'मर्डर एट तीसरी मंजिल 302' रिव्यू: इरफान की फिल्म को ले डूबी कमजोर कहानी और निर्देशन

पिछले कुछ दिनों से फिल्म 'मर्डर एट तीसरी मंजिल 302' सुर्खियों में है। यह फिल्म इसलिए भी खास है, क्योंकि दिवंगत अभिनेता इरफान खान इसका हिस्सा हैं और 14 साल बाद अब उनकी यह फिल्म दर्शकों के बीच आई है। फिल्म ZEE5 पर स्ट्रीम हो रही है। नवनीत बाज सैनी ने इस फिल्म का निर्देशन किया है। फिल्म में इरफान खान, रणवीर शौरी, दीपल शॉ, लकी अली और नौशीन अली सरदार नजर आई हैं। आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।
इस फिल्म की पूरी कहानी बैंकॉक में भारतीय मूल के एक अमीर बिजनेसमैन अभिषेक दीवान (रणवीर शौरी), उसकी पत्नी माया (दीपल शॉ) और टूरिस्ट गाइड शेखर (इरफान खान) के इर्द-गिर्द घूमती है। अभिषेक की पत्नी अचानक गुम हो जाती है। फिर अचानक उसके पास किडनैपर शेखर का फोन आता है, जो उससे बड़ी फिरौती मांगता है, लेकिन अभिषेक उसे फिरौती देने के बजाय इस किडनैपिंग केस को एक तेज-तर्रार पुलिस अफसर तेजिंदर सिंह (लकी अली) को सौंप देता है।
तेजिंदर अपनी असिस्टेंट (नौशीन अली सरदार) के साथ मामले की जांच करने लगता है, लेकिन उसे कोई सुराग नहीं मिल पाता। अंत में थककर अभिषेक, शेखर को फिरौती दे देता है, लेकिन वह जैसे ही पैसे लेकर पहुंचता है तो उसके सामने उसकी पत्नी माया की लाश पड़ी होती है। माया का कत्ल किसने किया? उसके मर्डर से क्या फायदा होने वाला था? उसे किडनैप क्यों किया गया? इन्हीं सावालों का जवाब तलाशते हुए फिल्म खत्म हो जाती है।
फिल्म में हमेशा की तरह इरफान ने अपने किरदार के साथ इंसाफ किया, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उनकी यह फिल्म देख आप उनकी यादों में गोते खाने को मजबूर हो जाएंगे। इसके लिए आप उनकी पुरानी कई बेहतरीन फिल्में देख सकते हैं। पुलिसवाले के रूप में लकी अली का फनी अंदाज खास प्रभावित नहीं करता। रणवीर शौरी ने सही काम किया। 'कलयुग' गर्ल दीपल शॉ ओवरएक्टिंग करती दिखीं। नौशीन खूबसूरत लगीं, लेकिन उनका काम भी औसत रहा।
निर्देशक नवनीत बाज सैनी ने फिल्म में ट्विस्ट और टर्न डाले हैं, जिसके चलते अगले सीन को देखने का उत्साह रहता है, लेकिन वह इस मामले में ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं। फिल्म निर्देशन के साथ-साथ कच्ची कहानी की भेंट चढ़ गई। फिल्म का क्लाइमैक्स भी उन्होंने काफी सामान्य रखा है। यह कुछ ऐसा है, जिसे देख आप चौंकेंगे नहीं। निर्देशक ने किरदारों को लिखने में अगर और मेहनत की होती तो शायद वे पर्दे पर कमजोर नहीं लगते।
फिल्म में कुछ नया और रोचक नहीं है। पटकथा कमजोर है। इरफान के साथ दीपल शॉ का रेमांस भी थोड़ा अखरता है। 14 साल पुराने कॉन्सेप्ट वाली इस फिल्म को शायद उस समय पसंद किया जाता, क्योंकि अब दर्शकों की पसंद और मिजाज दोनों बदले हैं। फिल्म में बिना वजह कैमरा हिलता रहता है। लोकेशन तो बेशक अच्छी दिखाई गई हैं, लेकिन खूबसूरत चीज को खूबसूरत दिखा देना कोई कलाकारी नहीं। फिल्म की एडिटिंग पर भी जोर नहीं दिया गया।
अगर आप इरफान खान के फैन हैं तो आपको फिल्म देख सुकून मिलेगा, वहीं साजिद-वाजिद की जोड़ी वाले वाजिद खान के फैंस के लिए भी यह फिल्म खास है, क्योंकि वह भी अब इस दुनिया में नहीं हैं और फिल्म में उनका संगीत है। बाकी अगर सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों की दीवानगी आपके सिर चढ़कर बोलती है तो भी आप इस क्राइम थ्रिलर फिल्म को देखने का मन बना सकते हैं। इरफान की खातिर हमारी तरफ से फिल्म को दो स्टार।