भारत में बनी कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीन बाकियों की तुलना में कहां है?
देश में कोरोना वायरस (COVID-19) के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच पहली स्वदेशी संभावित वैक्सीन को इंसानी ट्रायल की मंजूरी मिल गई है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने भारत बॉयाटेक इंडिया लिमिटेड (BBIL) को इसकी वैक्सीन कोवैक्सिन (Covaxin) के इंसानों पर पहले और दूसरे ट्रायल की मंजूरी दे दी है। अगले महीने से देशभर में इस संभावित वैक्सीन के ट्रायल शुरू हो जाएंगे। भारत बायोटेक देश की पहली कंपनी है, जिसे यह अनुमति मिली है।
कोवैक्सिन को कैसे तैयार किया गया है?
भारत बायोटेक ने पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर यह संभावित वैक्सीन तैयार की है। NIV ने मई में बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज से वायरस का स्ट्रेन आइसोलेट किया और इसे BBIL को भेजा। उसके बाद कंपनी ने इसका इस्तेमाल करते हुए हैदराबाद में 'इनएक्टिवेटेड' वैक्सीन बनाने का काम शुरू किया। इंसानी ट्रायल के लिए मंजूरी लेने से पहले कंपनी ने चूहों और दूसरे जानवरों पर इसका ट्रायल किया था।
इस मंजूरी के क्या मायने हुए?
भारत बायोटेक को DGCI की तरफ से पहले और दूसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी मिली है। इससे भारत इस खतरनाक वायरस की वैक्सीन तैयार करने के एक कदम और पास पहुंच गया है। देश में तेजी से फैलते संक्रमण के बीच यह एक महत्वपूर्ण सफलता है। पहले चरण में कम लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल होगा। इसमें देखा जाएगा कि मरीज को कितनी खुराक देना सुरक्षित होगा और इसके कोई बुरे प्रभाव तो नहीं होंगे।
दूसरे चरण में ज्यादा लोगों पर होगा ट्रायल
दूसरे चरण में ट्रायल का दायरा बढ़ाकर सैकड़ों लोगों को इसमें शामिल किया जाएगा। इसमें उम्र और लिंग के आधार पर खुराक आदि की मात्रा देखी जाएगी। इसमें यह पता लगा जाएगा कि यह वैक्सीन कितनी प्रभावी होगी।
अभी कितनी मंजूरी और चाहिए?
दूसरी नई दवाओं की तरह वैक्सीन को भी कई चरणों से गुजरना पड़ता है। इसकी शुरुआत प्री-क्लिनिकल ट्रायल से शुरू होकर तीसरे चरण पर जाकर रूकती है, जिसमें हजारों लोगों पर इसका ट्रायल किया जाता है। इन सब चरणों में सफल रहने के बाद इसे मंजूरी मिलती है, लेकिन कंपनी का काम यहीं नहीं रूक जाता। कंपनी को वैक्सीन बाजार में उतारने के बाद भी मरीजों पर इसके इस्तेमाल पर नजर रखनी होती है और इसकी जानकारी देनी होती है।
दूसरी भारतीय कंपनियां कहां तक पहुंचीं?
देश में भारत बायोटेक के अलावा जाइडस केेडिला, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और पेनेसिया बायोटेक भी इस महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन बनाने के काम पर लगी हुई हैं। पेनेसिया ने इसी महीने से काम शुरू किया है तो यह अभी प्री-क्लिनिकल चरण में है। वहीं बाकी दोनों कंपनियों के बारे में अभी तक जानकारी नहीं मिली है कि उनका काम कहां तक पहुंचा है और क्या उन्होंने क्लिनिकल ट्रायल के लिए आवेदन कर दिया है।
दुनिया की बाकी वैक्सीन के मुकाबले कहां है कोवैक्सिन?
कोवैक्सिन के अलावा भारत बायोटेक वैश्विक साझेदारी के तहत दो अन्य वैक्सीन पर भी काम कर रही है। कंपनी की पहली साझेदारी थॉमस जेफरसेन यूनिवर्सिटी और दूसरी यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कन्सिन-मेडिसन और फ्लूजेन के साथ है। ये दोनों वैक्सीन अभी प्री-क्लिनिकल ट्रायल में है, जबकि कोवैक्सिन इनसे आगे बढ़ते हुए क्लिनिकल ट्रायल के चरण में पहुंच गई है। इसके बावजूद यह एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की 'ChAdOx1-S' से काफी पीछे है। यह ट्रायल के तीसरे चरण पर पहुंच चुकी है।
दुनियाभर में वैक्सीन की क्या स्थिति?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कोवैक्सिन के अलावा दुनियाभर में कम से कम छह ऐसी दूसरी संभावित वैक्सीन हैं, जो दूसरे या तीसरे चरण में पहुंच गई है, जबकि पांच ऐसी हैं, जो पहले चरण में है।
कैसे काम करती है कोई भी वैक्सीन?
वैक्सीन के जरिये हमारे इम्युन सिस्टम में कुछ मॉलिक्यूल्स, जिन्हें वायरस का एंटीजंस भी कहा जाता है, भेजे जाते हैं। आमतौर पर ये एंटीजंस कमजोर या निष्क्रिय रूप में होते हैं ताकि हमें बीमार न कर सकें, लेकिन हमारा शरीर इन्हें गैरजरूरी समझकर एंटी-बॉडीज बनानी शुरू कर देता है ताकि उनसे हमारी रक्षा कर सके। आगे चलकर अगर हम उस वायरस से संक्रमित होते हैं तो एंटी-बॉडीज वायरस को मार देती हैं और हम बीमार होने से बच जाते हैं।
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