
फिल्म 'लव हॉस्टल' रिव्यू: इस फीकी और सपाट कहानी के हीरो हैं बॉबी देओल
क्या है खबर?
दर्शक काफी समय से फिल्म 'लव हॉस्टल' की रिलीज की राह देख रहे थे। आज यानी 25 फरवरी को दर्शकों का यह इंतजार पूरा हो गया है। फिल्म ZEE5 पर आ गई है।
इसमें सान्या मल्होत्रा, विक्रांत मैसी और बॉबी देओल ने मुख्य भूमिका निभाई है। शंकर रमन को फिल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी गई और फिल्म शाहरुख खान के प्रोडक्शन हाउस रेड चिलीज एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी है।
आइए जानते हैं कैसी है 'लव हॉस्टल'।
कहानी
प्यार में प्यार के लिए भागते दिखे विक्रांत-सान्या
फिल्म की कहानी ऑनर किलिंग पर आधारित है। यह मुस्लिम लड़के अहमद उर्फ आशू (विक्रांत मैसी) और हिंदू लड़की ज्योति (सान्या मल्होत्रा) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो घरवालों से बगावत कर आशू से कोर्ट मैरिज करती है।
ज्योति की दादी कॉन्ट्रैक्ट किलर डागर (बॉबी देओल) को दोनों की सुपारी देती है, जिसके बाद डागर हाथ धोकर उनके पीछे पड़ जाता है।
डागर जात बिरादरी से बाहर प्रेम विवाह करने वालों को मौत के घाट उतारने के लिए जाना जाता है।
कहानी
प्यार के पंछियों को मिली पुलिस की पनाह
आशू और ज्योति को 'लव हॉस्टल' पहुंचते हैं, यह उस इमारत का नाम है, जिसमें घरवालों से भागकर शादी करने वाले जोड़े अदालत के आदेश पर पुलिस की सुरक्षा मे पनाह पाते हैं।
पुलिस दोनों को विश्वास दिलाती है कि यहां ये अपने हिंसक परिवार से सुरक्षित रहेंगे। हालांकि, दोनों वहां भी सुरक्षित नहीं होते।
उधर डागर की बंदूक के निशाने से कोई नहीं चूकता। अब इस प्रेम कहानी का क्या अंजाम होगा, यह जवाब आपको फिल्म में ढूंढना होगा।
अभिनय
बॉबी ने डाली कहानी में जान
फिल्म में सान्या का अभिनय समझ नहीं आता। इसे उनके करियर की अब तक की सबसे खराब परफॉर्मेंस कहना गलत नहीं होगा। सान्या ने अपने किरदार की जड़़ को मजबूती से नहीं पकड़ा।
विक्रांत अपने किरदार में जमे हैं। बॉबी ने किलर डागर का किरदार निभाकर वाकई डरा दिया है। पूरी फिल्म में आप बस उन्हें ही देखना चाहेंगे।
उनकी क्रूरता और गेटअप देखने लायक है। उन्हें देख आप कहेंगे कि एक बेहतरीन कलाकार कमजोर कहानी में फंसकर रह गया।
निर्देशन
निर्देशन में मात खा गए शंकर रमन
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक शंकर रमन की यह फिल्म देख ऐसा लगता है कि उन्होंने बिना किसी गहरी रिसर्च के एक लचर कहानी को फिल्म का रूप दे दिया।
शंकर ने फिल्म में बहुत कुछ दिखाने के चक्कर में कुछ भी सही से नहीं दिखाया। एक संवेदनशील विषय उन्होंने जरूर छुआ, लेकिन वह दर्शकों को इससे जोड़ने में नाकाम रहे।
फिल्म देखने के बाद आप भी शायद यही कहेंगे कि शंकर ने एक मजबूत विषय पर कमजोर फिल्म बनाई है।
खामियां
यहां भी रह गईं कमियां
फिल्म में सहयोगी कलाकारों को जगह देने में निर्माताओं ने कंजूसी कर दी। उन्हें कहानी से इतना दूर रखा गया कि फिल्म में उनका होना ना होना बराबर है।
फिल्म में रोमांच और रोमांस की कमी भी खलती है। बॉबी का काम बेशक बढ़िया है, लेकिन जिस तरह से उनका किरदार दर्जनों हत्याएं करता है, वो गले नहीं उतरता, क्योंकि उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है।
कहानी एक ही राह पर ऐसे दौड़ती है, मानों पटकथा लेखक जल्दी में थे।
निष्कर्ष
देखें या ना देखें?
ऑनर किलिंग पर अब तक तमाम फिल्में हम देख चुके हैं। 'लव हॉस्टल' में अगर कुछ नया देखने को मिलता है तो सरकार द्वारा घर से भागकर शादी करने वाले प्रेमियों को सुरक्षा देने के लिए बनाया गया 'शेल्टर होम'।
अगर आप बॉबी देओल के फैन हैं व खून-खराबे से भरपूर फिल्में पसंद करते हैं तो यह जरूरी आपकी कसौटी पर खरी उतरेगी। इसके अलावा यह फिल्म लंबी भी नहीं है।
हमारी तरफ से 'लव हॉस्टल' को दो स्टार।