कोरोना वायरस: इंसानी ट्रायल में पहुंची संभावित वैक्सीनों की मौजूदा स्थिति क्या है?

कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रकोप को रोकने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। इन्हें बनाने के लिए सरकारें, संयुक्त राष्ट्र, बड़ी दवा कंपनियां और बिल गेट्स जैसे परोपकारी लोग आर्थिक मदद दे रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, अभी तक इसकी 147 संभावित वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें से अब तक 17 ऐसी हैं, जो इंसानी ट्रायल तक पहुंच चुकी हैं। आइये, इनकी मौजूदा स्थिति के बारे में जानते हैं।
वैक्सीन के जरिये हमारे इम्युन सिस्टम में कुछ मॉलिक्यूल्स, जिन्हें वायरस का एंटीजंस भी कहा जाता है, भेजे जाते हैं। आमतौर पर ये एंटीजंस कमजोर या निष्क्रिय रूप में होते हैं ताकि हमें बीमार न कर सकें, लेकिन हमारा शरीर इन्हें गैरजरूरी समझकर एंटी-बॉडीज बनानी शुरू कर देता है ताकि उनसे हमारी रक्षा कर सके। आगे चलकर अगर हम उस वायरस से संक्रमित होते हैं तो एंटी-बॉडीज वायरस को मार देती हैं और हम बीमार होने से बच जाते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि इस साल के अंत तक कोरोना वायरस की वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। हालांकि, विशेषज्ञ उनकी बात से सहमत नहीं है। उनका मानना है कि अगले साल के मध्य तक वैक्सीन लोगों के पास पहुंचेगी।
हर वैक्सीन को इंसानी ट्रायल में चार चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। अगर कोई वैक्सीन चारों चरणों को पार कर पाती है, तभी उसे बाजार में लॉन्च करने की अनुमति मिलती है। पहले चरण में संभावित वैक्सीन को 20-100 लोगों पर जांचा जाता है। इसमें वैक्सीन की खुराक, इंसान के लिए वह सुरक्षित है या नहीं आदि बातें देखी जाती हैं। लगभग 70 फीसदी वैक्सीन ही पहले चरण से आगे बढ़ पाती हैं।
दूसरे चरण में सैकड़ों लोगों पर इसका ट्रायल होता है। इसमें इसकी क्षमता और इसके फायदों का अध्ययन किया जाता है। केवल एक तिहाई वैक्सीन ही यह चरण पार कर पाती हैं। तीसरे चरण में यह देखा जाता है कि कोई वैक्सीन बड़ी जनसंख्या को किसी बीमारी से बचा सकती है या नहीं। इस चरण से केवल एक चौथाई वैक्सीन चौथे चरण में जाती हैं। चौथे चरण में हजारों लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया जाता है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रोजेनेका मिलकर इंग्लैंड में एक संभावित वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। ट्रायल में सबसे आगे चल रही यह वैक्सीन तीसरे चरण में पहुंच चुकी है। अगस्त में इसके तीसरे चरण के ट्रायल शुरू हो जाएंगे। एस्ट्रोजेनेका के CEO ने पिछले महीने बताया था कि यह वैक्सीन एक साल तक इंसानों को कोरोना वायरस से बचा सकती है। आज से पहले ऐसी किसी भी वैक्सीन को इंसानों के लिए इस्तेमाल करने की मंजूरी नहीं मिली है।
सिनोफार्म- चीन की सरकारी कंपनी सिनोफार्म द्वारा तैयार की जा रही वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल शुरू हो चुके हैं। कंपनी का कहना है कि यह हमारे शरीर में बड़ी मात्रा में एंटीबॉडीज तैयार करती है, जो वायरस से बचाने में मददगार होती है। मॉडर्ना- अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के साथ मिलकर वैक्सीन तैयार कर रही है। कंपनी ने अभी दूसरे चरण के नतीजे जारी नहीं किए हैं, लेकिन तीसरा चरण इसी महीने शुरू हो जाएगा।
चीनी कंपनी केनसिनो और बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी द्वारा विकसित की जा रही यह वैक्सीन तीसरे चरण में पहुंच गई है। केनसिनो ने दुनिया में सबसे पहले मार्च में ही संभावित वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर दिया था। अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स को महामारी से निपटने के लिए बिल गेट्स से फंडिंग मिली है। कंपनी ने मई में पहले चरण के ट्रायल शुरू किए थे, जिनके नतीजे इस महीने के आखिर तक आ सकते हैं।
अमेरिकी कंपनी फाइजर अपनी जर्मन साझेदार बायोनटेक के साथ मिलकर mRNA वैक्सीन तैयार करने में जुटी है। मई में कंपनी ने 360 लोगों पर चार अलग-अलग वैक्सीन के ट्रायल शुरू किए थे। सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली वैक्सीन को सितंबर में हजारों लोगों पर ट्रायल किया जाएगा। कंपनी को उम्मीद है कि वह अक्टूबर तक वैक्सीन को बाजार में उतार सकती है। इंसानी ट्रायल के शुरुआती चरण में इस वैक्सीन ने उत्साहजनक नतीजे दिए हैं।
सिनोवैक चीनी कंपनी सिनोवेक की संभावित वैक्सीन पहले और दूसरे चरण में है। कंपनी ने कहा कि अधिकतर वॉलेंटियर में इस वैक्सीन की वजह से एंटीबॉडीज देखी गई हैं। लंदन का इंपीरियल कॉलेज भी वैक्सीन विकसित करने की रेस में है। कॉलेज की वैक्सीन पहले और दूसरे चरण में है। यह फाइजर और मॉडर्ना की तरह mRNA वैक्सीन तैयार कर रहा है। अमेरिकी कंपनी इनिवियो की वैक्सीन भी इंसानी ट्रायल के पहले चरण में पहुंच चुकी है।
चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल बायोलॉजी की वैक्सीन पहले चरण में पहुंच चुकी है। इसी तरह दक्षिण कोरिया के जेनेक्सिन कंसोर्टियम की वैक्सीन पहले चरण की तैयारी कर रही है। यह दक्षिण कोरिया की पहली संभावित वैक्सीन है। रूस के गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट की वैक्सीन भी पहले चरण में है। जून में 38 लोगों पर इसका ट्रायल शुरू हुआ था। ऑस्ट्रेलिया की वैक्सीन (Vaxine) का पहले चरण का ट्रायल इसी महीने शुरू हुआ है।
चीन की क्लोवर बायोफार्मास्यूटिकल इंग्लैंड की ग्लेक्सोस्मिथक्लाइन (GSK) और अमेरिका की डायनावैक्स के साथ मिलकर वैक्सीन तैयार कर रही है। ऑस्ट्रेलिया में इसका पहला चरण पिछले महीने शुरू हुआ था। चीन की Anhui Zhifei Longcom को जून में ट्रायल की अनुमति मिली थी। इसके बारे में और ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है। वहीं चीनी सेना की एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस की mRNA वैक्सीन को पिछले महीने ट्रायल की अनुमति मिल गई थी।
इसी तरह जर्मनी की क्योरवैक ने कहा था कि वह जून के अंत से ट्रायल शुरू कर देगी। हालांकि, उसके बाद की जानकारी सामने नहीं आई है। जर्मनी की सरकार ने कंपनी में भारी निवेश किया है।