'कटहल' रिव्यू: कॉमेडी की आड़ में सामाजिक मुद्दों पर प्रहार करती है फिल्म की कहानी
अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा ने बॉलीवुड में अपने अभिनय करियर की शुरुआत आमिर खान की फिल्म 'दंगल' से की थी और अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया था। सान्या की फिल्म 'कटहल: ए जैकफ्रूट मिस्ट्री' का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही दर्शक इसकी रिलीज को लेकर उत्साहित थे। यह फिल्म आज यानी 19 मई को नेटफ्लिक्स पर आ गई है। इस फिल्म में कितना दम है, जानने के लिए पहले पढ़िए इसका रिव्यू।
कटहलों की खोजबीन के इर्द-गिर्द घूमती कहानी
मंत्री के घर से 2 बेशकीमती कटहल लापता हो जाते हैं। चोरी नेता जी के यहां हुई है, इसलिए पुलिस महकमा कटहल खोजने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। पुलिस अधिकारी बनीं महिमा बसोर (सान्या) को केस सौंपा जाता है, जो "निचली जाति" की है, जिसके चलते उसे कई दफा जलील होना पड़ता है। छानबीन शुरू होती है तो लड़कियों की तस्करी की सच्चाई सामने आती है। कहानी आगे दिलचस्प है, लेकिन कुछ आपके लिए भी छोड़ देते हैं।
फिल्म की खास बातें
1 घंटा 55 मिनट की इस हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म की खास बात है कि ये अलग अंदाज में जातिवाद, भ्रष्टाचार, लिंगवाद, अमीरी-गरीबी और लड़कियों की तस्करी जैसे मुद्दों पर चोट करती है। पत्रकार बने राजपाल यादव मजेदार हैं, जो कटहल की चोरी के इस केस को सनसनीखेज बना देते हैं। फिल्म में फालतू की डायलॉबाजी नहीं है और जो है, वो बढ़िया है, जैसे पत्रकार राजपाल बोलते हैं- "धक्का काहे मार रहे हो, चौथे खंभे को गिरा ही दोगे क्या?"
अभिनय के मोर्चे पर कौन-कितना अव्वल?
पुलिस अधिकारी बनीं सान्या ने देह-भाषा से लेकर बोली-भाषा तक में अपनी पकड़ बनाए रखी। उन्हें देख लगता है मानों वह मथुरा से ही ताल्लुक रखती हों। मंत्री के किरदार में भले ही विजय राज ने बढ़िया काम किया, लेकिन पत्रकार बने राजपाल ने महफिल लूट ली। उनकी कॉमिक टाइमिंग खूब लोटपोट करती है। दूसरी तरफ रघुबीर यादव थोड़ी देर के लिए आए, लेकिन मजमा लूट ले गए। अनंत जोशी, बृजेंद्र काला और नेहा सराफ अपने-अपने किरदार में जमे हैं।
निर्देशक हो गए पास
निर्देशन की बात करें तो यशोवर्धन मिश्रा की तारीफ करनी होगी, जो एक साफ-सुथरी और मजेदार कहानी दर्शकों के बीच परोसने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ से फिल्म के लिए कलाकारों को चुना और जिस विचार के साथ निर्देशक ने यह फिल्म बनाई, वह उस कसौटी पर खरे उतरे हैं। मथुरा के मुहावरे भी उन्होंने बड़ी समझदारी से निकाले हैं। फिल्म शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखती है और उनकी पकड़ पूरी फिल्म में बनी रहती है।
संगीत और सिनेमैटाेग्राफी
फिल्म का संगीत राम संपत का है, जो सुकुन देने वाला है और कहानी का पूरा साथ देता है। खासकर 'राधे-राधे' याद रह जाता है। बात करें सिनेमैटोग्राफी की तो मध्य प्रदेश को इसमें खूबसूरती से जोड़ा गया है, जो कहानी में वास्तविकता लाता है।
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- कटहल का रहस्य सुलझाती यह फिल्म चेहरे पर एक मुस्कान लाती है और सोचने पर मजबूर करती है, जो किसी भी व्यंगात्मक सिनेमा की सबसे बड़ी जरूरत है। फिल्म फिजूल का उपदेश नहीं देती, वहीं इसका क्लाइमैक्स भी कमाल का है। क्यों न देखें?- अगर आप सोशल कॉमेडी फिल्मों से परहेज करते हैं तो 'कटहल' आपके लिए नहीं है, वहीं निर्माता गुनीत मोंगा से अगर कुछ ज्यादा ही उम्मीदें हैं तो यह फिल्म न देखें। न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5