'ब्लैकआउट' रिव्यू: दिमाग की बत्ती बुझा देगी विक्रांत मैसी और सुनील ग्रोवर की ये फिल्म
पिछली बार अभिनेता विक्रांत मैसी को फिल्म '12वीं फेल' में देखा गया था, जिसमें उनका अभिनय काबिल-ए-तारीफ था। यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी। इसके बाद से ही दर्शक बड़ी बेसब्री से अभिनेता की अगली फिल्म 'ब्लैकआउट' की राह देख रहे थे। अब आखिरकार 7 जून को यह फिल्म जियो सिनेमा पर रिलीज हो गई है। मौनी रॉय भी इस फिल्म का हिस्सा हैं। आइए जानते हैं देवांग भावसार के निर्देशन में बनी यह फिल्म कैसी है।
एक अंधेरी रात की कहानी
एक अंधेरी रात की इस कहानी में क्राइम रिपोर्टर लेनी डिसूजा (विक्रांत) अपनी पत्नी के लिए अंडा पाव लेने के लिए घर से निकलता है। पूरे शहर की बिजली गुल हो जाती है और इसी के साथ लेनी के जीवन में भी अंधकार छा जाता है। उसकी गाड़ी लुटेरों के गिरोह की वैन से टकराती है, जिसके पलटने से कोई जिंदा नहीं बचता। आगे पहुंचते-पहुंचते इस कमजोर कहानी का इतना दम निकल जाता है कि देखने लायक कुछ नहीं बचता।
कलाकारों की डूब गई लुटिया
'12वीं फेल' जैसी बेहतरीन फिल्म में उम्दा प्रदर्शन के बाद विक्रांत का कद बॉलीवुड में इतना बढ़ गया है कि यह फिल्म अभिनय के मामले में बड़ी बौनी साबित होती है। क्या सोचकर उन्होंने फिल्म के लिए हामी भरी, उम्मीद है कि ईमानदारी से वह इसका जवाब देंगे। उधर सुनील ग्रोवर का किरदार कहीं-कहीं बड़ा नकली और हास्यास्पद लगता है, वहीं मौनी फिल्म में शो पीस बनकर रह गईं या कहें कि उन्हें कुछ करने का मौका ही नहीं मिला।
निर्देशक ने किया फिल्म का बंटाधार
कहानी के नाम पर फिल्म धोखा है, जो इतना थका देती है कि सोचने-समझने की बैटरी डाउन कर देती है। न तो किरदार असरदार हैं, ना गीत-संगीत। हां, कलाकारो को बर्बाद कैसे किया जाता है, यह फिल्म देख जरूर मालूम पड़ता है। 2 घंटे की इस फिल्म के अंत तक पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं। जियो सिनेमा का यह नया दाग शुक्र है सिनेमाघरों में नहीं लगा। निर्देशक ने इसे सिनेमाघरों में ना लाकर बड़ी अक्लमंदी का काम किया।
कमियां और भी हैं
विक्रांत, मौनी और सुनील की भागती-दौड़ती कॉमेडी जहां भेजा फ्राय कर देती है, वहीं एक्शन देख बस सिर पकड़कर रोने का मन करता है। दिमाग में ख्याल कौंधते हैं कि फिल्म बनाने की निर्माता-निर्देशक की ऐसी कौन-सी मजबूरी थी। कहानी पहले फ्रेम से अपने अनुमानित ढर्रे पर चलती है। इसमें ऐसा कुछ खास नहीं, जिसे लेकर दर्शकों में उत्तेजना जाग सके। रोमांच और मजे की राह देखते-देखते फिल्म खत्म हो जाती है और उम्मीदों का शॉर्ट सर्किट हो जाता है।
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- अगर विक्रांत के फैन हैं तो ही आप इस फिल्म को देखने की हिम्मत जुटा सकते हैं। फिल्म तब भी देखी जा सकती है, जब आप दिमाग के सारे बटन बंद रखें। अगर आप थोड़ा भी सचेत होकर 'ब्लैकआउट' देखेंगे तो शर्तिया फ्यूज उड़ जाएगा और दिमाग की बत्ती गुल हो जाएगी। क्यों न देखें?- फिल्म कहने को सस्पेंस थ्रिलर है, यह सोचकर फिल्म देखेंगे तो ठगे रह जाएंगे। कुल मिलाकर इसे झेलना मुश्किल है। न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5