रेपो रेट में बदलाव शेयर बाजार को कैसे प्रभावित करता है?
देश में बढ़ती महंगाई को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बुधवार को रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है। इसके साथ रेपो रेट बढ़कर 4.40 प्रतिशत हो गई है। इससे पहले RBI ने 22 मई, 2020 को रेपो रेट में बदलाव किया था। रेपो रेट में बढ़ोतरी की घोषणा के साथ ही शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। आइये जानते हैं रेपो रेट में बदलाव शेयर बाजार को कैसे प्रभावित करता है।
क्या होती है रेपो रेट?
सबसे पहले रेपो रेट को समझने की जरूरत है। जिस प्रकार लोग अपनी जरूरतों के लिए बैंकों से पैसा लेकर ब्याज चुकाते हैं उसी प्रकार बैंकों को केंद्रीय बैंक यानी RBI से लोन लेना पड़ता है। ये बैंक RBI से लोन लेने के बाद जिस दर पर ब्याज चुकाते हैं, उसे रेपो रेट कहा जाता है। रेपो रेट को देश में महंगाई नियंत्रित करने और विकास को गति देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
शेयर बाजार में आई बड़ी गिरावट
RBI के रेपो रेट बढ़ाने का ऐलान करने के साथ ही इसका सबसे पहले असर शेयर बाजार पर देखने को मिला है। सेंसेक्स में 1,300 से अधिक अंकों की गिरावट देखी गई है। बुधवार शाम को सेंसेक्स 1,307 अंकों की बड़ी गिरावट के साथ 55,669 का कारोबार किया है। इसी तरह निफ्टी 391 अंक टूटकर 16,678 के स्तर पर आ गया। बता दें कि रेपो रेट में बढ़ोतरी की संभावना के बाद सुबह से बाजार में गिरावट देखी थी।
रेपो रेट का शेयर बाजार से क्या है संबंध?
शेयर बाजार और ब्याज दर का विपरीत संबंध है। RBI जब भी रेपो रेट बढ़ाता है तो इसका असर शेयर बाजारों पर देखने को मिलता है। रेपो रेट में बढ़ोतरी के बाद कंपनियों को विस्तार पर खर्च में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इससे विकास में गिरावट आती है और लाभ और भविष्य का नकदी प्रवाह प्रभावित होता है। इसके चलते शेयरों की कीमतों में कमी शुरू हो जाती है और शेयर बाजारों में गिरावट आती है।
ब्याज दरों में बढ़ोतरी से होता है बचत में इजाफा
दूसरे शब्दों में कहें तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी से बचत में तो इजाफा हो जाता है, लेकिन अर्थव्यवस्था में पूंजी के प्रवाह में कमी आ जाती है। इसके चलते शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिलती है। इसके अलावा रेपो रेट में बदलाव का प्रभाव सभी क्षेत्रों पर समान प्रभाव नहीं डालता है। पूंजीगत सामान, बुनियादी ढांचा, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) या फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) जैसे क्षेत्रों के शेयरों में आमतौर पर बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता है।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
रेपो रेट बढ़ाने से वाणिज्यिक बैंकों के लिए उधार महंगा हो जाता है। बैंक ब्याज की इस अतिरिक्त लागत को कर्जदारों पर डाल देते हैं। ऐसे में कर्जदारों को ऋण लेने के लिए अधिक ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। इससे कर्ज की मांग कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो कम कर्जदार होने से बाजार में भी कम पैसा होता है। इससे खर्च कम होता है और वस्तुओं और सेवाओं की लागत भी कम हो जाती है।
RBI ने क्यों बढ़ाई है रेपो रेट?
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि बढ़ती मंहगाई, भू-राजनैतिक परिस्थितियों, कच्चे तेल के ऊंचे दाम और वैश्विक स्तर पर कमॉडिटी की कमी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है और इसे देखते हुए यह फैसला किया गया है। बता दें कि RBI की यह बैठक पहले से निर्धारित नहीं थी। अचानक से यह बैठक बुलाई गई और इसमें आम आदमी को जोरदार झटका देने वाला फैसला लिया गया। हालांकि, इसकी संभावना पहले से जताई जा रही थी।
मार्च में 17 महीने में सबसे अधिक रही थी महंगाई दर
बता दें कि देश में मार्च में महंगाई दर 6.95 प्रतिशत रही जो पिछले 17 महीने में सबसे अधिक है। महंगाई दर में ये उछाल सब्जी, दूध, मीट और अनाज जैसी खाद्य सामग्रियों और ईंधन की कीमत में उछाल के कारण आया है।