म्यांमार में क्यों हो रहे विरोध प्रदर्शन और क्यों अपने ही लोगों को मार रही सेना?

म्यांमार में सेना और आम नागरिकों के बीच टकराव जारी है और अब तक इस टकराव में 400 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अकेले शनिवार को सेना की गोलीबारी में 100 से अधिक लोग मारे गए और यह लगभग दो महीने से चल रहे इस संघर्ष का सबसे खूनी दिन रहा। आइए आपको बताते हैं कि म्यांमार में ये हिंसा क्यों हो रही है और सेना अपने ही नागरिकों को क्यों मार रही है।
इस साल 1 फरवरी को म्यांमार की सेना ने चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया था और सर्वोच्च नेता आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत कई शीर्ष नेताओं को हिरासत में लेकर देश में एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया था। तख्तापलट के बाद पूर्व जनरल म्यिंट स्वी को कार्यकारी राष्ट्रपति बना दिया गया था और सैन्य प्रमुख मिन आंग लाइंग ने देश का शासन अपने हाथों में ले लिया था।
म्यांमार में सर्वशक्तिमान रही सेना को सत्ता पर अपनी पकड़ ढीली होने की आशंका थी और इसलिए उसने तख्तापलट किया। दरअसल, पिछले साल 8 नवंबर को हुए आम चुनाव में जीत दर्ज करने वाली सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) पार्टी ने देश के शासन में सेना की हिस्सेदारी कम करने और आने वाले दशक में सेना को नागरिक शासन से पूरी तरह अलग करने का वादा किया था। दोनों पक्षों में इसी को लेकर टकराव था।
सरकार पर लगाम कसने के लिए सेना ने NLD पर 2020 आम चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया और चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की। जब चुनाव आयोग ने उसकी शिकायत को खारिज कर दिया तो उसने धांधली के इन्हीं आरोपों का हवाला देते हुए सरकार का तख्तापलट कर डाला। यह समझना मुश्किल नहीं है कि ये आरोप महज दिखावे के लिए लगाए गए थे और सेना का असली मकसद सरकार को उसकी शक्तियां कम करने से रोकना था।
सेना ने अपने आधिकारिक बयान में चुनावों में धांधली को आपातकाल की वजह बताया था और खुद को "लोकतंत्र का मसीहा" दिखाते हुए इसकी रक्षा करने की बात कही थी। उसने एक साल के अंतर चुनाव कराने का वादा भी किया है।
हालांकि म्यांमार के लोगों को सेना की ये दलीलें पची नहीं हैं और तख्तापलट के बाद से ही देश के कई शहरों और इलाकों में सैन्य शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। सेना ने इन प्रदर्शनों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है और कई मौकों पर निहत्थे लोगों पर गोलियां भी चलाई गई हैं। इस गोलीबारी में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है। सेना का आदेश न मानने वाले पुलिसकर्मियों को भारत में शरण भी लेनी पड़ी है।
गौरतलब है कि म्यांमार में सैन्य शासन और तख्तापलट का पुराना इतिहास है और 1948 में आजादी के बाद यहां पहली बार 1962 में सैन्य तख्तापलट हुआ था। इसके बाद यहां पांच दशक तक सैन्य तानाशाही बनी रही और इसी दौरान सू ची ने 1989 से 2010 तक लगभग दो दशक नजरबंदी में गुजारे। 2011 में सेना ने अचानक सैन्य शासन हटा दिया और इसके बाद 2015 और 2019 में हुए दो चुनावों में NLD ने बड़ी जीत दर्ज की।