सारा गिल्बर्ट: कोरोना वायरस के प्रकोप से दुनिया को राहत दिला सकती है यह महिला
पूरी दुनिया इन दिनों कोरोना वायरस (COVID-19) की वैक्सीन का इंतजार कर रही है। अलग-अलग देशों में कई कंपनियां इसे लेकर काम कर रही है। अभी तक के ट्रायल में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन ChAdOx1 सबसे आगे चल रही है। यह वैक्सीन कोरोना वायरस से बचाव में दोहरी सुरक्षा दे सकती है। आज हम आपको उस महिला वैज्ञानिक सारा गिल्बर्ट के बारे में बता रहे हैं, जिनकी देखरेख में यह वैक्सीन तैयार हो रही है।
बचपन से ही मेडिकल रिसर्चर बनना चाहती थीं सारा
प्रोफेसर सारा गिल्बर्ट ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट की उस टीम का नेतृत्व कर रही हैं, जो वैक्सीन बनाने में जुटी है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के मुताबिक, सारा बचपन से ही मेडिकल रिसर्चर बनना चाहती थीं, लेकिन 17 साल की उम्र तक उन्हें अंदाजा नहीं था कि उन्हें अपना सपना पूरा करने की शुरुआत कहां से करनी है। ईस्ट एंजलिया यूनिवर्सिटी से बायोलॉजी में डिग्री हासिल करने के बाद सारा ने हल यूनिवर्सिटी से अपने पीएचडी पूरी की।
1994 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़ीं सारा
सारा ने अपने करियर की शुरुआत ब्रुइंग रिसर्च फाउंडेशन के साथ की और बाद में अलग-अलग कंपनियों में काम करते हुए दवाएं बनाने के बारे में सीखा। साल 1994 में सारा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एड्रियन हिल्स लैब पहुंची। यहां उन्होंने जेनेटिक्स और मलेरिया पर काम शुरू किया। इसके बाद वो वैक्सीन बनाने के काम में जुट गईं। एक साथ तीन बच्चों (ट्रिपलेट्स) को जन्म देने के एक साल बाद 1999 में वो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बनीं।
2007 में सारा को मिला पहला प्रोजेक्ट
2004 में सारा यूनिवर्सिटी रीडर बनी और तीन साल बाद 2007 में उनके हाथ पहला फ्लू वैक्सीन का प्रोजेक्ट लगा। वेलकम ट्रस्ट की तरफ से मिले इस प्रोजेक्ट में सारा ने टीम का नेतृत्व किया था और इसके बाद उनका यह सफर शुरू हुआ।
"मुश्किल था नौकरी और पर्सनल लाइफ को बैलेंस करना"
सारा कहती हैं कि नौकरी और पर्सनल लाइफ के बीच संतुलन बनाना बहुत मुश्किल है और अगर आपको कोई मदद नहीं मिलती है तो यह अंसभव हो जाती हैं। उन्होंने कहा, "मेरे तीन बच्चे थे। उनकी नर्सरी की फीस मेरी सैलरी से ज्यादा हो जाती थी। इसलिए मेरे पार्टनर को अपना करियर छोड़कर बच्चों की देखभाल करनी पड़ी।" आज उनके तीनों बच्चे 21 साल के हो गए हैं और बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई कर रहे हैं।
सारा को मिली थी महज 18 हफ्ते की मैटरनिटी लीव
सारा आगे कहती हैं, "1998 में जब मेरे बच्चे हुए, तब मुझे सिर्फ 18 हफ्तों की मैटरनिटी लीव मिली। यह और भी मुश्किल हो जाता है जब आपको तीन नन्हें बच्चों की देखभाल करनी होती है। अब भले ही मैं एक लैब की प्रमुख हूं, लेकिन मैंने सिक्के का दूसरा पहलू भी देखा है।" उन्होंने बताया कि जब महिला वैज्ञानिक कोई 12 महीने की मैटरनिटी लीव लेती है तो यह रिसर्च प्रोजेक्ट पर काफी असर डालता है।
काम के दौरान करने पड़ते हैं कई त्याग
वैज्ञानिक होने की अच्छी बात होने के बारे में सारा कहती हैं कि इस काम में घंटे निर्धारित नहीं होते हैं। इसलिए कामकाजी मां के लिए कई काम आसान हो जाते हैं। हालांकि, वो यह बात भी मानती हैं कि कई त्याग करने पड़ते हैं।
महिलाओं के लिए ये हैं सारा का संदेश
जो महिलाएं परिवार के साथ रहते हुए विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हैं, उन्हें सलाह देते हुए सारा करती हैं एक बात की गांठ बांध लेनी चाहिए कि इस क्षेत्र में बहुत मेहनत की जरूरत होती है। वो कहती हैं कि जब आप काम कर रहे हो तब घर संभालने के लिए कोई होना चाहिए। वो आपका पार्टनर या रिश्तेदार हो सकते हैं। आपको यह स्पष्टता होनी चाहिए कि आपको क्या चाहिए और आपके पास योजना होनी चाहिए।
सारा के बच्चों ने लिया था वैक्सीन के ट्रायल में हिस्सा
सारा कहती हैं कि अब उनके बच्चे बड़े हो गए हैं, लेकिन उनमें से कोई भी वैज्ञानिक नहीं बनना चाहता। यह बात भी बता देना जरूरी है कि सारा के तीनों बच्चों ने कोरोना वायरस के इलाज के लिए तैयार की गई एक प्रयोगात्मक वैक्सीन के ट्रायल में भाग लिया था। यह वैक्सीन उनकी मां ने तैयार की थी। सारा ने कहा कि इसे लेकर वो चिंतित नहीं थीं क्योंकि वो पहले कई ऐसे ट्रायल कर चुकी थीं।