भीमा कोरेगांव मामला: बॉम्बे हाई कोर्ट से सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को मिली जमानत
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बड़ी राहत मिली है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने नवलखा को एक लाख रुपये के मुचलके और कुछ शर्तों के साथ जमानत दे दी है। बता दें कि नवलखा अगस्त, 2018 से जेल में बंद थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पिछले साल नवंबर में नवलखा को जेल से निकालकर नवी मुंबई स्थित उनके घर में सशर्त नजरबंद किया गया था।
फिलहाल नजरबंदी में ही रहेंगे नवलखा
सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने कोर्ट से आग्रह किया कि वे आदेश के कार्यान्वयन पर 6 हफ्ते के लिए रोक लगाए ताकि एजेंसी सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सके। NIA की अपील पर कोर्ट ने आदेश के क्रियान्वयन पर 6 की बजाय 3 हफ्ते की रोक लगा दी है। यानी अभी भी 3 हफ्ते तक नवलखा को नजरबंदी में ही रहना होगा। इस दौरान NIA जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है।
क्या है मामला?
31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में कोरेगांव-भीमा की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए एक संगोष्ठी आयोजित की गई थी। इस कार्यक्रम के अगले दिन भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। पुलिस का कहना था कि ये हिंसा संगोष्ठी में दिए भड़काऊ भाषण की वजह से हुई थी और इस कार्यक्रम को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ साजिश का भी आरोप लगा था।
नवलखा भीमा कोरेगांव मामले में जमानत पाने वाले 7वें आरोपी
भीमा कोरेगांव मामले में नवलखा 7वें आरोपी हैं, जिन्हें जमानत मिली है। आनंद तेलतुंबडे, वकील सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरिरा और महेश राउत को पहले ही नियमित जमानत मिल चुकी है। कवि वरवरा राव को वर्तमान में स्वास्थ्य आधार पर जमानत मिली हुई है। इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट से गोंसाल्वेस और फरेरा को जमानत मिली थी। सभी आरोपियों को कई शर्तों के साथ जमानत दी गई है।
न्यूजबाइट्स प्लस
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव की लड़ाई का इतिहास 202 साल पुराना है। कहा जाता है कि 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवा के नेतृत्व वाली मराठा सेना के बीच लड़ाई हुई थी। इसमें पेशवा की हार हुई थी। इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत का श्रेय महार रेजिमेंट को दिया जाता है। महार समुदाय को उस समय अछूत समझा जाता था, इसलिए अनुसूचित जाति के लोग इसे ब्राह्मणवाद के खिलाफ जीत मानते हैं।