हर साल की पहली तारीख को भीमा कोरेगांव में क्यों जुटते हैं लोग?
महाराष्ट्र के पुणे जिले के पेरने गांव में 1 जनवरी, 2020 को भीमा कोरेगांव लड़ाई की 202वीं बरसी पर कम से कम 5 लाख जुटे। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने भी यहां पहुंचकर 'जय स्तंभ' पर श्रद्धांजिल अर्पित की। भारी संख्या में लोगों के जुटने की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए थे। पूरे इलाके में 10,000 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए। ऐहतियात के तौर पर इंटरनेट भी बंद रखा गया।
श्रद्धांजलि देने के बाद क्या बोले पवार?
श्रद्धांजलि देने के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए पवार ने कहा कि 'जय स्तंभ' का अपना इतिहास है। हर साल लाखों लोग यहां आते हैं। दो साल पहले कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं सामने आई थीं, लेकिन सरकार हर तरह की सावधानी बरत रही है।
जय स्तंभ पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अजित पटेल
दो साल पहले की किस घटना का जिक्र कर रहे थे अजित पवार?
अजित पवार दो साल पहले की जिस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का जिक्र कर रहे थे, वह 1 जनवरी, 2018 को हुई थी। उस दिन पेशवाओं पर महार रेजिमेंट की जीत यानी भीमा कोरेगांव की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे। इस मौके पर यल्गार परिषद ने पुणे के शनिवारवाड़ा में जश्न मनाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया था। कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने इस आयोजन का विरोध किया। इसके बाद यहां भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
क्या है भीमा-कोरेगांव की लड़ाई?
महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव की लड़ाई का इतिहास 202 साल पुराना है। कहा जाता है कि 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवा के नेतृत्व वाली मराठा सेना के बीच लड़ाई हुई। इस लड़ाई में पेशवा की हार हुई थी।
महारों को दिया जाता है जीत का श्रेय
इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत का श्रेय महार रेजिमेंट को दिया जाता है। महार समुदाय को उस समय अछूत समझा जाता था। इसलिए अनुसूचित जाति के लोग इस जीत को ब्राह्मणवाद के खिलाफ भी अपनी जीत मानते हैं। इतिहासकारों का कहना है कि जब महारो ने ब्राह्मणों (पेशवा) को छुआछात खत्म करने को कहा तो वे नहीं माने। इसी कारण महार अंग्रेजों की तरफ हो गए। अंग्रेजी सेना ने ही उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया था।
500 महार सैनिकों ने लिया था लड़ाई में हिस्सा
महार शिवाजी के समय से ही मराठा सेना का हिस्सा रहे थे, लेकिन बाजीराव द्वितीय ने अपनी ब्राह्मणवादी सोच के कारण उनको सेना में भर्ती नहीं किया। भीमा-कोरेगांव लड़ाई के समय बाजीराव द्वितीय ही मराठा सेना का नेतृत्व कर रहे थे। कहा जाता है कि इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से 500 महार सैनिकों ने हजारों की संख्या वाली पेशवा सेना को धूल चटा दी थी।
1927 में अंबेडकर ने किया था 'जय स्तंभ' का दौरा
लड़ाई में जान गंवाने वाले योद्धाओं की याद में अंग्रेजों ने पेरने गांव में 'जय स्तंभ' का निर्माण करवाया था। इस पर पेशवा के खिलाफ लड़ाई जीते वाले वाले महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं। साल 1927 में भीमराव अंबेडकर ने यहां आकर योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी थी। इसके बाद महार समुदाय ने पेशवाओं पर मिली जीत की याद में इस दिन को मनाना शुरू किया। अब हर साल यहां 1 जनवरी को लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं।