'गुडबाय' रिव्यू: कहानी से ज्यादा एक भावना है फिल्म, अमिताभ ने किया भावुक
अमिताभ बच्चन और नीना गुप्ता की फिल्म 'गुडबाय' 7 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म से 'पुष्पा' फेम अभिनेत्री रश्मिका मंदाना ने बॉलीवुड में डेब्यू किया है। फिल्म का निर्देशन विकास बह्ल ने किया है। रश्मिका के डेब्यू के कारण यह फिल्म चर्चा में थी। ट्रेलर देखने से फिल्म दो पीढ़ियों की सोच में टकराव की कहानी लगती है। हालांकि, वास्तव में फिल्म में इसके अलावा बहुत कुछ है। जानते हैं कैसी है फिल्म 'गुडबाय'।
किसी की मौत के बाद परिवार के संघर्ष की कहानी है 'गुडबाय'
फिल्म का प्लॉट एक अंतिम संस्कार पर आधारित है। हरीश भल्ला (अमिताभ) की पत्नी गायत्री (नीना) की मौत हो चुकी है। उनके अंतिम संस्कार के लिए दोनों के सभी बच्चे घर आते हैं। बेटी तारा (रश्मिका) अंतिम संस्कारों के विधी-विधानों में तर्क ढूंढती है। नई पीढ़ी अपने तरीके से इस गम का सामना करती है। वहीं, हरीश को लगता है कि बच्चों के पास महसूस करने के लिए कुछ नहीं है और वह खुद को अकेला महसूस करते हैं।
हिंदी में कमजोर रह गईं रश्मिका, अमिताभ ने किया भावुक
यह फिल्म कहानी से ज्यादा एक भावना है। इस भावना को फिल्म के कलाकारों ने बखूबी प्रस्तुत किया है। फिल्म में अमिताभ के दृश्य कई बार रोंगटे खड़े कर देते हैं। रश्मिका की हिंदी कहीं-कहीं कच्ची लगती है जिसकी वजह से उनके दृश्य भी कमजोर पड़ जाते हैं। पवैल गुलाटी ने बाहर से सख्त और व्यस्त, वहीं अंदर से मां के जाने से गमगीन बेटे के रूप में बेहतरीन प्रस्तुति दी है।
अंतिम संस्कार के बहाने कई बातें कह गए निर्देशक
'गुडबाय' में अंतिम संस्कार के इर्द-गिर्द कई तत्वों को पिरोया गया है। बेहतर निर्देशन से भावनाएं दर्शकों तक पहुंचने में कामयाब रही हैं। तारा हर रिवाज में तर्क ढूंढती है और निर्देशक चुपके से उन रिवाजों के पीछे का इमोशन बता जाते हैं। एक विदेशी किरदार (एली अवराम) को रखकर भारतीय संस्कृति की बारीक झलकियों को दिखाया गया है। परंपराएं हैं, जिनके पीछे तर्क ढूंढना बेइमानी है, वे बस मजबूत भावनाएं हैं जो सालों से लोगों को जोड़े हैं।
इन दृश्यों का जिक्र भी है जरूरी
फिल्म में एक मोनोलॉग है जहां हरीश, गायत्री की अस्थियों से बात करते हैं। इस मोनोलॉग में पीछे छूट गए साथी का दर्द झलकता है। इस दृश्य में अमिताभ का अभिनय झकझोर देने वाला है। एक दृश्य में करण (पवैल) भूल जाता है कि मां अब नहीं है और वह मां को पुकार देता है। इस दृश्य में पवैल के अभिनय के साथ बैकग्राउंड स्कोर और कैमरा मां को खोने का दर्द बिना कुछ कहे दिल तक पहुंचाते हैं।
एकसाथ हंसाने और रुलाने का काम करता है संवाद और म्यूजिक का मेल
फिल्म की सिनेमेटोग्रफी और बैकग्राउंड म्यूजिक का मेल फिल्म की जान हैं। फिल्म में कई अलग-अलग बातें हैं। बाप-बेटी का टकराव, गायत्री की जिंदादिल यादें, हरीश और गायत्री की लवस्टोरी और आखिर में जिंदगी और मौत के बीच का बारीक फर्क। इन सबके बीच बैकग्राउंड म्यूजिक किसी की मौत के बाद छाए खालीपन को बरकरार रखता है। फिल्म के संवाद सहजता से छोटे-छेटे संदेश दे जाते हैं। ये गम के माहौल में बीच-बीच में हंसाने का भी काम करते हैं।
फिल्म में सुनील ग्रोवर भी दिखे
'गुडबाय' में कॉमेडियन सुनील ग्रोवर ने भी अमिताभ और रश्मिका के साथ स्क्रीन शेयर किया है। फिल्म में पंडित के किरदार में उनका नया अंदाज देखना अच्छा लगता है।
कहीं से शुरू हुई फिल्म कहीं और जाकर होती है खत्म
हैपी एंडिंग देने की प्रक्रिया में फिल्म थोड़ी लंबी हो गई है। अंत होते-होते फिल्म का इमोशन भारी लगने लगता है। जेनरेशन गैप, अंधविश्वास, संस्कृति, सुख-दुख और जीवन-मृत्यु जैसे कई तत्व एक ही फिल्म में होने से लगता है कि फिल्म शुरू कहीं से हुई और खत्म कहीं और हो रही है। फिल्म कहीं-कहीं आपको 'बागबान' वाले मोड में ले जाती है। वहीं कई जगह यह सान्या मल्होत्रा की 'पगलैट' और इरफान खान की 'कारवां' की याद दिलाती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
फिल्म में अरुण बाली ने गायत्री के पिता का किरदार निभाया है। एक डायलॉग में वह कहते हैं, "पिछली बार जब मुझे हार्ट अटैक आया तो मुझे लगा मेरा राइट टर्न (मौत) हो गया।" दुर्भाग्य से शुक्रवार को ही बाली का निधन हो गया।
देखें या न देखें?
क्यों देखें- लगातार आ रहीं बॉलीवुड मसाला फिल्मों के बीच एक ऐसी फिल्म आई है जो दिल की गहराइयों को छूती है। अमिताभ या रश्मिका के प्रशंसक हैं तो भी यह फिल्म देख सकते हैं। क्यों न देखें- भावुक फिल्में भारी लगती हैं तो इस फिल्म को मत देखिए। हाल-फिलहाल में किसी अपने को खोया है तो यह फिल्म आपको परेशान कर सकती है। न्यूजबाइट्स स्टार- 3.5/5