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#NewsBytesExplainer: म्यांमार में क्यों मची है उथल-पुथल और इसका भारत पर क्या असर होगा?
म्यांमार में सेना और विद्रोही बलों के बीच संघर्ष चल रहा है

#NewsBytesExplainer: म्यांमार में क्यों मची है उथल-पुथल और इसका भारत पर क्या असर होगा?

लेखन आबिद खान
Nov 18, 2023
06:51 pm

क्या है खबर?

भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में बीचे कुछ हफ्तों से सेना (जुंटा) और विरोधी दलों पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस (PDF) के बीच संघर्ष चल रहा है। इसमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं और हजारों को विस्थापित होना पड़ा है। म्यांमार की सैन्य सरकार विरोधी दलों पर कार्रवाई कर रही है तो विरोधी दलों ने कई सैन्य चौकियों पर कब्जा कर लिया है। आइए समझते हैं कि ये संघर्ष क्यों हो रहा है और इसका भारत पर क्या असर हो सकता है।

संघर्ष

क्यों हो रहा है संघर्ष?

दरअसल, म्यांमार में नवंबर, 2020 में आम चुनाव हुए थे। इसमें लोकप्रिय नेता आंग सान सू की पार्टी को जीत मिली थी और सेना द्वारा समर्थित पार्टी की हार हुई थी। चुनावों के बाद सेना ने नतीजों पर सवाल उठाए और चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। बाद में सू की और राष्ट्रपति विन मिंट समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और सेना ने तख्तापलट कर दिया। इसके बाद सेना ने देश में आपातकाल लगा दिया था।

वजह

सेना के खिलाफ क्यों भड़के दल?

सेना ने म्यांमार में कई बार आपातकाल को बढ़ा दिया। इसी साल 31 जुलाई को आपातकाल खत्म हो रहा था, लेकिन इसे दोबारा बढ़ा दिया। सेना ने पहले कहा था कि अगस्त, 2023 में देश में चुनाव करवाए जाएंगे। हालांकि, अगस्त में ही सेना ने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए और बिना किसी डर के मतदान कराने के लिए सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। इसके बाद चुनाव टाल दिए गए।

युद्ध

कैसे शुरू हुआ हालिया संघर्ष?

सैन्य शासन के खिलाफ और लोकतंत्र बहाली के समर्थन में 3 सशस्त्र दल साथ आए, जिसे 'ब्रदरहुड अलायंस' नाम दिया गया। 27 अक्टूबर को इन्होंने सेना के खिलाफ युद्ध की शुरुआत की। तारीख के आधार पर इसे 'ऑपरेशन 1027' नाम दिया गया। इन दलों ने कहा कि उनका मकसद नागरिकों की रक्षा करना, अपने इलाकों पर नियंत्रण हासिल करना और म्यांमार सेना के हमलों का जवाब देना है। दलों के मुताबिक, म्यांमार के आम लोग भी यहीं चाहते हैं।

दल

'ब्रदरहुड अलायंस' में कौन-कौन शामिल है?

'ब्रदरहुड अलायंस' में अराकन सेना (AA), म्यांमार नेशनल डिफेंस अलायंस आर्मी (MNDAA) और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA) शामिल हैं। इन्हें कई अन्य संगठनों का समर्थन भी प्राप्त है। MNDAA का गठन 1989 में हुआ था और इसमें लगभग 6,000 लड़ाके हैं। अराकन सेना के पास 35,000 से ज्यादा लड़ाके हैं, जो काचिन, राखीन और शान राज्यों में फैले हुए हैं। वहीं, TNLA में करीब 8,000 लड़ाके हैं, जो पलाउंग स्टेट लिबरेशन फ्रंट (PSLF) की सशस्त्र शाखा है।

क्या हुआ

संघर्ष में अब तक क्या-क्या हुआ है?

ब्रदरहुड एलायंस का दावा है कि उसने 135 सैन्य ठिकानों पर कब्जा कर लिया है और बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी जब्त कर लिया है। म्यांमार सेना ने कबूल किया है कि उसने चिन श्वे हॉ, पंसाई और हाउंग साई टाउन में अपना नियंत्रण खो दिया है। विद्रोही दलों ने 90 सैनिकों को मारने का दावा किया है। दूसरी ओर, सेना ने शान, चिन और करेनी राज्यों और सागांग के कई शहरों में सैन्य शासन लगा दिया है।

भारत

संघर्ष का भारत पर क्या असर हो रहा है?

संघर्ष की वजह से करीब 5,000 लोग सीमा पार कर मिजोरम में शरण लेने पर मजबूर हुए हैं। इसके अलावा म्यांमार सेना की चौकियों पर हमले के बाद सेना के 39 जवानों ने मिजोरम में शरण ली और मिजोरम पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। अब तक म्यांमार की सेना के 45 जवान आत्मसमर्पण कर चुके हैं। मिजोरम पुलिस ने इन्हें म्यांमार को सौंप दिया है। 2021 के बाद से अब तक म्यांमार के 31,364 लोग मिजोरम आए हैं।

असर

भारत के लिए और क्या है परेशानी?

म्यांमार संघर्ष से उत्तर-पूर्वी राज्यों में तनाव बढ़ने की आशंका है। दरअसल, म्यांमार के चिन जातीय समूह का मणिपुर में कुकी समुदाय के साथ मजबूत संबंध है। मणिपुर के कई मैतेई उग्रवादी समूहों की म्यांमार के सागांग क्षेत्र में उपस्थिति है। माना जाता है कि उन्हें सेना का संरक्षण प्राप्त है। विदेश मंत्रालय ने हाल ही में कहा था, "हम सीमा के नजदीक ऐसी घटनाओं से चिंतित हैं और शांति, स्थिरता और लोकतंत्र वापसी के लिए अपना आह्वान दोहराते हैं।"

प्लस

न्यूजबाइट्स प्लस

म्यांमार में सैन्य शासन और तख्तापलट का पुराना इतिहास है। 1948 में आजादी के बाद पहली बार 1962 में सैन्य तख्तापलट हुआ था। इसके बाद 5 दशक तक सैन्य तानाशाही बनी रही और इसी दौरान आंग सान सू की ने 1989 से 2010 तक लगभग 2 दशक नजरबंदी में गुजारे। 2011 में सेना ने अचानक सैन्य शासन हटा दिया और इसके बाद 2015 और 2019 में हुए चुनावों में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) ने जीत दर्ज की।