'राम सेतु' रिव्यू: वैज्ञानिकता और पौराणिकता के बीच उलझ गए निर्माता
अक्षय कुमार की चर्चित फिल्म 'राम सेतु' 25 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह इस साल अक्षय की पांचवी फिल्म है। दिवाली का मौके पर रिलीज होने के कारण फिल्म काफी समय से चर्चा में थी। 'राम सेतु' के तथ्यों से छेड़छाड़ के कारण फिल्म विवादों में भी थी। फिल्म का लेखन और निर्देशन अभिषेक शर्मा ने किया है। आइए आपको बताते हैं राम सेतु पर बनी यह फिल्म कैसी है।
भगवान राम के अस्तित्व को नकारने से स्वीकारने का सफर है 'राम सेतु'
डॉक्टर आर्यन (अक्षय) एक नास्तिक आर्कियोलॉजिस्ट (पुरातत्त्वविद्) है जो सिर्फ तथ्यों और प्रमाणों पर विश्वास करता है। एक प्राइवेट शिपिंग कंपनी निजी फायदे के लिए राम सेतु तोड़ना चाहती है। इसके लिए उसे सुप्रीम कोर्ट में यह साबित करना है कि राम सेतु एक प्राकृतिक संरचना है। यह जिम्मेदारी नास्तिक डॉक्टर आर्यन को मिलती है। खोज के दौरान आर्यन को हर तथ्य राम सेतु और भगवान राम की ऐतिहासिक प्रामाणिकता सिद्ध करने वाले मिलते हैं और खेल पलट जाता है।
बिना कोई इमोशन के अभिनय करते दिखे अक्षय और जैकलिन
'राम सेतु' में पर्दे पर अधिकतर समय अक्षय और जैकलिन फर्नांडिस की मौजूदगी रहती है। फिल्म में जैकलिन एक पर्यावरण वैज्ञानिक बनी हैं। दोनों ही कलाकार फिल्म के इमोशन को अपने एक्सप्रेशन में उतारने में विफल रहे हैं। नुसरत भरुचा को फिल्म में सीमित स्क्रीन स्पेस ही मिला। अपने सादगी भरे छोटे से किरदार में वह सहज दिखीं। वरिष्ठ अभिनेता नास्सर को पर्दे पर देखना अच्छा लगता है। वहीं प्रवेश राणा ने भी अपना नकारात्मक किरदार कुशलता से निभाया है।
तथ्यों और कल्पनाओं के बीच उलझ गए निर्माता
राम सेतु एक मानव निर्मित संरचना है और राम काल्पनिक किरदार नहीं हैं, फिल्म इसी बात को प्रामाणित करने के लिए आगे बढ़ती है। वैज्ञानिकता और पौराणिकता के बीच झूलती स्क्रिप्ट दोनों से ही पकड़ खो बैठी। यहां तक कि फिल्म के तथ्य ही काल्पनिक हैं। फिल्म में 'सेतु समुद्रम परियोजना' को आधार बनाया गया है जबकि उसके आगे की कहानी काल्पनिक है। ऐसे में फिल्म कहां तथ्य दिखा रही है कहां कल्पना, यह दर्शकों के लिए समझना मुश्किल है।
न्यूजबाइट्स प्लस
2005 में सेतुसमुद्रम परियोजना की आधारशिला रखी गई थी। इस परियोजना के तहत भारत-श्रीलंका के बीच एक शिपिंग कैनाल बनाया जाना तय था, जिससे जहाजों की आवाजाही का समय बचेगा। इससे राम सेतु को होने वाले नुकसान के कारण लोगों ने इसका विरोध किया था।
न विज्ञान न पौराणिकता, दर्शकों को किसी तरह नहीं बांध पाई फिल्म
डर, रोमांच, रोमांस, ऐक्शन, यहां तक कि रामभक्ति की भावना भी फिल्म नहीं बना पाई। फिल्म का ऐक्शन बिल्कुल बचकाना है, कई थ्रिलिंग सीन हैं जो बिना कोई रोमांच पैदा किए निकल जाते हैं। यहां तक कि आर्यन की टीम की एक साथी की मौत भी बिना भावुक किए आगे बढ़ जाती है। संगीत से रोमांच भरने की कोशिश की गई है, लेकिन स्क्रिप्ट और अभिनय की कमजोरी के कारण वह भी विफल ही रही।
देखें या न देखें?
क्यों देखें- अगर आप अक्षय के इतने बड़े प्रशंसक हैं कि उनके लिए बिना सिर-पैर की फिल्म देख सकते हैं, तो यह फिल्म देख लीजिए। क्यों न देखें- अगर आपको ट्रेलर देखने के बाद फिल्म से वैज्ञानिक तथ्य देखने की उम्मीद है तो आप निराश होंगे। रामभक्ति और पौराणिकता के कारण आप यह फिल्म घर के बुजुर्गों को दिखाना चाहते हैं तो भी आप पछताएंगे। न्यूजबाइट्स स्टार- 1/5