चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया चुनावी बॉन्ड का डाटा
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चुनावी बॉन्ड से संबंधित डाटा अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। आयोग ने 2 फाइलें अपलोड की हैं। एक फाइल में किस व्यक्ति/कंपनी ने किस तारीख को कितने-कितने रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे, ये जानकारी है। दूसरी फाइल में किस राजनीतिक पार्टी ने किस तारीख को कितने-कितने रुपये के बॉन्ड भुनाए, ये जानकारी है। इस डाटा से ये पता करना नामुमकिन है कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 15 फरवरी को ऐतिहासिक आदेश सुनाते हुए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने की चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दे दिया था। कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को 6 मार्च तक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक पार्टियों को मिले दान और चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों का विवरण चुनाव आयोग को देने को कहा था। आयोग को 13 मार्च तक ये जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी था।
इसलिए देरी से सार्वजनिक हुआ डाटा
सुप्रीम कोर्ट के मूल आदेश के बाद SBI ने याचिका दायर कर उससे चुनावी बॉन्ड का डाटा देने के लिए 30 जून तक का समय मांगा था। हालांकि, कोर्ट ने 11 मार्च को उसे अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया और 12 मार्च तक उसे सारा डाटा चुनाव आयोग को देने को कहा। कोर्ट ने आयोग से 15 मार्च तक ये डाटा अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करने को कहा, जो उसने आज एक दिन पहले ही कर दिया।
डाटा पर उठ रहे सवाल
चुनावी बॉन्ड के इस डाटा पर सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, हर चुनावी बॉन्ड पर एक यूनिक नंबर होता है, जिससे ये पता लगाया जा सकता है कि किस बॉन्ड को किस पार्टी ने भुनाया। हालांकि, SBI ने ये जानकारी नहीं दी है। इससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असल मकसद पूरा नहीं होता। कोर्ट ने कहा था कि लोगों को ये जानने का हक है कि पार्टियों को कहां से पैसा मिला। इस डाटा से ये नहीं पता चलेगा।
क्या थे चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड एक सादा कागज होता था, जिस पर नोटों की तरह उसकी कीमत छपी होती थी। इसे कोई भी व्यक्ति या कंपनी खरीदकर अपनी मनपंसद राजनीतिक पार्टी को चंदे के तौर पर दे सकती थी। बॉन्ड खरीदने वाले की जानकारी केवल SBI के पास रहती थी। केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में इसकी घोषणा की थी, जिसे लागू 2018 में किया गया। हर तिमाही में SBI 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता था।
चुनाव बॉन्ड पर क्यों उठ रहे थे सवाल?
चुनाव बॉन्ड को लेकर सबसे बड़ा सवाल गोपनीयता का था। दरअसल, बॉन्ड भुना रही पार्टी को ये नहीं बताना होता था कि उसके पास ये बॉन्ड किससे मिला। बॉन्ड पर भी दानकर्ता शख्स या कंपनी का नाम नहीं होता था। इसका मतलब बॉन्ड के जरिए किसने किसे चंदा दिया, इसकी जानकारी गुप्त रहती थी। इस गोपनीयता के कारण योजना के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग और सत्ताधारी पार्टी के चंदे के बदले में कंपनियों को लाभ प्रदान करने की आशंकाएं थीं।