कोरोना वायरस: ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के ट्रायल के नतीजों पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका कंपनी की कोरोना वायरस वैक्सीन के इंसानी ट्रायल के नतीजों ने कई सवालों को जन्म दिया है। कम खुराक वाले समूह में वैक्सीन के ज्यादा प्रभावी पाए जाने समेत अन्य कुछ मुद्दों ने विशेषज्ञों को दुविधा में डाल दिया है और इसे नियामक मंजूरी मिलने पर भी आशंका व्यक्त की जा रही है। आइए आपको बताते हैं कि वैक्सीन के ट्रायल के क्या नतीजे रहे थे और इस पर क्यों सवाल उठ रहे हैं।
क्या रहे थे वैक्सीन के ट्रायल के नतीजे?
एस्ट्राजेनेका ने इसी सोमवार को अपनी वैक्सीन के अंतिम चरण के ट्रायल के नतीजों का ऐलान किया था। ट्रायल में शामिल 131 लोगों के संक्रमित पाए जाने के बाद जारी किए गए इन नतीजों में वैक्सीन को औसतन 70.4 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था। कंपनी के अनुसार, वैक्सीन को पहले आधी खुराक और फिर पूरी खुराक वाले 2,800 लोगों के समूह में 90 प्रतिशत और दोनों पूरी खुराक वाले 8,900 लोगों के समूह में 62 प्रतिशत प्रभावी पाया गया।
अलग-अलग खुराक के नतीजों को लेकर उठ रहे सबसे ज्यादा सवाल
कंपनी के ये नतीजे जारी करने के बाद ही ट्रायल के आंकड़ों पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। सबसे अहम सवाल अलग-अलग खुराक दिए जाने पर वैक्सीन की प्रभावशीलता में इतने बड़े अंतर और कम खुराक वाले समूह में इसके ज्यादा प्रभावी पाए जाने पर उठे थे। आमतौर पर वैक्सीनों को ज्यादा खुराक वाले समूहों में अधिक प्रभावी पाया जाता है, लेकिन इस वैक्सीन का मामला उल्टा कैसे है, कंपनी इस सवाल का जबाव देने में नाकामयाब रही है।
कंपनी ने माना गलती से दी गई थी आधी खुराक
इसके बाद एस्ट्राजेनेका ने अपने एक बयान में स्वीकार किया कि उसकी ट्रायल में शामिल किसी भी शख्स को आधी खुराक देने की योजना नहीं थी, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में हुई एक गलत गणना के कारण ऐसा हुआ। कंपनी ने अपने शुरूआती बयान में ये जानकारी नहीं दी थी और इससे न सिर्फ उसकी पारदर्शिता पर सवाल उठे, बल्कि पूरे ट्रायल के नतीजों और उसकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
55 साल के कम उम्र के ही लोगों को दी गई थी आधी खुराक
इसके बाद मंगलवार को अमेरिकी सरकार के ऑपरेशन वार्प स्पीड के प्रमुख मोनसेफ स्लाउई के एक बयान ने एस्ट्राजेनेका की मुसीबतों और बढ़ा दी और नए सवालों को जन्म दिया। अपने इस बयान में स्लाउई ने बताया कि ट्रायल में शामिल जिन लोगों को पहले आधी खुराक दी गई और जिनमें वैक्सीन को 90 प्रतिशत प्रभावी पाया गया, वे 55 साल से कम उम्र के थे और इससे अधिक उम्र के लोगों पर इसका ट्रायल नहीं हुआ है।
अलग-अलग खुराकों की प्रभावशीलता जानने के लिए फिर से ट्रायल कर सकती है कंपनी
इन्हीं सब सवालों के कारण ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की इस वैक्सीन के ट्रायल पर सवाल उठ रहे हैं और कम से कम अमेरिका में इसे आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिलने पर आशंका व्यक्त की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनी को अधिक प्रभावी साबित हुए पहले आधी और फिर पूरी खुराक वाले रेजिमन की विश्वसनीयता को साबित करने के लिए फिर से ट्रायल करना पड़ सकता है और कंपनी इसकी तैयारी भी कर रही है।
विकासशील और गरीब देशों की सबसे बड़ी उम्मीद है यह वैक्सीन
बता दें कि एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ये वैक्सीन कोरोना वायरस महामारी से मुक्ति पाने के लिए भारत समेत अन्य विकासशील और गरीब देशों की सबसे बड़ी उम्मीद है। इसका सबसे अहम कारण इसकी कीमत है और ये फाइजर और मॉडर्ना जैसी अन्य कंपनियों के मुकाबले बेहद सस्ती है। इसके अलावा ये सामान्य फ्रीजर में महीनों तक रखा जा सकता है, वहीं फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीनों को बेहद कम तापमान पर रखने की जरूरत होती है।