अगले साल अप्रैल से कम हो सकता है आपका इन-हैंड वेतन, जानिए क्या है कारण
कर्मचारियों के लिए एक बुरी खबर आई है। अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत यानी अप्रैल महीने से कर्मचारियों के इन-हैंड वेतन में कटौती हो सकती है। इस कारण नियोक्ता नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की ओर से लागू किया गया नियम होगा। दरअसल, केंद्र सरकार के कोड ऑन वेजेज 2019 के तहत बोनस और मजदूरी के संदर्भ में बनाए गए नियम के तहत अब कर्मचारियों के वेतन का बड़ा हिस्सा उनके सेवानिवृत्ति कोष में जमा कराया जाएगा।
संसद में पिछले साल पास हुआ था 'कोड ऑन वेज बिल'
बता दें कि कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभ को बढ़ाने के लिए सरकार ने पिछले साल संसद में कोड ऑन वेज बिल, 2019 (मजदूरी विधेयक पर संहिता) को पास कराया था। इसमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, मजदूरी भुगतान अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम जैसे श्रम कानून शामिल हैं। केंद्रीय श्रम और रोजगार सचिव अपूर्वा चंद्रा ने अक्टूबर में इसे 1 अप्रैल, 2021 से लागू करने को कहा था।
नए नियम के तहत क्या होगा?
नियमों के अनुसार, ग्रेच्युटी और भविष्य निधि का योगदान कर्मचारियों के कुल वेतन का कम से कम 50 प्रतिशत होना चाहिए। इस नियम का पालन करने के लिए नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों के मूल वेतन को 50 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा। इसका मतलब यह होगा कि कर्मचारियों के इन-हैंड वेतन में कटौती हो सकती है। हालांकि, इस नियम के लागू होने के बाद निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर पहले की तुलना में अधिक लाभ मिल सकेगा।
नियमों का पालन के लिए कंपनियों को करना होगा वेतन का पुनर्गठन
पेरोल विशेषज्ञों ने मिंट को बताया कि वास्तविक वेतन के आधार पर भविष्य निधि (PF) में योगदान देने वाली कंपनियों को नए नियमों को लागू करने के लिए अपने सभी कर्मचारियों के वेतन का फिर से पुनर्गठन करना होगा। वर्तमान में नियोक्ता और कर्मचारी PF विकल्प को अपनी मर्जी से छोड़ सकते हैं, लेकिन इस नियम के बाद यदि किसी कर्मचारी का मूल वेतन 15,000 होगा तो नियोक्ता और कर्मचारियों को 12 प्रतिशत राशि PF में जमा करानी होगी।
अधिकांश निजी कंपनियां मूल वेतन को रखती है कम
अधिकांश निजी कंपनियां वर्तमान में अपने कर्मचारियों के मूल वेतन को 50 प्रतिशत से कम रखती है और अन्य भत्तों को 50 प्रतिशत से अधिक रखती है। नए नियम पर व्यापार सेवा प्रदाता कंपनी क्वेस कॉर्प के लोहित भाटिया ने कहा, "सामान्य रूप से कंपनियां कर्मचारियों के वेतन को CTC ब्रेक-अप पर ले जाती है। इसका मतलब है कि नियोक्ता कर्मचारियों का मूल वेतन 50 प्रतिशत से कम तथा घर सहित अन्य भत्तों को अधिक रखती है।