#NewsBytesExclusive: डिजिटल असेट्स और क्रिप्टोकरेंसी के बदले लें लोन, शांतनु शर्मा से समझें DeFi का मतलब
पिछले कुछ साल में क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी चर्चा तेज हुई और इसमें निवेश करने वाले भी बढ़े हैं। हालांकि, आम इंटरनेट यूजर्स के मन में इससे जुड़े ढेरों सवाल हैं और भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर नियम स्पष्ट नहीं है। जैसे क्रिप्टोकरेंसी वर्चुअल दुनिया में कागज वाली करेंसी की जगह लेती है, वैसे ही DeFi (डीसेंट्रलाइज्ड फाइनांस) पुराने फाइनांस सिस्टम का विकल्प है। न्यूजबाइट्स ने इस बारे में EasyFi (इजीफाइ) के वाइस प्रेसीडेंट, ग्रोथ एंड मार्केटिंग शांतनु शर्मा से बात की।
आसान भाषा में कैसी समझी जाए क्रिप्टोकरेंसी?
आम इंटरनेट यूजर्स को क्रिप्टोकरेंसी का मतलब कैसे समझाया जाए, इसके जवाब में शांतनु कहते हैं, "जैसे कुछ भी खरीदने के लिए रुपये या करेंसी की जरूरत होती है, वैसे ही ब्लॉकचेन नाम की एक प्रणाली है, जिसमें कुछ खरीदने या बेचने के लिए एक व्यवस्था या वर्चुअल करेंसी बनाई गई है।" शांतनु ने बताया, "यह वर्चुअल करेंसी क्रिप्टोग्राफी नाम की तकनीक से बनाई गई है इसलिए उसे क्रिप्टोकरेंसी कहते हैं। इस करेंसी की वैल्यू लगातार बदलती रहती है।"
क्रिप्टोकरेंसी को रुपया नहीं, असेट मानकर करें निवेश
शांतनु ने कहा कि भारत का बड़ा तबका पैसे होने पर निवेश करने के बजाय, बचत पर जोर देता है। उन्होंने कहा, "पुराने लोगों के मन में क्रिप्टो को लेकर कई तरह के सवाल हैं। हम उन्हें सलाह देते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी को रुपया समझने के बजाय एक असेट मानकर निवेश करें, जिससे रिटर्न मिल सकता है।" हालांकि, सरकार की ओर से इसे लीगल टेंडर नहीं माना गया है और यह किसी केंद्रीय व्यवस्था से रेग्युलेटेड या नियमित नहीं है।
RBI का डिजिटल रुपया बन सकता है आधार
बजट में बताया गया कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जल्द क्रिप्टोकरेंसी के विकल्प के तौर पर डिजिटल रुपया लॉन्च करेगा। इसपर शांतनु ने कहा, "क्रिप्टोकरेंसी इस्तेमाल करने पर आखिरी मूल्य लीगल टेंडर में ही मिलता है। यानी कि जबतक क्रिप्टो को रुपये में बदला नहीं जाता, उसे सामान्य मार्केट में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।" शांतनु ने कहा कि डिजिटल रुपये जैसी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) एक अच्छी शुरुआत हो सकती है, लेकिन इससे जुड़े नियम साफ नहीं हैं।
भारत में क्रिप्टोकरेंसी की मौजूदा स्थिति क्या है?
भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है लेकिन कोई बिल लाकर इसे लीगल टेंडर की तरह स्वीकार भी नहीं किया गया है। क्रिप्टोकरेंसी की मौजूदा स्थिति और इसमें निवेश पर शांतनु ने कहा, "यह पूरी तरह लोगों पर निर्भर करता है कि वे निवेश करना चाहते हैं या नहीं। भारत में क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल असेट्स पर टैक्सेशन (क्रिप्टो टैक्स) की बात की गई है, लेकिन इससे जुड़े सभी सवालों के जवाब नहीं मिले हैं।"
क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ा डीसेंट्रलाइज्ड फाइनांस क्या है?
DeFi को समझाते हुए शांतनु ने बताया, "पुराने फाइनांस सिस्टम में आप किसी कोलैटरल (उदाहरण के लिए सोना) के बदले बैंक से लोन ले सकते हैं, जिसमें बैंक मध्यवर्ती की तरह काम करते हैं। वहीं, डीसेंट्रलाइज्ड फाइनांस (DeFi) में कोई मध्यवर्ती नहीं होता और प्लेटफॉर्म पर जाकर डिजिटल असेट्स (NFTs/टोकन्स) के बदले लोन लिया जा सकता है।" उन्होंने कहा, "इजीफाइ के नाम से हमने जो प्लेटफॉर्म बनाया है, उसपर यूजर्स डिजिटल असेट्स डालकर बदले में लोन ले सकते हैं।"
क्या होते हैं डिजिटल असेट्स?
ब्लॉकचेन पर कोई क्रिप्टो टोकन या नॉन-फंजिबल टोकन डिजिटल असेट कहलाता है। ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी इनके लिए एक पब्लिक लेजर के तौर पर काम करती है, जिससे इनकी सत्यता और मालिकाना हक का पता लगाया जा सके। इनके डिजिटल राइट्स खरीदे या ट्रांसफर किए जाते हैं।
डिजिटल असेट्स के जरिए कैसे मिलता है लोन?
DeFi ब्लॉकचेन पर मौजूद डिजिटल असेट या टोकन के बदले यूजर्स को लोन देता है और इसके लिए लंबी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता। शांतनु ने बताया कि इसके लिए स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स काम करते हैं। उन्होंने कहा, "किसी असेट के बदले मिलने वाला लोन कई बातों को ध्यान में रखकर तय किया जाता है, जिनका जिक्र स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट में होता है। लोन वापस हो जाने पर कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाता है और यूजर दोबारा अपना असेट इस्तेमाल कर सकते हैं।"
क्या हैं DeFi के फायदे और नुकसान?
DeFi के फायदों पर शांतनु ने कहा, "कोई भी DeFi के साथ लोन ले सकता है और इससे जुड़ा कोई एंट्री-बैरियर नहीं है। बैकिंग सिस्टम में लोन के बदले जमा किए गए कोलैटरल पर ब्याज नहीं मिलता, जबकि DeFi कोलैटरल के तौर पर जमा किए गए यूजर के डिजिटल असेट पर भी उसे फायदा देता है।" कमियों पर बात करें तो किसी असेट की कीमत लोन दिए जाने के बाद कम हो जाने पर उसे लिक्विडेट करना पड़ता है।
DeFi व्यवस्था से जुड़े मौजूदा खतरे क्या हैं?
ब्लॉकचेन, क्रिप्टोकरेंसी या फिर DeFi व्यवस्था से जुड़े रिस्क फैक्टर या खतरों पर शांतनु ने कहा कि ये दो पहलुओं, सॉफ्टवेयर और मार्केट से जुड़े हैं। उन्होंने बताया, "ब्लॉकचेन व्यवस्था और डिजिटल असेट्स सॉफ्टवेयर आधारित होने के चलते पहला खतरा हैकिंग और साइबर अटैक्स का होता है। ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं, इसलिए इनसे बचने की बेहतर प्रणाली तैयार की जा रही है। वहीं, दूसरा रिस्क वर्चुअल मार्केट और इसमें आने वाले बदलावों से जुड़ा है।"
कहीं भी निवेश से पहले रिसर्च करना जरूरी
किसी प्लेटफॉर्म से डिजिटल असेट के बदले लोन लेने या उसमें निवेश करने का फैसला कैसे किया जाए, इसपर शांतनु ने कहा, "बैकग्राउंड चेक इसमें मदद कर सकता है। रगपुल स्कैम (जिसमें ऑनलाइन कंपनी असेट्स या टोकन्स के साथ गायब हो जाती है) जैसे खतरों से बचने के लिए कंपनी का पिछला रिकॉर्ड देखना चाहिए।" उन्होंने बताया, "कई कंपनियां ब्लॉकचेन और क्रिप्टोकरेंसी के ट्रेंड में आने से पहले से इसपर काम कर रही हैं और भरोसे के लायक हैं।"
भविष्य का फाइनांस सिस्टम बन सकता है DeFi
शांतनु ने बताया कि वर्चुअल दुनिया और खासकर मेटावर्स जैसी घोषणाओं के बाद DeFi की जरूरत और महत्व दोनों बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा, "फेसबुक की ओर से मेटावर्स बनाने की घोषणा के बाद वर्चुअल लैंड/प्रॉपर्टी खरीदने की शुरुआत हुई है। ऐसी दुनिया में लोन लेने और अपनी जगह बनाने के लिए DeFi 'भविष्य के फाइनांस सिस्टम' की तरह काम कर सकता है।" इजीफाइ की तर्ज पर मेटाफाइ लाने और बिना कोलैटरल लोन देने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।