'डिस्पैच रिव्यू: इस बेतुकी कहानी में पत्रकार से कहीं ज्यादा जासूस बनकर रह गए मनोज बाजपेयी
अभिनेता मनोज बाजपेयी अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए जाने जाते हैं। पिछली बार वह फिल्म 'भैया जी' में दिखे थे। उनकी इस फिल्म की कहानी भले ही दर्शकों को पसंद नहीं आई, लेकिन इसमें उनके अभिनय की खूब तारीफ हुई। पिछले कुछ समय से अभिनेता फिल्म 'डिस्पैच' को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। कनु बहल के निर्देशन में बनी उनकी यह फिल्म 13 दिसंबर को ZEE5 पर रिलीज हो गई है। आइए जानें कैसी है यह फिल्म।
क्राइम पत्रकार के आसपास बुनी गई इस कहानी का कोई सिरा नहीं
कहानी अखबार में काम करने वाले जॉय बाग (मनोज) नाम के एक क्राइम पत्रकार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो पत्रकार कम जासूस ज्यादा लगता है। अभिनेत्री शहाणा गोस्वामी उसकी पत्नी श्वेता की भूमिका में हैं, जिससे उसका रिश्ता तलाक की कगार पर है और अपनी साथी पत्रकार प्रेरणा (अर्चिता अग्रवाल) से उसका चक्कर चल रहा है। उधर रंगीन मिजाज का जॉय क्राइम खबरों का पीछा करते हुए हजारों करोड़ रुपये के घोटाले को दुनिया के सामने लाने में जुटा है।
नायक बन गया 'जेम्स बॉन्ड'
मनोज फिल्म में जेम्स बॉन्ड बनकर रह गए हैं, जिसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं। वह पुलिस कस्टडी में बंद आदमी पर लाठियां बरसाकर भी उससे पूछताछ कर सकता है। 'सिर्फ एक बंदा' के बाद से मनोज लगातार अपने प्रशंसकों की परीक्षा ले रहे हैं।
मनोज के दीवानों का 'दंड' बनी 'डिस्पैच'
मनोज के प्रशंसक फिल्म को लेकर उतावले हो रहे हैं, लेकिन उनके लिए यह फिल्म किसी टॉर्चर से कम नहीं। फिल्म में अभिनेता को एक ऐसे शख्स के रूप में दिखाया गया है, जो शारीरिक सबंधों का भूखा है। प्रशंसकों को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसी कौन-सी मजबूरी थी, जो मनोज ने इस फिल्म के लिए हामी भरी। खैर, इसमें गलती निर्देशक की भी हैं, जिन्होंने इस दिग्गज अभिनेता की कमाल की एक्टिंग को बर्बाद कर दिया।
अव्वल नंबर से पास हुईं अर्चिता
शहाणा का काम फिल्म में ठीक-ठाक है, लेकिन नई हीरोइन अर्चिता अग्रवाल ने कमाल कर दिया है। वह फिल्म में अव्वल नंबर हैं। उन्हें फिल्म की असली हीरो कहना गलत नहीं होगा। अर्चिता खूबसूरत हैं, बिंदास हैं और काबिल हैं। उनका भविष्य उज्जवल लगता है।
निर्देशन में बुरी तरह मात खा गए कनु बहल
'आगरा' और 'तितली' जैसी फिल्में बना चुके कनु बहल ने 'डिस्पैच' के साथ कतई न्याय नहीं किया। उन्होंने एक क्राइम ड्रामा फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। कहानी के मोर्चे पर कनु बुरी तरह पिछड़ गए। ना कहानी में नयापन है और ना ही निर्देशन में। बची-खुची कसर स्क्रीनप्ले ने पूरी कर दी। बिन सिर-पैर की इस कहानी में जरा भी मसाला नहीं है। रोमांच तो कोसों दूर है।
कमियों की कमी नहीं
कुल मिलाकर फिल्म में देखने लायक कुछ भी नहीं है। कहीं भी कुछ भी आ जाता है। उधर मनोज ने निराश किया है। उन्होंने अपनी छवि के अनुरूप किरदार का चयन नहीं किया। घर के बड़े लोग इस फिल्म को बच्चों के साथ तो कतई नहीं देख सकते। फिल्म में जरूरत से ज्यादा आपत्तिजनक दृश्य और गाली-गलौज है। शारीरिक संबंधों के बजाय अगर कहानी, 2G घोटाले या फिल्म की एडिटिंग पर गौर किया गया होता तो शायद कुछ बात बनती।
फिल्म देखें या ना देखें?
क्यों देखें? इतनी कमियां जानने के बावजूद अगर 90 मिनट की 'डिस्पैच' देखने की हिम्मत है तो इसका मतलब पक्का आप बाजपेयी साहब के फैन हैं। वैसे फिल्म में उनका बाेल्ड अवतार देखने को मिला है, जो आपने पहले पर्दे पर कभी नहीं देखा होगा। कम से कम उनके प्रशंसकाें के लिए कुछ तो नया है ही। क्यों ने देखें? अगर क्राइम थ्रिलर या रोमांच की उम्मीद से यह फिल्म देखने वाले हैं तो निराशा हाथ लगेगी। न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5