अग्निपथ योजना से हैरान रह गई थी सेनाएं, पूर्व सेनाध्यक्ष नरवणे ने क्या-क्या बड़े खुलासे किए?
भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने अपनी किताब 'फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में अग्निपथ योजना को लेकर बड़े खुलासे किए हैं। उन्होंने बताया कि इस योजना की घोषणा सेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के लिए चौंका देने वाली थी। इसके साथ ही उन्होंने अग्निवीर की भर्ती और उनके वेतन को लेकर भी कई बड़े खुलासे किए हैं। उन्होंने अपनी किताब में इस योजना के विचार की शुरुआत से लेकर लागू होने तक की कहानी बताई है।
क्या है अग्निपथ योजना?
अग्निपथ योजना तीनों सेनाओं, थल सेना, वायुसेना और नौसेना, के लिए एक अखिल भारतीय योग्यता-आधारित भर्ती प्रक्रिया है। इस योजना के तहत भर्ती होने वाले युवाओं को 'अग्निवीर' कहा जाता है। इन्हें 4 साल के लिए सेना में सेवा का अवसर मिलता है। इसके बाद योग्यता, इच्छा और मेडिकल फिटनेस के आधार पर 25 प्रतिशत अग्निवीरों को सेवा में बरकरार रखा जाता है। इस योजना के खिलाफ देशभर में भारी विरोध-प्रदर्शन देखने को मिला था।
कैसे पड़ा था अग्निपथ और अग्निवीर नाम?
जनरल नरवणे ने किताब में बताया कि कई वर्षों से सेना नागरिकों को 3 साल की छोटी सेवा या 'टूर ऑफ ड्यूटी' पर शामिल करने पर विचार कर रही थी। उन्होंने लिखा, "इसका पहला मॉडल CDS (जनरल बिपिन रावत) ने नवंबर, 2020 में प्रधानमंत्री, गृह, रक्षा और वित्त मंत्री, NSA, सेवा प्रमुख और संबंधित विभागों के सचिवों वाले एक पूर्ण पैनल के सामने प्रस्तुत किया था। इसी बैठक के दौरान पहली बार 'अग्निपथ' और 'अग्निवीर' शब्दों का इस्तेमाल किया गया।"
जनरल नरवणे ने कहा- अग्निपथ की घोषणा से तीनों सेनाओं को लगा था झटका
जनरल नरवणे ने बताया कि सेना प्रमुख बनने के कुछ सप्ताह बाद 2020 में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक बैठक हुई थी। इसमें उन्होंने युवाओं को अल्पकालिक कार्यकाल के लिए सेना में भर्ती करने के लिए 'टूर ऑफ ड्यूटी' योजना के बारे में बात की। महीनों बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने भारत की तीनों सेनाओं में इस तरह की भर्ती की अग्निपथ योजना की घोषणा कर दी, जिससे तीनों सेनाएं, खासकर नौसेना और वायुसेना, को बड़ा झटका लगा।
जनरल नरवणे ने शॉर्ट सर्विस के लिए सुझाई थी योजना
जनरल नरवणे ने लिखा, "जब मैंने पहली बार प्रधानमंत्री को 'टूर ऑफ ड्यूटी' योजना के बारे में बताया था तो यह सैनिक स्तर पर शॉर्ट-सर्विस विकल्प की तर्ज पर थी। अधिकारियों के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन योजना के समान, जो पहले से ही प्रचलित थी।"
मैं खुद भी घटनाक्रमों से हैरान था- जनरल नरवणे
जनरल नरवणे ने लिखा, "यह त्रि-सेवा मामला बन जाने के बाद प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी CDS जनरल बिपिन रावत पर आ गई थी।" उन्होंने बताया कि उन्हें अन्य प्रमुखों को यह समझाने में समय लगा कि उनका प्रस्ताव केवल थल सेना केंद्रित था और वह खुद भी घटनाक्रमों से हैरान थे। इसका मतलब उन्होंने केवल थल सेना के लिए 'टूर ऑफ ड्यूटी' का सुझाव दिया था, वहीं सरकार ने तीनों सेनाओं पर अग्निपथ योजना लागू कर दी।
पहले 20,000 प्रति माह रखा गया था अग्निवीरों का वेतन
जनरल ने किताब में बताया कि अग्निवीरों के लिए पहले साल का शुरुआती वेतन केवल 20,000 रुपये प्रति माह (सभी समावेशी) रखा गया था। उन्होंने लिखा, "यह बिल्कुल स्वीकार्य नहीं था। यहां हम एक प्रशिक्षित सैनिक की बात कर रहे है, जिससे उम्मीद की जाती है कि वह देश के लिए अपनी जान दे। साफ है एक सैनिक की तुलना दिहाड़ी मजदूर से नहीं की जा सकती। हमारी मजबूत सिफारिशों के बाद इसे बढ़ाकर 30,000 रुपये प्रति माह किया गया।"
सेना ने की थी 75 प्रतिशत अग्निवीरों को बरकरार रखने की सिफारिश, सरकार नहीं मानी
31 दिसंबर, 2019 से 30 अप्रैल, 2022 तक 28वें सेना प्रमुख के रूप में काम करने वाले जनरल नरवणे ने बताया कि योजना के विभिन्न मॉडलों पर विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने कहा कि सेना का प्रारंभिक विचार था कि भर्ती किए जाने वाले 75 प्रतिशत सैनिकों को बरकरार रखा जाए और 25 प्रतिशत को ही छोड़ा जाए। हालांकि, सरकार ने केवल 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही 4 साल से अधिक समय तक बरकरार रखने का प्रावधान किया।
सेना ने 50 प्रतिशत सैनिकों को बरकरार रखने का भी दिया था प्रस्ताव
जनरल नरवणे कहते हैं, "प्रारंभिक प्रस्ताव में प्रत्येक वर्ष 50,000 सैनिकों की भर्ती करने और हर टूर के बाद 25,000 सैनिकों को छोड़ने की बात थी। सैन्य मामलों के विभाग की राय थी कि यह 50-50 प्रतिशत हो और इसकी अवधि 5 साल होनी चाहिए।" उन्होंने बताया कि योजना का उद्देश्य समाज को अनुशासित जनशक्ति वापस देना था, इसलिए इसे उल्टा कर दिया गया और केवल 25 प्रतिशत अग्निवीरों को कायम रखने पर सहमति बनी।
कैसे सेना और सरकार के बीच बनी 4 साल के कार्यकाल पर सहमति?
जनरल नरवणे ने बताया कि ड्यूटी की अवधि पर काफी समय तक चर्चा चली थी और भारतीय वायुसेना के लिए समस्या सबसे अधिक थी क्योंकि उच्च-मूल्य वाले प्लेटफार्मों की मरम्मत और रखरखाव जैसे कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल 3 साल में नहीं कमाया जा सकता। उन्होंने कहा, "आखिरकार एक बीच के मार्ग पर सहमति बनी और 4 साल की सेवा को लेकर प्रावधान किया गया।"