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    तालिबान ने लड़कों के लिए खोले स्कूल, लड़कियों को नहीं दी कक्षाओं में जाने अनुमति

    तालिबान ने लड़कों के लिए खोले स्कूल, लड़कियों को नहीं दी कक्षाओं में जाने अनुमति
    लेखन भारत शर्मा
    Sep 18, 2021, 02:40 pm 1 मिनट में पढ़ें
    तालिबान ने लड़कों के लिए खोले स्कूल, लड़कियों को नहीं दी कक्षाओं में जाने अनुमति
    तालिबान ने सिर्फ लड़कों के लिए खोले स्कूल।

    अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद महिलाओं को भी काम और पढ़ाई करने की अनुमति देने का वादा करने वाला तालिबान फिर से अपने वादे से मुकर गया है। तालिबान की अंतरिम सरकार के नए शिक्षा मंत्रालय ने सभी माध्यमिक विद्यालयों को शनिवार से फिर से खोलने का निर्देश दिया है। चौंकाने वाली बात यह है कि आदेशों में केवल पुरुष छात्रों का उल्लेख किया गया है, जबकि छात्राओं के स्कूल जाने के संबंध में कोई जिक्र नहीं किया।

    तालिबान ने किया था महिलाओं को अधिकार देने का वादा

    तालिबान ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद उसने अपना उदार चेहरा दिखाने का प्रयास करते हुए महिलाओं को शरिया कानून के हिसाब से काम करने का अधिकार देने की बात कही थी। तालिबान ने कहा था कि वह महिलाओं को अपनी व्यवस्था के भीतर काम करने और पढ़ने की अनुमति देंगे। इसके बाद उसने 7 सितंबर को अपनी अंतरिक सरकार का ऐलान किया था, लेकिन अब वह अपने वादों से मुकर रहा है।

    तालिबान ने स्कूलों को लेकर जारी किया यह आदेश

    हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, तालिबान के नए शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर सरकारी और निजी स्कूलों के साथ-साथ आधिकारिक मदरसा शनिवार से खुले रहेंगे। सभी शिक्षकों और पुरुष छात्रों को स्कूल जाना चाहिए। हालांकि, इस आदेश में छात्राओं के स्कूल जाने की बात नहीं कही गई है। ऐसे में अफगानिस्तान की छात्राओं में शिक्षा को लेकर बड़ी चिंता बढ़ गई है।

    महिलाओं को नहीं दी जा रही है काम करने की अनुमति

    बता दें वर्तमान में अफगानिस्तान के कुछ प्रांतों में स्वास्थ्य विभागों, अस्पतालों और शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को छोड़कर अन्य प्रांतों में उन्हें काम पर जाने की अनुमति नहीं दी गई है। महिलाएं इसको लेकर तालिबान का पुरजोर विरोध कर रही है।

    यूनिसेफ ने किया तालिबान के स्कूल खोलने के फैसले का स्वागत

    तालिबान के अफगानिस्तान में स्कूलों को फिर से खोलने के फैसले का यूनिसेफ (UNICEF) ने भी स्वागत किया है। यूनिसेफ प्रमुख हेनरीटा फोर ने कहा, "अफगानिस्तान में स्कूलों को खोलना अच्छा कदम है, लेकिन हम इस बात से बहुत चिंतित हैं कि लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। कोरोना महामारी से पहले भी 42 लाख बच्चों का स्कूल में दाखिला नहीं था। उनमें से लगभग 60 प्रतिशत लड़कियां हैं। यह गंभीर स्थिति है।"

    लड़कियों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए- फोर

    फोर ने कहा, "लड़कियां पीछे नहीं रह सकतीं और न ही छोड़ी जानी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है बड़ी लड़कियों सहित सभी लड़कियां बिना किसी और देरी के अपनी शिक्षा फिर से शुरू कर सकें। इसके लिए हमें शिक्षण फिर से शुरू करने के लिए महिला शिक्षकों की आवश्यकता है।" उन्होंने कहा, "पिछले दो दशकों में देश में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। स्कूलों की संख्या तिगुनी हो गई और बच्चों की संख्या 95 लाख पर पहुंच गई।"

    शिक्षा विशेषज्ञों ने जताई महिलाओं के भविष्य पर चिंता

    विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों ने महिला शिक्षकों और छात्रों के भविष्य को लेकर चिंता जताई है। इसको लेकर तालिबान के नवनियुक्त कार्यवाहक शिक्षा मंत्री शेख अब्दुलबाकी हक्कानी ने कहा है कि शरिया कानून के तहत शैक्षिक गतिविधियां संचालित होंगी।

    तालिबान ने बंद किया महिला मामलों के मंत्रालय

    बता दें कि गत दिनों अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात ने महिला मामलों के मंत्रालय को बंद कर दिया था और उसकी जगह प्रोत्साहन और पुण्य के प्रचार तथा बुराई की रोकथाम मंत्रालय शुरू किया है। ​इसी तरह पिछले सप्ताह निजी विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों को खोला गया था, लेकिन कक्षाओं को लिंग के आधार पर विभाजित किया था। इसमें लड़कियों को उच्च शिक्षा से वंचित किया गया है। यह बड़ी चिंता का कारण है।

    तालिबान ने पिछले शासन पर महिलाओं पर बरती थी विशेष सख्ती

    बता दें तालिबान ने अफगानिस्तान में अपने 1996 से 2001 तक के शासनकाल के दौरान महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया था। इसके अलावा महिलाओं के पुरुष अभिभावक के बिना बाहर निकलने पर भी रोक लगाई थी। ​ नमाज पढ़ने के समय को निरंकुश पूर्वक लागू किया गया था और पुरुषों को दाढ़ी बढ़ाने के लिए मजबूर किया गया था। आदेश का उल्लंघन करने वालों को कोड़े मारे जाते थे और सार्वजनिक तौर पर फांसी दी जाती थी।

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