कोरोना वायरस: एक साथ इतनी वैक्सीन क्यों तैयार की जा रही है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस की कम से कम 165 संभावित वैक्सीन्स पर काम चल रहा है। इनमें से कुछ ट्रायल के शुरूआती तो कुछ अंतिम चरणों में हैं। रूस अक्टूबर से नागरिकों को कोरोना वैक्सीन देना शुरू कर देगा। इन सबके बीच एक सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस की इतनी वैक्सीन पर काम क्यों हो रहा है? क्या एक ही वैक्सीन काफी नहीं रहती? आइये, इनके जवाब जानते हैं।
संभावित में से कुछ ही वैक्सीन बाजार तक आ पाती हैं
कोरोना वायरस संकट के समय भले ही कई कंपनियां वैक्सीन की रेस में लगी हुई हैं, लेकिन यह काफी पेचीदा काम होता है। इसमें समय के साथ-साथ संसाधनों की बहुत जरूरत पड़ती है। साथ ही यह जोखिम भरा काम होता है। इन सबके बावजूद इसमें सफलता की संभावना बेहद कम होती है। केवल एक चौथाई संभावित वैक्सीन ही प्री-क्लिनिकल ट्रायल से क्लिनिकल ट्रायल में पहुंच पाती हैं और उनमें से ही कुछ को हरी झंडी मिलती हैं।
ट्रायल का तीसरा चरण बेहद महत्वपूर्ण
ऑक्सफोर्ड और मॉडर्ना की संभावित वैक्सीन इंसानी ट्रायल के अंतिम चरण में पहुंच गई है और उम्मीद है कि कुछ ही महीनों में उन्हें बाजार में उतार दिया जाएगा। हालांकि, सच्चाई इससे थोड़ी अलग है। तीसरे चरण को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। पिछले चरणों में मिले नतीजों के आधार पर इस चरण की कामयाबी की अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। अगर इस चरण में मनमाफिक नतीजे नहीं मिलते हैं तो ये वैक्सीन रेस से बाहर हो सकती हैं।
दुनिया को कई वैक्सीन्स की जरूरत है
मौजूदा हालातों को देखते हुए हर देश जल्द से जल्द वैक्सीन पाना चाहता है। इसे देखते हुए केवल एक वैक्सीन काफी नहीं रहेगी। अमेरिका जैसे देशों ने पहले से ही वैक्सीन की लाखों खुराक को बुक कर लिया है। इसकी वजह से गरीब देश शुरुआत में वैक्सीन पाने से वंचित रह सकते हैं। इसलिए कई देश खुद की वैक्सीन बनाने के काम में लगे हैं। इजिप्ट, थाईलैंड, नाइजीरिया जैसे देश में इस रेस में शामिल हैं।
इसलिए भी वैक्सीन बनाने में जुटे कई देश
ये देश वैक्सीन बनाने के लिए नहीं जाने जाते हैं। अगर इन्हें दूसरों की तुलना में देरी से भी वैक्सीन मिलती है तब भी इनका उसके उत्पादन और वितरण पर पूरा हक रहेगा और इन्हें दूसरे देशों की तरफ नहीं देखना पड़ेगा।
मांग को देखते भी कई वैक्सीन की जरूरत
इसके अलावा और भी कई कारण हैं, जिनके लिए कई वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के आदर पूनावाला कहते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पहली वैक्सीन ही सबसे कारगर होगी। इन्हें जल्दी में तैयार किया जा रहा है। ऐसे में हो सकता है कि जो वैक्सीन बाद में आए वो पहली की तुलना में ज्यादा अच्छे नतीजे दें। इसके अलावा मांग को देखते हुए एक वैक्सीन काफी नहीं रहेगी।
नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है
कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए कई नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इनमें से कुछ ऐसी भी हैं, जिनसे आजतक सफलता नहीं मिली है। उदाहरण के लिए आजतक किसी वैक्सीन बनाने के लिए DNA और RNA आधारित प्रक्रिया को सफलता नहीं मिली है, लेकिन कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी वजह यह है कि ये आसान होती है और इससे वैक्सीन जल्दी बनने की उम्मीद है।
पैसे की उपलब्धता
आमतौर पर वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया बहुत खर्चीली होती है और केवल कोई बड़ी कंपनी ही यह काम कर सकती है, लेकिन कोरोना वायरस ने स्थिति बदल दी है। अब सरकारों, कंपनियों, दानदाताओं और दूसरी एजेंसियों ने वैक्सीन निर्माण के लिए अपने भंडार खोल दिए हैं। यहां तक की लैबोरेट्री में उत्साहजनक नतीजे दिखाने वाली वैक्सीन को भी पैसा दिया जा रहा है। इसलिए भी ज्यादा संख्या में वैक्सीन तैयार की जा रही है।
भारत में आठ संभावित वैक्सीन पर चल रहा काम
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक 160 से ज्यादा संभावित वैक्सीन पर काम जारी है। इनमें से 23 क्लिनिकल ट्रायल में जा चुकी है। क्लिनिकल ट्रायल में पहुंची वैक्सीन में छह ऐसी हैं, जो इंसानी ट्रायल के अंतिम चरण में हैं और कुछ ही महीनों में इनके नतीजे सामने आ जाएंगे। भारत में भी आठ संभावित वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें से दो इंसानी ट्रायल में पहुंच चुकी हैं।