चीन की धमकियों के बावजूद ताइवान पहुंचकर राष्ट्रपति से मिलीं नैंसी पेलोसी
चीन की तरफ से लगातार मिल रही धमकियों के बावजूद अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान पहुंचकर यहां की राष्ट्रपति से मुलाकात की है। पेलोसी ने बुधवार को सेंट्रल ताइपेई में स्थित राष्ट्रपति कार्यालय जाकर राष्ट्रपति त्सेई-इंग-वेन से मुलाकात की और इसका लाइव प्रसारण किया गया था। चीन ने धमकी दी थी कि अगर पेलोसी ताइवान की यात्रा करती हैं तो दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव बढ़ सकता है।
मुलाकात के बाद ताइवान की राष्ट्रपति ने क्या कहा?
पेलोसी से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति वेन ने साफ संकेत दे दिए हैं कि ताइवान अब चीन के आगे झुकेगा नहीं। वेन ने पेलोसी का धन्यवाद करते हुए कहा कि उनके ताइवान से गहरे संबंध हैं। इस दौरान उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ताइवान में लोकतंत्र के खिलाफ आक्रमकता दिखाई जाती है तो इसका असर पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में होगा। ताइवान अब पीछे नहीं हटेगा और राष्ट्रीय संप्रभुता को मजबूती से बनाए रखेगा।
अघोषित दौरे पर ताइवान पहुंची हैं पेलोसी
पेलोसी ने अपना दौरा शुरू करने से पहले यह जानकारी नहीं दी थी कि वो ताइवान जाएंगी। उनके कार्यक्रम में मलेशिया, सिंगापुर, जापान और दक्षिण कोरिया दौरे की जानकारी थी, लेकिन ताइवान का जिक्र नहीं था। पिछले 25 सालों में यह किसी बड़े अमेरिकी नेता की पहली ताइवान यात्रा है। चीन ने इस यात्रा को बहुत खतरनाक बताते हुए अमेरिका को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। उसने अमेरिकी राजदूत को भी तलब किया है।
चीन और अमेरिका ने दौरे पर क्या कहा?
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि ताइवान का इस्तेमाल कर अमेरिका चीन को घेरने की कोशिश में है। अमेरिका लगातार 'वन चाइना' नीति को चुनौती और ताइवान में अलगाववादियों की आजादी की मुहिम को हवा दे रहा है। अमेरिका आग से खेल रहा है और यह बहुत खतरनाक है। वहीं अमेरिका ने कहा कि उसकी 'वन चाइना' नीति में कोई बदलाव नहीं आया है और इस यात्रा को बड़े संकट में बदलने की जरूरत नहीं है।
ताइवान इतना महत्वपूर्ण क्यों बना हुआ है?
ताइवान चीन के दक्षिण-पूर्वी तट से लगभग करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित एक द्वीप है। चीन उसे अपना हिस्सा मानता है, वहीं ताइवान खुद को स्वतंत्र देश के तौर पर देखता है। उसका अपना संविधान है और वहां लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनी गई है। अगर चीन यहां कब्जा करता है तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में उसका दबदबा बढ़ जाएगा। दूसरी तरफ ताइवान उन द्वीपों में शामिल हैं, जो अमेरिका की विदेश नीति के लिए जरूरी माने जाते हैं।
ताइवान का चिप उद्योग पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण
स्मार्टफोन, लैपटॉप, घड़ियों और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में लगने वाली चिप्स में से आधी से अधिक अकेले ताइवान में बनती हैं। अगर यहां चीन कब्जा कर लेता है तो करीब 100 अरब डॉलर के इस बाजार पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा।
ताइवान को चीन में मिलाने की बात कह चुके हैं जिनपिंग
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग कह चुके हैं कि ताइवान के एकीकरण का काम पूरा होगा और इसके लिए उन्होंने ताकत के इस्तेमाल की संभावना को भी खारिज नहीं किया था। BBC के अनुसार, दूसरे विश्वयुद्ध के पास ताइवान और चीन अलग हुए थे। उस वक्त चीन में सरकार चला रही नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संघर्ष चल रहा था। 1949 में माओत्से तुंग की अगुवाई में कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और बीजिंग पर काबिज हो गई।
केवल 13 देश मानते हैं ताइवान को स्वतंत्र देश
कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता के बाद कुओमिंतांग के लोग चीन से भागकर ताइवान द्वीप पर चले गए। आगे चलकर यह ताइवान की महत्वपूर्ण पार्टी बन गई। चीन ने ताइवान को स्वतंत्र देश के तौर पर पहचान नहीं दी है और उसकी कोशिश रहती है कि बाकी देश भी उसे पहचान न दें। फिलहाल ताइवान और चीन के रिश्ते सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं। अभी दुनिया के सिर्फ 13 देश ताइवान को अलग और संप्रभु देश मानते हैं।