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मेटा कर रही हजारों कर्मचारियों की छंटनी, क्या है इसकी वजह?
मेटा क्यों कर रही है कर्मचारियों की छंटनी?

मेटा कर रही हजारों कर्मचारियों की छंटनी, क्या है इसकी वजह?

Nov 10, 2022
02:52 pm

क्या है खबर?

मेटा और ट्विटर समेत कई टेक कंपनियों ने हालिया दिनों में छंटनी का ऐलान किया है। इसके पीछे वैश्विक मंदी की आहट, कंपनियों की गिरती कमाई और ऊंची ब्याज दरों समेत कई कारण बताए जा रहे हैं। फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा अपने इतिहास की सबसे बड़ी छंटनी करने जा रही है और वह एक ही झटके में अपने 11,000 कर्मचारियों को पिंक स्लिप थमा रही है। आइये जानते हैं कि कंपनी ऐसा क्यों कर रही है।

उद्देश्य

लागत कम करने पर ध्यान दे रही है मेटा

छंटनी के साथ-साथ मेटा ने कंपनी की लागत कम करने के लिए दूसरे कदम भी उठाए हैं। इनमें अन्य मदों के खर्चे कम करना और अगले साल की पहली तिमाही तक नई भर्तियों पर रोक आदि शामिल है। छंटनी से पहले ही मेटा ने इसके संकेत दे दिए थे और कर्मचारियों के लिए उपलब्ध मुफ्त कपड़े धुलने, परिवार के लिए मुफ्त डिनर घर ले जाने और ड्राई क्लीनिंग जैसी सुविधाओं को बंद कर दिया था।

कारण

कंपनी को ऐसा क्यों करना पड़ा?

मेटा के इस फैसले के पीछे दो बड़े कारण माने जा रहे हैं। इनमें से पहले गिरती कमाई और दूसरा मेटावर्स में जा रहा पैसा है। दरअसल, कोरोना वायरस महामारी के दौरान दुनियाभर में पाबंदियां रहीं और लोगों को घरों में बैठना पड़ा। इसके चलते उन्होंने अपना अधिकतर समय ऑनलाइन बिताया था। महामारी का असर कम होने के बाद यह ट्रेंड जारी नहीं रहा। इसके अलावा फेसबुक को टिकटॉक से भी कड़ी टक्कर मिल रही है।

जानकारी

मेटावर्स की फंडिंग से नाखुश हैं निवेशक

कंपनी की तरफ से मेटावर्स में लगाए जा रहे पैसे से निवेशक खुश नहीं है। मेटा ने इस प्रोजेक्ट के लिए सालाना 10 बिलियन डॉलर का फंड आवंटित किया है, लेकिन निवेशकों का हिस्सा इसमें कम हो रहा है। मेटावर्स पर काम कर रहा कंपनी का रियलटी लैब 3.67 बिलियन डॉलर के नुकसान में चल रहा है और अगले यह घाटा और बढ़ेगा। इसके अलावा 2020 की आखिरी तिमाही के बाद अब उसकी कमाई भी कम हुई है।

बयान

मार्क जुकरबर्ग का इस पर क्या कहना है?

कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि महामारी की शुरुआत में दुनिया तेजी से ऑनलाइन हो गई और ई-कॉमर्स में बूम देखने को मिला। कई लोगों को लगा कि यह ट्रेंड लगातार चलता रहेगा। जकरबर्ग ने अपने पत्र में लिखा, 'मुझे भी ऐसा लगा। इसलिए मैंने निवेश बढ़ाने का फैसला किया, लेकिन दुर्भाग्य से वैसा नहीं हुआ, जैसा मैंने सोचा था। मैं इसे लेकर गलत था और इसकी जिम्मेदारी लेता हूं।'

बयान

उम्मीद से कम हो रही कमाई- जुकरबर्ग

जुकरबर्ग ने आगे लिखा कि अब न केवल ऑनलाइन कॉमर्स पुरानी पटरी पर लौट आया है बल्कि व्यापक मंदी, बढ़ते मुकाबले और विज्ञापन में कमी के कारण राजस्व उम्मीद से कम हो रहा है।

सवाल

क्या मेटावर्स के काम पर असर पड़ेगा?

तमाम मुश्किलों के बाद भी जकरबर्ग ने संकेत दिए हैं कि कंपनी मेटावर्स पर लगातार ध्यान देती रहेगी। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, 'हमने हमारे ज्यादा संसाधन अधिक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों- AI डिस्कवरी इंजन, हमारे विज्ञापन और बिजनेस प्लेटफॉर्म्स और मेटावर्स के लिए हमारे लंबे अवधि वाले विजन पर शिफ्ट कर दिए हैं।' इससे साफ संकेत मिलता है कि मेटावर्स के काम पर कंपनी का निवेश पहले की तरह जारी रहेगा।

चुनौतियां

कंपनी को क्या चुनौतियां आ रही हैं?

मेटा की विज्ञापनों से होने वाली कमाई कम हो रही है और दुनियाभर के डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ देखा जा रहा है। इसे संभावित वैश्विक मंदी का शुरुआती संकेत समझा जा रहा है। इसके अलावा ऐपल की तरफ से iOS में ऐप ट्रेकिंग ट्रांसपेरेंजी शामिल किए जाने के बाद मेटा की चुनौती और बढ़ गई है। इसके जरिये यूजर डेवलपर्स को वह यूनिक ID क्रिएट करने से रोक सकता है, जिसकी मदद से लक्षित विज्ञापन दिखाए जाते हैं।

असर

भारत के फेसबुक कर्मचारियों पर क्या असर पड़ेगा?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में काम कर रहे फेसबुक के कर्मचारियों पर भी इस छंटनी का असर पड़ा है और लगभग सभी विभागों से कर्मचारियों की छुट्टी हुई है। हालांकि, इस फैसले से कितने कर्मचारी प्रभावित हुए हैं, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है और न ही कंपनी की भारतीय शाखा से इस पर कोई टिप्पणी की गई है। कुछ दिन पहले ही कंपनी के भारत प्रमुख अजित मोहन ने इस्तीफा दे दिया था।

न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)

तेज होने लगी है मंदी की आहट

पिछले काफी समय से जानकार और कई संस्थाएं मंदी का अनुमान व्यक्त कर चुकी है। मेटा के अलावा कई अन्य टेक कंपनियों ने भी छंटनी की है और उनमें से अधिकतर ने इसके पीछे संभावित मंदी को एक वजह बताई है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी ने मंदी की आशंका व्यक्त करते हुए कहा था कि महामारी के चरण को छोड़ दें तो साल 2001 के बाद से फिलहाल वैश्विक विकास दर सबसे कमजोर है।