तालिबान से मिला था लादेन का बेटा, अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों पर रोक नहीं- UN रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि मारे जा चुके आतंकी ओसामा बिन लादेन के बेटे ने पिछले साल अक्टूबर में अफगानिस्तान जाकर तालिबानी नेताओं से मुलाकात की थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि तालिबान ने अफगानिस्तान की जमीन पर विदेशी आतंकियों की गतिविधियों को सीमित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं और ये आतंकी अब पहले से ज्यादा आजादी महसूस करते हैं।
इसी सप्ताह जारी हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एनालिटिकल सपोर्ट एंड सेंक्शन मॉनिटरिंग टीम की 29वीं रिपोर्ट में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान और उसके पड़ोसी देशों की सुरक्षा स्थिति पर जानकारी दी गई है। UNSC हर साल ऐसी दो रिपोर्ट्स जारी करती है। इनका मकसद अल कायदा, इस्लामिक स्टेट और दूसरे आतंकी संगठनों पर लगाए गई पाबंदियों को मजबूत करना और उनका पालन सुनिश्चित करना होता है।
रिपोर्ट के अनुसार, अल कायदा और तालिबान के रिश्ते स्पष्ट हैं। इसमें बताया गया है कि तालिबान के कब्जे के बाद लादेन के लिए सुरक्षा मुहैया कराने वाला अमिन मोहम्मद उल हक साम खान वापस अफगानिस्तान स्थित अपने घर लौट आया है। अल कायदा इस समय सोची-समझी रणनीति के तहत तालिबान को लेकर चुप्पी साधे हुए है ताकि अफगानिस्तान में उसकी सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने में किसी तरह की परेशानी न उठानी पड़े।
रिपोर्ट बताती है कि अल कायदा के पास इस समय दूसरे देशों में बड़े हमले करने की क्षमता नहीं है। इस समय अल कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट (AQIS) का नेतृत्व ओसामा महमूद कर रहा है और इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, म्यांमार और पाकिस्तान के 200-400 आतंकी शामिल हैं। इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्लामिक स्टेट खोरासन (ISIS-K) में आतंकियों की संख्या बढ़ी है। पहले इसमें करीब 2,200 आतंकी थे और अब इनकी संख्या 4,000 हो गई है।
पिछले महीने आई संयुक्त राष्ट्र की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने पुरानी सरकार, सेना और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षाबलों के साथ काम करने वाले दर्जनों अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया है। इसमें कहा गया था कि पुरानी सरकार और अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के साथ काम करने वाले अधिकारियों को माफ करने की घोषणा के बाद भी तालिबान उनकी हत्याएं कर रहा है और दूसरी यातनाएं दे रहा है।
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अफगानिस्तान में मार्च, 2022 तक दो करोड़ से अधिक लोग खाद्य सुरक्षा के 'आपातकालीन' स्तर का सामना कर रहे हैं। पांच साल से कम उम्र के आधे बच्चों के सामने कुपोषण का संकट मंडरा रहा है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही संकट के दौर से गुजर रही थी और तालिबान के कब्जे के बाद हालात और बदतर हो गए हैं। कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इस पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं।