'मिसेज अंडरकवर' रिव्यू: कहानी ने किया कबाड़ा, राधिका आप्टे का अभिनय भी फीका
राधिका आप्टे की फिल्म 'मिसेज अंडरकवर' का ऐलान पिछले महीने महिला दिवस को हुआ था। फिल्म राधिका की है तो इसे लेकर दर्शकों के बीच उत्साह होना लाजमी था क्योंकि वह लीक से हटकर कई फिल्मों में अपने उम्दा अभिनय का परिचय दे चुकी हैं, वहीं महिला केंद्रित फिल्मों को लेकर वैसे ही अब चलन काफी बढ़ गया है। बहरहाल, यह फिल्म आज 14 अप्रैल को ZEE5 पर आ गई है। देखने से पहले जानिए कैसी है फिल्म।
मिशन से ज्यादा घर की कहानी
फिल्म की शुरुआत एक महिला वकील की हत्या से होती है, जिसे एक आम आदमी (सुमित व्यास) ने मारा है। वह एक ऐसा शख्स है, जिसे आत्मनिर्भर और सशक्त महिलाएं फूटी आंख नहीं सुहातीं। उस महिला की मौत पक्की, जिसने उसके सामने महिला सश्क्तिकरण की बात की। दूसरी तरफ दुर्गा (राधिका) जो ट्रेनिंग लेकर सीक्रेट फोर्स में भर्ती हुई थी, वह शादी कर अपनी गृहस्थी बसा चुकी है। दुर्गा अपने पति, सास-ससुर और बच्चे का ख्याल रखने में खुश है।
अंडरकवर एजेंट दुर्गा ने दी दस्तक, क्या होगा कातिल का पर्दाफाश?
पुलिस फोर्स का मुखिया चीफ रंगीला (राजेश) हत्यारे की तलाश में जुटा है। उसे पता चलता है कि दुर्गा नाम की एक एजेंट है, जिसकी ट्रेनिंग लगभग 12 साल पहले हुई तो थी, लेकिन उसे कभी कोई मिशन नहीं दिया गया। इसके बाद शादीशुदा जिंदगी जी रही दुर्गा बतौर अंडरकवर एजेंट मिशन में एंट्री करती है। लंबे समय से गृहस्थी के जाल में उलझ चुकीं दुर्गा उस कातिल को दबोच पाएगी या नहीं, ये फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
फेल हुईं राधिका
इस फिल्म की नायिका OTT क्वीन बन चुकीं राधिका हैं, जो अपने मजबूत कंधों पर फिल्म ढोने की कोशिश तो करती हैं, लेकिन उनका प्रदर्शन लचर कहानी की भेंट चढ़ जाता है। हालांकि, उनका काम भी इसमें औसत दर्जे का ही है। ईमानदारी से कहें तो राधिका ने अपने करियर में कई शानदार फिल्में की हैं, लेकिन इस फिल्म में उनका अभिनय काम चलाऊ लगता है। समझ नहीं आता कि ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जो उन्होंने यह फिल्म की।
सहायक कलाकारों ने लूट ली महफिल
फिल्म में राधिका, सुमित और राजेश से कहीं ज्यादा अच्छा काम इसके सहायक कलाकारों ने किया है। सुमित का शांतचित्त कातिल का किरदार असर नहीं छोड़ता, वहीं राजेश भी फिल्म देखने के बाद याद नहीं रह जाते। इन दोनों कलाकारों को देख लगता है कि इन्होंने बस फिल्म निपटाने का काम किया। दूसरी तरफ साहेब चटर्जी, रोशनी भट्टाचार्य और लबोनी सरकार को भले ही अपने अभिनय का दमखम दिखाने का मौका कम मिला, लेकिन वे अपने किरदार में रहे।
निर्देशक से नहीं फूटी मनोरंजन की मटकी
इस फिल्म का निर्देशन अनुश्री मेहता ने किया है। कहानी भी उन्हीं की है। डायलॉग भी उन्हीं के हैं और पटकथा का विभाग भी उन्हीं के जिम्मे है। इतनी सारी जिम्मेदारियां निभाने के चक्कर में फिल्म लड़खड़ा गई। वह न तो रोमांच भुना पाई, न कॉमेडी। फिल्म के अटपटे दृश्य देख आप आसानी से पकड़ लेंगे कि यह किसी नौसिखिया निर्देशक की उपज है। यह अनुश्री की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है, जिसमें उन्होंने मनोरंजन कम, ज्ञान ज्यादा दिया है।
संगीत और सिनेमैटाेग्राफी
इस फिल्म के गीत-संगीत में भी ऐसा कुछ खास नहीं, जिसकी तारीफ में कुछ कहा जाए या जो आपको गुनगुनाने पर मजबूर कर दे, वहीं फिल्म के दृश्य भी उतने प्रभावित नहीं करते। सिनेमैटोग्राफर की मेहनत पर्दे पर खास झलकती नहीं है।
जानें अन्य कमजोर कड़ियां
सबसे बड़ी कमियां कमजोर पटकथा, ढीला निर्देशन और क्लाइमैक्स की सुस्त रफ्तार है, वहीं कहने को तो यह कॉमेडी थ्रिलर है, लेकिन कॉमेडी और रहस्य नाम की कोई चीज इसमें नहीं है। कातिल की पोल पहले ही खुल जाती है और कॉमेडी देख हंसने के बजाय सिर पकड़कर रोने का दिल करता है। फिल्म जिस विचार को लेकर बनी, वो अच्छा है, लेकिन अगर किसी काबिल पटकथा लेखक ने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाए होते तो बात कुछ और होती।
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- करीब 1 घंटे 45 मिनट की इस फिल्म का डब्बा गाेल है। इसके कुछेक कलाकारों के लिए या अगर करने के लिए कुछ नहीं है तो आप इस पकाऊ और बेतुकी कहानी को एक मौका दे सकते हैं। क्यों न देखें?- कुल मिलाकर फिल्म हर पैमाने पर फीकी साबित होती है। कॉमेडी की तलाश में तो फिल्म कतई न देखें। फिर हंसी न आए तो ये मत कहना कि पहले बताया नहीं। न्यूजबाइट्स स्टार: 5 में 1.5 स्टार।