महज 1 रुपये में अपनी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रही है जेट एयरवेज, जानें क्यों

कर्ज में डूबी निजी एयरलाइंस कंपनी जेट एयरवेज अपने 50 प्रतिशत से अधिक शेयर महज 1 रुपये में बेचने जा रही है। यह समझौता भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाले बैंक समूह से होगा, जिसके बाद कंपनी को दिए गए कर्ज का पुनर्गठन होगा और इसके बाद कंपनी पर महज 1 रुपये का कर्ज रह जाएगा। समझौते पर आखिरी फैसला 21 फरवरी को होगा। आइए आपको जेट एयरवेज के इतिहास और इसके कर्ज में डूबने की पूरी कहानी बताते हैं।
जेट एयरवेज की शुरुआत टिकट एजेंट रहे नरेश गोयल ने 1 अप्रैल, 1992 को की थी। कंपनी की एंट्री ने हवाई सफर में सरकारी कंपनियों के एकाधिकार को तोड़ा था और यह पिछले 3 दशक से देश की शीर्ष 3 एयरलाइंस में शामिल है। अभी कंपनी में आबुधाबी की एतिहाद एयरवेज की 24 प्रतिशत हिस्सेदारी है और इसका भारत के 13.9 प्रतिशत बाजार पर कब्जा है। कंपनी लंदन और सिंगापुर समेत कई अंतरराष्ट्रीय जगहों के लिए भी उड़ान भरती है।
जेट एयरवेज की मुसीबत इंडिगो, स्पाइसजेट, गो एयर आदि नई निजी कंपनियों के मुकाबले में आने से शुरु हुआ। रेस में बने रहने के लिए कंपनी ने किराया कम करना शुरु कर दिया। लेकिन जेट फ्यूल पर भारी टैक्स और यात्रियों द्वारा खाने और मनोरंजन पर प्रीमियम चुकाने में कोताही के चलते कंपनी की कमाई में गिरावट आने लगी। जेट एयरवेज अन्य कंपनियों की तुलना में कई सुविधाएं मुफ्त में भी प्रदान करती है।
पिछले 11 साल में अगर 2 साल को छोड़ दिया जाए तो हर साल जेट एयरवेज को नुकसान हुआ और अभी कंपनी पर 7,299 करोड़ रुपये का कर्ज है। कंपनी को कर्ज का जो हिस्सा 31 दिसंबर तक चुकाना था, उस पर खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था। कर्मचारियों को वेतन देने में भी कंपनी की ओर से देरी हुई है। बता दें कि जेट एयरवेज को वापस खड़े होने के लिए लगभग 8,500 करोड़ रुपये की जरूरत है।
भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाले एक बैंक समूह ने 11.4 करोड़ नए शेयर जारी करके कंपनी के 50.1 प्रतिशत शेयर 1 रुपये में खरीदने का प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव के तहत कंपनी पर जो कर्ज है वह शेयर में बदल जाएगा और इसके सफलतापूर्वक पूरे होने पर कंपनी पर महज 1 रुपये का कर्ज रह जाएगा। हालांकि, यह प्रस्ताव अस्थाई है और यह कंपनी को निवेशकों से पैसा जुटाने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करेगा।
जेट एयरवेज 23,000 लोगों को नौकरी प्रदान करती है। अगर कंपनी बंद होती है तो सभी की नौकरी जाएगी और रोजगार के मुद्दे पर पहले से ही घिरी सरकार के लिए मुसीबत बढ़ेगी। कंपनी के बंद होने से प्रधानमंत्री मोदी की व्यापार हितैषी साख पर भी बट्टा लग सकता है। अगले कुछ महीनों में देश में चुनाव होने वाले हैं और सरकार ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहेगी। कंपनी के बंद होने पर हवाई किराए बढ़ने की भी आशंका है।