वर्ष 2015 में शुरू किया गया था, जब नेट न्यूट्रैलिटी पर ऐसी ही बहस छिड़ी थी। इस अभियान को लोगों का बहुत समर्थन मिला था। लोगों ने तब बड़ी संख्या में TRAI को पत्र भेजकर उससे नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में काम करने का आग्रह किया था।
टेलीकॉम कंपनियां इन वजहों से रही हैं नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ
टेलीकॉम कंपनियों के नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ होने की वजह उनकी कमाई का कम होना है। पहले लोग कॉल और मैसेज के लिए टेलीकॉम कंपनियों को पैसे देते थे। अब व्हाट्सऐप और मैसेंजर आदि के जरिए लोग मैसेजिंग, चैटिंग, वॉयस और वीडियो कॉल करते हैं। इससे टेलीकॉम कंपनियों की कमाई घटी है। टेलीकॉम कंपनियां सिर्फ डाटा यूसेज से पैसे कमाती हैं। ऐसे में नेट न्यूट्रैलिटी लागू नहीं होने से ये डाटा प्लान की कीमतें बढ़ा सकती हैं।
नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में तर्क
नेट न्यूट्रैलिटी का सिद्धांत इंटरनेट की दुनिया को अधिक लोकतांत्रिक बनाता है। इससे टेलीकॉम प्रदाता या इंटरनेट सेवा प्रदाता अलग-अलग वेबसाइटों के लिये अलग-अलग कीमतें नहीं ले सकते हैं, जिससे सभी प्लेटफॉर्मों को एक समान रूप से इंटरनेट पर भाग लेने की अनुमति मिलती है। ऐसे में कुछ चुनिंदा और बड़ी कंपनियों का इंटरनेट पर नियंत्रण स्थापित होने का डर नहीं है। इस प्रकार इंटरनेट की स्वतंत्रता बनी रहती है।
नेट न्यूट्रैलिटी पर उद्यमियों की राय
इस मुद्दे पर ट्रेडिंग ऐप जेरोधा के को-फाउंडर और CEO नितिन कामथ ने 12 सितंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया। अपनी पोस्ट में उन्होंने नेट न्यूट्रैलिटी को भारतीय स्टार्टअप की वृद्धि का श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि नेट न्यूट्रैलिटी के बिना शायद जेरोधा नहीं होता। क्लियरट्रिप के को-फाउंडर हर्ष भट्ट ने एक्स पर सेव इंटरनेट पत्र को दोबारा पोस्ट कर कहा कि आइए फिर से इंटरनेट बचाएं।
TRAI ने 2016 में नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में सुनाया था फैसला
वर्ष 2016 में TRAI ने नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में फैसला सुनाया था। पक्ष में फैसला सुनाने का मतलब था कि सभी इंटनरेट प्रदाता और टेलीकॉम ऑपरेटरों को नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत का पालन करना होगा।