
नैंसी पोलेसी की ताइवान यात्रा से भड़का चीन, क्या है दोनों के बीच विवाद?
क्या है खबर?
नैंसी पोलेसी की ताइवान यात्रा को लेकर चीन और अमेरिकी आमने-सामने हैं। बीते दो दशकों से ज्यादा समय बाद अमेरिका के किसी इतने बड़े नेता ने ताइवान की यात्रा की है।
अमेरिका के इस कदम से चीन चिढ़ा हुआ है और उसने इस यात्रा को 'बेहद खतरनाक' करार दिया है। चीन ने गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देते हुए कहा कि वह चुप नहीं बैठेगा।
आइये जानते हैं कि पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर चीन गुस्से में क्यों है।
पृष्ठभूमि
अघोषित दौरे पर ताइवान पहुंची हैं पेलोसी
अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी अघोषित दौरे पर ताइवान पहुंची हैं। पेलोसी ने बुधवार को सेंट्रल ताइपेई में स्थित राष्ट्रपति कार्यालय जाकर राष्ट्रपति त्सेई-इंग-वेन से मुलाकात की और स्थानीय मीडिया में इसका लाइव प्रसारण किया गया।
चीन चूंकि ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, इसलिए उनसे पेलोसी की यात्रा पर आपत्ति जताई है। चीन का आरोप है कि अमेरिका ताइवान में अलगाववादियों की आजादी की मांग को हवा दे रहा है।
विवाद
ताइवान को लेकर क्या है विवाद?
ताइवान चीन के दक्षिण-पूर्वी तट से लगभग करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित एक द्वीप है।
चीन उसे अपना हिस्सा मानता है, वहीं ताइवान खुद को स्वतंत्र देश के तौर पर देखता है। उसका अपना संविधान है और वहां लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनी गई है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बयान दे चुके हैं कि ताइवान का 'एकीकरण' पूरा होकर रहेगा। उनके बयान से संकेत मिलता है कि वो इसके लिए ताकत के इस्तेमाल से भी परहेज नहीं करेंगे।
इतिहास
कभी एक होते थे चीन और ताइवान
BBC के अनुसार, दूसरे विश्वयुद्ध के करीब ताइवान और चीन अलग हुए थे। उस वक्त चीन में सरकार चला रही नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संघर्ष चल रहा था। 1949 में माओत्से तुंग की अगुवाई में कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और बीजिंग पर काबिज हो गई।
इसके बाद कुओमिंतांग समर्थक चीन से भागकर ताइवान द्वीप पर चले गए। आगे चलकर यह ताइवान की महत्वपूर्ण पार्टी बन गई और यहां अधिकतर उसी की सरकार रही है।
द्विपक्षीय संबंध
तनावपूर्ण बने हुए हैं चीन और ताइवान के संबंध
पिछले कुछ समय से चीन और ताइवान के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।
चीन कई मौके पर ताइवान के एयरस्पेस में अपने लड़ाकू विमान भेजकर उस पर दबाव बनाने की कोशिश कर चुका है।
खबरें हैं कि जिस वक्त पेलोसी ताइपेई में ताइवानी राष्ट्रपति के साथ मुलाकात कर रही थीं, उस वक्त भी चीन ने ताइवान के एयरस्पेस का उल्लंघन किया था।
पिछले साल अक्टूबर में एक दिन में 56 चीनी विमान ताइवानी एयरस्पेस में घुसे थे।
कारण
चीन को क्यों चाहिए ताइवान पर नियंत्रण?
कई विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन ताइवान को कब्जे में ले लेता है तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में उसका दबदबा बढ़ जाएगा। इससे गुआम और दूसरे द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर खतरा बढ़ जाएगा।
हालांकि, चीन इन आशंकाओं का खारिज करते हुए कहता है कि वह शांतिपूर्ण इरादों से आगे बढ़ रहा है।
वहीं यह अमेरिका के सहयोगी माने जाने वाले द्वीपों में शामिल है, जो उसकी विदेश नीति के लिए बेहद जरूरी है।
तुलना
ताकत के मामले में चीन के मुकाबले कहीं नहीं ताइवान
अगर तनाव बढ़ता जाता है और दोनों देश एक-दूसरे के आमने-सामने आते हैं तो सैन्य ताकत में चीन के मुकाबले ताइवान कहीं नहीं ठहरता।
चीन के पास सक्रिय सैनिकों की संख्या 20 लाख से अधिक है, जबकि ताइवान में केवल 1.6 लाख सक्रिय सैनिक हैं।
चीनी वायुसेना में चार लाख के करीब लोग है, जबकि ताइवान की वायुसेना के केवल 35,000 लोग हैं। नौसेना में भी चीन के मुकाबले ताइवान बेहद कमजोर है।