दिल्ली बॉर्डर पर ट्रैक्टर-ट्रॉली बने किसानों का ठिकाना, ऐसा है किसान प्रदर्शन का माहौल

तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को हरियाणा-दिल्ली की सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए आज छठा दिन है। जिन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में सवार होकर किसानों ने दिल्ली कूच किया था, वही अब उनका ठिकाना बन गई हैं। बुजुर्ग किसान सड़कों पर बैठे रेडियो सुनते हैं तो युवा लंगर की व्यवस्था में जुटे रहते हैं। हर कुछ सौ मीटर की दूरी पर लंगर चल रहा है। सड़क का माहौल किसी रिहायशी इलाके जैसा हो गया है।
इन प्रदर्शनों में भाग लेने आए एक किसान और एक्टिविस्ट रमनदीप सिंह मान ने द प्रिंट को बताया कि उनके छोटे प्रदर्शनों को नजरअंदाज किया जा रहा था इसलिए वो यहां आए हैं। खुद को किसी भी संगठन का हिस्सा न बताने वाले मान कहते हैं, "5 जून को अध्यादेश लाए गए थे। जब हमने इन्हें पढ़ा तो पता चला कि यह हमारे पक्ष में नहीं हैं। हमने सरकार को बताने की कोशिश की, लेकिन किसी ने नहीं सुनी।"
मान ने बताया कि आज किसानों का आंदोलन जितना बड़ा दिख रहा है, उसके लिए महीने भर योजना तैयार की गई थी। हर किसान संगठन के नेता को कम से कम पांच गांवों में प्रदर्शनों को लेकर बात पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था।
भले ही दिल्ली स्थित बांगला साहिब और रकबगंज साहिब गुरद्वारा किसानों तक लंगर पहुंचा रहे हैं, लेकिन किसान पूरी तरह से उन पर निर्भर नहीं हैं। प्रदर्शनकारी किसान समूहों में दिल्ली पहुंचे हैं और हर समूह के पास दो महीने के राशन, सर्दी से बचने के लिए कंबल और समय काटने के लिए ताश के पत्तों का प्रबंध है। शाम होते ही अस्थायी चूल्हों में आग जल जाती है और किसानों का लिए खाना पकना शुरू हो जाता है।
मान कहते हैं कि प्रदर्शन में उम्मीद से ज्यादा लोग जुड़ गए हैं, जिसके चलते कुछ इंतजाम कम पड़ रहे हैं। वो कहते हैं कि दिन में लोगों के आने से कोई परेशानी नहीं है, लेकिन रात में सर्दी बढ़ जाती है और ज्यादा लोग होने के कारण प्रदर्शन स्थल पर कंबल कम पड़ जाते हैं। हालांकि, बढ़ती सर्दी के बावजूद किसानों के हौसले कमजोर नहीं हो रहे और हर दिन के साथ प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के सुरेश कौथ कहते हैं कि अगर सरकार इस संकट का समाधान नहीं करती है तो किसानों की संख्या लगातार बढ़ती जाएगी। उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर यह सरकार मांगें नहीं मानती है तो यह प्रदर्शन लंबा चलेगा और किसानों के परिवार भी यहीं आकर डेरा डाल लेंगे। वहीं एक और किसान नेता कहते हैं कि किसान इतनी दूर चलकर आया है तो खाली हाथ वापस नहीं जाएगा।
किसानों की शुरुआत से ही कोशिश रही है कि इस प्रदर्शन को कोई राजनीतिक दल न हथिया ले। इसे देखते हुए किसी भी राजनीतिक दल के नेता को मंच पर जाने की इजाजत नहीं है। भारतीय किसान यूनियन पंजाब के महासचिव परमिंदर सिंह चालाकी कहते हैं, "राजनेताओं का यहां पर स्वागत है। वो आकर हमारा समर्थन कर सकते हैं, लेकिन मंच पर केवल किसानों और संगठन के नेताओं के ही जगह मिलेगी।"
शाम बढ़ने के साथ मौसम में ठंडक भले ही बढ़ जाती है, लेकिन किसानों का जोश ठंडा नहीं होता। कई किसान ट्रॉलियों में तो कई अलाव के चारों और बैठकर दिनभर की घटनाओं पर चर्चा करते हैं। इस बार किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर ही ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के पास मोमबतियां जलाकर और गुरुवाणी सुनकर गुरु पर्व मनाया था। किसानों का कहना है कि वो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और सरकार की कोशिशों के आगे झुकेंगे नहीं।
Farmers celebrated Gurupurab at Haryana Delhi border. pic.twitter.com/Hi0DEzvd23
— Sensitive Singh (@PunYaab) November 30, 2020