
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, अध्ययन में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
क्या है खबर?
इंसानों द्वारा पर्यावरण के साथ किए जा रहे "सौतेले" व्यवहार चलते अब प्रकृति ने अपना नकारात्मक रूप दिखाना शुरू कर दिया है।
इसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए खतरे की घंटी बजना शुरू हो गई है। दोनों प्रदेशों में स्थित करीब 12,243 ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं।
ग्लेशियर पर किए गए अध्ययन के अनुसार ये सभी ग्लेशियर प्रत्येक वर्ष औसतन 35 सेंटीमीटर तक पिघल रहे हैं। ग्लेशियरों का इस रफ्तार से पिघलना बड़ी चिंता का विषय है।
अध्ययन
सैटेलाइट डाटा का उपयोग कर किया गया है अध्ययन
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस अध्ययन को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख इलाके में नियंत्रण रेखा (LOC) और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में किया गया था।
रिपोर्ट के लिए 12,243 ग्लेशियर की प्रवृत्ति, बदलाव और स्थिति के बारे में रिसर्च किया गया है। इसके लिए सैटेलाइट डाटा का भी इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में इसमें गलती की गुंजाइश बहुत कम है।
स्थिति
पीर पंजाल रेंज में सबसे अधिक तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
कश्मीर यूनिवर्सिटी के जियो इंफार्मेटिक डिपार्टमेंट के तारिक अब्दुल्ला, डॉ इरफान रशीद और प्रोफेशर शकील रोमशो द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आया है कि साल 2000 से 2012 के बीच में हिमालय की पीर पंजाल रेंज में ग्लेशियर सबसे अधिक तेजी यानी प्रति वर्ष एक मीटर के हिसाब से पिघल रहे हैं। काराकोरम रेंज के ग्लेशियरों में यह रफ्तार सालाना 10 सेंटीमीटर की है।
यह अध्ययन रिपोर्ट यूनाइटेड किंगडम (UK) आधारित नेचर रिसर्च साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शम्सबरी ग्लेशियर
हर साल पिघल जाती है शम्सबरी ग्लेशियर की 128 सेंटीमीटर मोटी परत
रोमशो ने स्टडी में बताया कि कुछ ग्लेशियर काराकोरम रेंज में आगे बढ़ रहे हैं या स्थिर हैं। ग्रेटर हिमालयन रेंज, जंस्कार रेंज, शम्सबरी ग्लेशियर, लेह पर्वतमाला जैसी अन्य पर्वत श्रृंखलाओं में ग्लेशियर पिघल रहे हैं, लेकिन दर परिवर्तनीय है।
शम्सबरी ग्लेशियर की 128 सेंटीमीटर मोटी परत हर साल पिघल जाती है। ग्लेशियर की परत हिमालय की जंस्कार रेंज में भी कम हो रही है। इस क्षेत्र में हर साल 117 सेंटीमीटर परत पिघल रही है।
डाटा
विशेषज्ञों ने इस तरह एकत्र किया डाटा
कश्मीर यूनिवर्सिटी के जियो इंफार्मेटिक डिपार्टमेंट के तारिक अब्दुल्ला, डॉ इरफान रशीद सहित अनुसंधान टीम ने NASA द्वारा साल 2000 में और जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी DLR द्वारा 2012 में किए गए दो उपग्रह प्रेक्षणों का उपयोग किया।
उन्होंने पूरे ऊपरी सिंधु बेसिन पर ग्लेशियर की मोटाई में परिवर्तन का निर्धारण करने के लिए 12,000 से अधिक ग्लेशियरों को मिलाकर इस डाटा का पता लगाया है। यह इस तरह का दुनिया का पहला अध्ययन है।
गंभीरता
12 साल में पिघली 70 गीगा टन बर्फ
रोमशो ने बताया कि अध्ययन के अनुसार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में 2000 से 2012 के बीच कुल 70.32 गीगा टन बर्फ पिघल गई। यदि यह स्थिति जारी रही तो आने वाले समय में भारी पेयजल संकट से जूझना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि जीवश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग से हर साल तापमान में बढ़ोतरी हो रही है और यही कारण है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो घातक परिणाम सामने आएंगे।
अनुमान
सदी के अंत तक 6.9 डिग्री तक बढ़ जाएगा तापमान
29 जुलाई को क्लाईमैटिक चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक 6.9 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
इसमें चेतावनी जारी की गई है कि यदि ऐसा होता है तो सदी के अंतर तक हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर 85 प्रतिशत तक पिघल जाएंगे। इसके बाद मानव जाति के लिए धरती पर जीना मुश्किल हो जाएगा।