महाराष्ट्र: ठाणे के सरकारी अस्पताल में 24 घंटों में 18 मरीजों की मौत, जांच समिति गठित
महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कलवा में नगर निगम द्वारा संचालित छत्रपति शिवाजी महाराज अस्पताल में पिछले 24 घंटों में 18 मरीजों की मौत गई है। नगर आयुक्त अभिजीत बांगड़ ने कहा कि मृतकों में 10 महिलाएं और 8 पुरुष शामिल हैं, जिनमें से 6 मरीज ठाणे शहर, 4 मरीज कल्याण से, 3 मरीज साहपुर से, जबकि 1-1 मरीज भिवंडी, उल्हासनगर और गोवंडी से है। उन्होंने कहा कि मामले की जांच के लिए समिति का गठन किया गया है।
मुख्यमंत्री शिंदे को दी गई घटना की जानकारी- नगर आयुक्त
बांगड़ ने कहा, "पिछले 48 घंटों में 18 मरीजों की मौत हुई है। जिन मरीजों की मौत हुई है उनमें से कुछ पहले से ही किडनी रोग, निमोनिया समेत गंभीर बीमारियों का इलाज करवा रहे थे। मैंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मौतों के बारे में जानकारी दी है।" उन्होंने आगे कहा, "इस घटना की निष्पक्ष जांच के लिए एक समिति गठित की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि मरीजों को सही उपचार मिल रहा था या नहीं।"
मंत्री बोले- अस्पताल में भर्ती थे गंभीर रूप से बीमार मरीज
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि हाल ही में अस्पताल की ICU क्षमता को बढ़ाया गया था और इसमें गंभीर रूप से बीमार मरीजों को भी भर्ती किया गया था। उन्होंने कहा, "डॉक्टर उन्हें (मरीजों को) बचाने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन आखिरी चरण में डॉक्टरों के लिए उन्हें बचाना काफी मुश्किल हो जाता है। फिर भी मौतों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया है।"
शरद पवार ने घटना पर जताया शोक
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार ने अस्पताल में हुई मौतों पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने समय पर कदम नहीं उठाने के लिए जिला प्रशासन की आलोचना भी की। उन्होंने ट्वीट किया, 'ठाणे के छत्रपति शिवाजी महाराज अस्पताल में दिल दहला देने वाली घटना घटी है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले कुछ दिनों में 5 मरीजों की मौत होने के बावजूद प्रशासन नहीं जागा। मैं मृतकों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।'
मौतों के पीछे क्या कारण आया सामने?
प्राथमिक जांच में अब तक मौतों के पीछे कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है। ठाणे के पूर्व मेयर नरेश म्हाकसे ने कहा कि अस्पताल में क्षमता से अधिक मरीज भर्ती थे। उन्होंने कहा कि अस्पताल में प्रति दिन 500 मरीजों की जगह 650 मरीजों का इलाज चल रहा था। इसके अलावा कई डॉक्टर डेंगू के कारण बीमार होने के चलते अस्पताल नहीं आ रहे थे, जिसके कारण स्वास्थ्य सेवा पर काफी असर पड़ा।