कोरोना वायरस वैक्सीन: चूहों पर ट्रायल में मॉडर्ना ने पार की शुरुआती बाधा, उम्मीद जगी
कोरोना वायरस (COVID-19) से बचाव के लिए वैक्सीन बनाने में जुटी अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना सही दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है। हाल ही में कंपनी की वैक्सीन का चूहों पर ट्रायल किया गया, जिसमें पता चला कि यह किसी दूसरी गंभीर बीमारी का खतरा पैदा नहीं करती है। शुक्रवार को ट्रायल के शुरुआती आंकड़े जारी किए गए, जिसमें यह भी पता चला है कि इसकी एक डोज कोरोना वायरस से बचाव में कारगर है।
वैक्सीन के ट्रायल में आती है यह बाधा
इससे पहले कोरोना वायरस से जनित SARS (सिवयर एक्युट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम) जैसी दूसरी बीमारियों की वैक्सीन के साथ यह खतरा रहता था कि वो मरीजों को गंभीर रूप से बीमार कर सकती थी। अगर कोई मरीज वैक्सीन लेने के बाद किसी वायरस से संक्रमित होता था तो वह उसके लिए घातक साबित हो सकती थी। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और जल्दी बीमार हो जाने वाले लोगों के लिए यह खतरा और ज्यादा बढ़ जाता था।
बाधा पार कर मॉडर्ना ने जगाई उम्मीद
वैज्ञानिक इस खतरे को किसी वैक्सीन के इंसानों पर ट्रायल शुरू करने में बड़ी बाधा मानते थे। इस बार मॉडर्ना यह बाधा पार करती हुई दिख रही है, जिससे इंसानी ट्रायल के जल्दी शुरू होने की उम्मीद जगी है।
शुरुआती आंकड़ों ने जगाया भरोसा, लेकिन सवाल बरकरार
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसीज (NIAID) और मॉडर्ना की तरफ से जारी किए गए ये आंकड़े भरोसा जरूर जगाते हैं, लेकिन अभी तक का ट्रायल सभी जरूरी सवालों के जवाब देने में नाकाम रहा है। पेपर देखने वाले मायो क्लिनिक के वैक्सीन रिसर्चर डॉक्टर ग्रेगॉरी पौलेंड ने कहा, "यह प्राथमिक जानकारी की शुरुआत है। यह पेपर अधूरा और काफी बिखरा हुआ है और ट्रायल के लिए लिए गए चूहों की संख्या भी कम थी।"
जुलाई से अंतिम चरण का ट्रायल शुरू करेगी मॉडर्ना
अभी इस पेपर का पीयर रिव्यू होना भी बाकी है। पेपर लिखने वालों ने कहा कि उन्होंने रिव्यू के लिए इसे जमा करा दिया है। बता दें कि मॉडर्ना की वैक्सीन का स्वस्थ वॉलेंटियर पर ट्रायल जारी है। कंपनी ने बताया कि वह 30,000 लोगों के साथ इस वैक्सीन का अंतिम चरण का ट्रायल शुरू करने की योजना बना रही है। गौरतलब है कि मॉडर्ना कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने की रेस में काफी आगे चल रही है।
चूहों पर कैसे किया गया ट्रायल?
ट्रायल के दौरान चूहों को वैक्सीन की अलग-अलग डोज वाले दो इंजेक्शन दिए गए। इनमें से कुछ में ऐसी डोज भी शामिल थी, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए पर्याप्त नहीं मानी जा सकती। इसके बाद वैज्ञानिकों ने चूहों को कोरोना वायरस से संक्रमित किया। इसके बाद विश्लेषण में पता चला कि डोज देने से चूहों में वैक्सीन से जुड़ी कोई बीमारी देखने को नहीं मिली। साथ ही यह वायरस को कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकती है।
संक्रमण से बचाने के लिए एक डोज पर्याप्त
ट्रायल करने वाली टीम ने बाताया कि वैक्सीन फेफड़ों और नाक में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में सफल होती दिख रही है और इसका कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ रहा। टीम ने बताया कि जिन चूहों को एक डोज की दी गई थी, वो सात सप्ताह बाद फेफड़ों में किसी भी संक्रमण से पूरी तरह बचे हुए थे। इससे पता चलता है कि फेफड़ों में वायरस को फैलने से रोकने के लिए एक डोज काफी है।
कैसे काम करती है कोई वैक्सीन?
वैक्सीन के जरिये हमारे इम्युन सिस्टम में कुछ मॉलिक्यूल्स, जिन्हें वायरस का एंटीजंस भी कहा जाता है, भेजे जाते हैं। आमतौर पर ये एंटीजंस कमजोर या निष्क्रिय रूप में होते हैं ताकि हमें बीमार न कर सकें, लेकिन हमारा शरीर इन्हें गैरजरूरी समझकर एंटी-बॉडीज बनानी शुरू कर देता है ताकि उनसे हमारी रक्षा कर सके। आगे चलकर अगर हम उस वायरस से संक्रमित होते हैं तो एंटी-बॉडीज वायरस को मार देती हैं और हम बीमार होने से बच जाते हैं।