कैसे दुनिया के बड़े शहरों में फिर से रफ्तार पकड़ रहा है सार्वजनिक परिवहन?

बीते साल चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया था। अब धीरे-धीरे पाबंदियां खत्म होने के बाद दुनिया पहले वाली रफ्तार की तरफ लौट रही है, लेकिन इसमें काफी समय लगेगा। साथ ही कोरोना का खतरा हर वक्त मौजूद रहेगा। इसी खतरे के बीच दुनिया के कई शहरों में सार्वजनिक परिवहन फिर से बहाल कर दिया गया है। आइये, जानते हैं कि इन शहरों में सार्वजनिक परिवहन कैसे रफ्तार पकड़ रहा है।
अमेरिकी शहर न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस संकट से पहले हर हफ्ते 55 लाख लोग सबवे का इस्तेमाल करते थे। लॉकडाउन के दौरान इनमें से 90 प्रतिशत लोगों ने इससे सफर करना बंद कर दिया। अब शहर में संक्रमण की रफ्तार कुछ धीमी हुई है तो लोगों ने फिर से सफर शुरू किया है, लेकिन अभी पहले की तुलना में केवल 20 प्रतिशत लोग ही इसमें यात्रा कर रहे हैं। हालांकि, दूसरे कई शहरों में यह संख्या ज्यादा है।
न्यूयॉर्क में जहां पहले की तुलना में 20 प्रतिशत लोग फिर से सबवे की तरफ लौट आए हैं, वहीं पेरिस और दूसरे शहरों में यह आंकड़ा अधिक है। पेरिस में 45 प्रतिशत, बीजिंग में 59 प्रतिशत और टोक्यो में 63 प्रतिशत लोग सबवे या मेट्रो से सफर कर रहे हैं। अगर बर्लिन में बस और मेट्रो से यात्रा करने वालों को जोड़ लिया जाए तो यह कोरोना वायरस संकट से पहले सफर करने वालों का 65 फीसदी होता है।
इन शहरों में देखा जा सकता है कि सार्वजनिक परिवहन से संक्रमण फैलने का जितना खतरा समझा जा रहा था, असल में उतना डर नहीं है। जहां-जहां संक्रमण काबू में आता जाएगा, वहां पर लोग पहले की तरह ही सार्वजनिक परिवहन इस्तेमाल करने लगेंगे।
न्यूयॉर्क टाइम्स के एक विश्लेषण में पता चला कि अगर सफर करते समय लोग मास्क पहनते हैं और एक जगह एक समय में कम लोग इकट्ठा होते हैं तो सार्वजनिक संक्रमण का बड़ा स्त्रोत नहीं बन सकता। विश्लेषण में यह भी पता चला कि सार्वजनिक परिवहन से जुड़ा कोई भी 'सुपर स्प्रेडर' सामने नहीं आया है। सुपर स्प्रेडर उस संक्रमित व्यक्ति को कहा जाता है, जो अपने संपर्क में आने वाले कई अन्य लोगों तक यह वायरस पहुंचा देता है।
पेरिस में मई से जून के बीच 386 संक्रमण के कलस्टर बने थे, लेकिन इनमें से एक भी सार्वजनिक परिवहन से जुड़ा नहीं था। इसी तरह टोक्यो, जहां भीड़ से भरी मेट्रो आम बात हैं, यहां मेट्रो से जुड़ा एक भी कलस्टर नहीं बना।
हालांकि, मौजूदा कोरोना वायरस संकट के जारी रहने के दौरान बसों और ट्रेन में सफर करने के खतरे का सटीक अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है। इनमें काम करने वाले लोग सबसे ज्यादा संक्रमण की चपेट में आते हैं। न्यूयॉर्क की बात करें तो यहां 4,000 से ज्यादा कर्मचारियों में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई थी। इनमें से 130 की मौत भी हो गई थी। न्यूयॉर्क अमेरिका में कोरोना वायरस का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट था।
कई देशों में सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के लिए मास्क जरूरी कर दिया गया है। वहीं कई देशों में कोरोना वायरस ट्रेकर ऐप्स का सहारा लिया जा रहा है। इसके अलावा सफर के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और वाहनों को दिन में कई बार सैनिटाइज करने पर जोर दिया जा रहा है। न्यूयॉर्क में सबवे में सफर करने वाले 90 प्रतिशत लोग मास्क पहन रहे हैं। प्रशासन भी वहां मुफ्त में मास्क बांट रहा है।
इन सब बातों के साथ-साथ वेंटिलेशन पर भी खासा जोर दिया जा रहा है। न्यूयॉर्क में सबवे का वेंटिलेशन सिस्टम काफी मजबूत है और यह हर घंटे कम से कम 18 बार साफ हवा को अंदर लाता है। यह रेस्टोरेंट और ऑफिस की तुलना में तीन गुना से ज्यादा है। वहीं टोक्यो में मेट्रो में सफर करने पर कड़ी पाबंदियां लागू नहीं की गई है, लेकिन यहां स्टेशन इमारतों की खिड़की खुली रखी जाती है।
चीन में एक सर्वे में सामने आया था कि अगर कोई कोई संक्रमित व्यक्ति सफर कर रहा है तो उसके बिल्कुल पास वाली सीट पर बैठे यात्री के संक्रमित होने का खतरा हर घंटे के साथ 1.3 प्रतिशत बढ़ता जाता है। ऐसे में दूर-दूर बैठकर सफर करने और मास्क पहनने जैसी सावधानियां बरतकर यात्रा को सुरक्षित बनाया जा सकता है। साथ ही वेंटिलेशन आसपास की हवा को साफ रखने में मदद कर सकता है।