देशभर की अदालतों में लंबित हैं रेप और POCSO कानून के लगभग 2.5 लाख मामले
देशभर की अदालतों में रेप और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) कानून से संबंधित करीब ढाई लाख मामले लंबित हैं। केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद में जानकारी देते हुए बताया कि पिछले साल दिसंबर तक रेप और POCSO कानून के 2.4 लाख से अधिक मामले अदालतों में लंबित थे। ऐसे समय में जब रेप के दोषियों पर जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई की मांगे लगातार उठती रहती हैं, ये आंकड़े एक शर्मनाक तस्वीर पेश करते हैं।
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले लंबित
लोकसभा में जनता दल यूनाइटेड (JDU) सांसद राजीव रंजन सिंह के सवाल पर लिखित जबाव देते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय ने बताया कि 31 दिसंबर, 2019 तक अदालतों में रेप और POCSO कानून के दो लाख 44 हजार एक मामले लंबित थे। देशभर की हाई कोर्ट्स से प्राप्त जानकारी के आधार पर ये जबाव दाखिल किया गया है। इनमें सबसे अधिक 66,994 मामले उत्तर प्रदेश में लंबित हैं जबकि महाराष्ट्र में 21,691 और पश्चिम बंगाल में 20,511 मामले लंबित हैं।
लंबित मामलों को निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बना रही सरकार
कानून मंत्रालय के लिखित जबाव में इन मामलों को जल्द से जल्द निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने के बारे में भी सूचना दी गई है। जबाव के अनुसार, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को आगे बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने देशभर में 1,023 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की योजना बनाई है। इनमें से 389 फास्ट ट्रैक कोर्ट केवल POCSO मामलों के लिए बनाए जाने हैं जबकि बाकी रेप और POCSO दोनों तरह के मामलों के लिए है।
लगभग 100 करोड़ रुपये का फंड जारी, काम कर रहे 195 फास्ट ट्रैक कोर्ट
अभी तक केंद्र सरकार अपने हिस्से के 99.43 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है और 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश 649 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने के लिए मंजूरी दे चुके हैं। इनमें से 195 फास्ट ट्रैक कोर्ट ने काम करना शुरू कर दिया है जिसमें से सबसे अधिक 56 मध्य प्रदेश में हैं। इसके अलावा गुजरात में 34, राजस्थान में 26, झारखंड में 22, दिल्ली में 16, छत्तीसगढ़ में 15 और तमिलनाडु में 14 कोर्ट काम कर रहे हैं।
एक साल के लिए बनाए जाने हैं फास्ट ट्रैक कोर्ट
बता दें कि केंद्र सरकार की इस योजना के तहत एक साल के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने हैं। समीक्षा के बाद उन्हें आगे जारी रखने का फैसला लिया जाएगा। योजना के तहत हर फास्ट ट्रैक कोर्ट को एक तिमाही में 41-42 केस निपटाने हैं। इस तरीके से एक साल में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट को कम से कम 165 मामले निपटाने होंगे। इस तरह सभी कोर्ट एक साल में लगभग 1.7 लाख केस निपटा सकते हैं।
राज्यों का रवैया बेहद निराशानजक
हालांकि, इस पहल को लेकर राज्यों का रवैया बेहद निराशाजनक रहा है। इस योजना की शुरूआत पिछले साल जुलाई में हुई थी लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में, जहां रेप और POCSO कानून के सबसे ज्यादा मामले लंबित हैं, अभी तक एक भी फास्ट ट्रैक कोर्ट काम नहीं कर रहा है। वहीं महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी एक भी फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं बना है जहां उत्तर प्रदेश के बाद रेप और POCSO के सबसे अधिक मामले लंबित हैं।