नोटबंदी के बाद दो सालों में गईं 50 लाख लोगों को नौकरियां- रिपोर्ट
मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी का असगंठित क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा और इसकी वजह से लगभग 50 लाख लोगों को नौकरियां चली गई। बेंगलुरू स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट (CSE) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का ऐलान करते हुए 500 और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया था। आइये, जानते हैं इस रिपोर्ट में क्या कहा गया है।
नौकरियां जाना अर्थव्यवस्था के लिए खराब संकेत
रिपोर्ट लिखने वाले CSE के प्रमुख प्रोफेसर अमित बसोले ने इस रिपोर्ट को लेकर हफिंगटन पोस्ट से बात की। उन्होंने कहा कि कहीं और नौकरियां बढ़ी हों, लेकिन यह तय है कि 50 लाख लोगों को नौकरियां गई हैं और यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज गति से बढ़ रही है, ऐसे में नौकरियों का जाना अच्छा नहीं माना जा सकता। नौकरियां घटने की बजाय बढ़नी चाहिए थी।
नोटबंदी के समय से शुरू हुई नौकरियों में गिरावट
प्रोफेसर बसोले ने बताया कि आंकड़ों के मुताबिक, नौकरियों में गिरावट आना नोटबंदी के समय (सितंबर-दिसंबर 2016) के दौरान शुरू हुआ था और यह सितंबर-दिसंबर 2018 तक चलता रहा। बतौर रिपोर्ट, अभी भी यह स्थिति सामान्य नहीं हुई है।
नोटबंदी और बेरोजगारी में सीधा संबंध नहीं
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के समय नौकरियां जानी शुरू हुई थी, लेकिन यह इन दोनों के बीच सीधा संबंध स्थापित नहीं करती। इस बारे में जब बसोले से पूछा गया कि नौकरियां जाने का क्या कारण हो सकता है तो उन्होंने कहा, "जहां तक असंगठित अर्थव्यवस्था का मुद्दा है मुझे लगता है कि नोटबंदी और GST (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) के अलावा नौकरियां जाने का कोई और कारण नहीं है।"
20-24 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा बेरोजगारी
रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 के बाद से बेरोजगारी की दर में लगातार इजाफा हो रहा है और 2016 के बाद यह अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गई। रिपोर्ट में बताया गया है कि 20-24 आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। युवा कामगारों के वर्ग में रोजगार के मौकों की कमी पर गंभीर चिंता जताई गई है। साथ ही कहा गया है कि यह बात शहरी और ग्रामीण पुरुष और महिलाओं पर लागू होती है।