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साहस की मिसाल बनीं अंतिम चरण के कैंसर से पीड़ित महिला, अंतिम दिनों में खोला कैफे
कैंसर पीड़ित जापानी महिला ने खोला कैफे

साहस की मिसाल बनीं अंतिम चरण के कैंसर से पीड़ित महिला, अंतिम दिनों में खोला कैफे

लेखन सयाली
Jul 12, 2025
07:15 pm

क्या है खबर?

कैंसर सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है। इस बीमारी से पीड़ित होने के बाद ज्यादातर लोग हौंसला हार जाते हैं और अपने हालातों से समझौता कर लेते हैं। हालांकि, जापान की रहने वाली एक महिला कैंसर पीड़ित होने के बाद भी साहस की मिसाल बन गई हैं। दरअसल, उन्होंने निदान के बाद एक कैफे खोला है, जिसमें काम करने वाले सभी कर्मचारी विकलांग हैं।

मामला

डॉक्टर ने कहा था जीने के लिए बचे हैं केवल 18 महीने 

महिला का नाम युकी इनौए है, जिन्हें अंतिम चरण का कैंसर है। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में विकलांग लोगों को काम देने के लिए एक कैफे खोला है। अप्रैल 2022 में 54 वर्षीय इनौए को चौथे चरण के सर्वाइकल कैंसर का पता चला था। कैंसर तेजी से उसकी ग्रंथियों और हड्डियों तक फैल गया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि सर्जरी के लिए देर हो चुकी है और अनुमान लगाया कि उसके पास जीने के लिए केवल 18 महीने बचे हैं।

प्रेरणा

कैसे मिली थी कैफे खोलने की प्रेरणा?

इनौए निदान के बाद से ही कैंसर से साहसपूर्वक लड़ीं और अपनी सकारात्मकता बनाए रखी। इसी बीच उन्हें सुझाव आया कि वह अपने बचे हुए जीवन का सदुपयोग कैसे कर सकती हैं। तभी उन्हें अपनी भतीजी मियु की याद आई, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं। उन्होंने बताया कि मियु बचपन से ही कैफे में काम करने का सपना देखती थीं, लेकिन उन्हें नौकरी पाने में काफी संघर्ष करना पड़ा।

कैफे

कैफे का नाम रखा 'स्माइल'

मियु के सपने को पूरा करने के लिए इनौए ने पिछले साल नवंबर में अपना कैफे खोला, जो टोक्यो में स्थित है। उन्होंने कैफे का नाम 'स्माइल' रखा और मियु के साथ-साथ डाउन सिंड्रोम जैसी अन्य विकलांगताओं से ग्रस्त लोगों को भी नौकरी प्रदान की। कैफे का नाम इनौए के जीवन सिद्धांत को दर्शाता है, क्योंकि वह चाहती हैं कि हर कोई काम करे और मुस्कुराए। कर्मचारियों की सुविधा के लिए इस कैफे में केवल 2 ही चीजें मिलती हैं।

कर्मचारी

कर्मचारियों को बहुत पसंद है अपना काम

इनौए कैफे की हर सीट पर एक खास खिलौना रखती हैं, जिससे कर्मचारियों को भोजन परोसने में आसानी होती है। जब उन्हें किसी भी कर्मचारी को आर्डर देने के लिए कहना होता है तो वह बस इतना बोलती हैं, "बिल्ली की मेज और खरगोश की मेज पर खाना ले जाओ।" मियु और अन्य कर्मचारियों को अपना काम बहुत पसंद है और उन्हें खुश देखकर इनौए के जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाता है।

इनौए

अंतिम समय तक चलाना चाहती हैं कैफे

अब इनौए के निदान को 3 साल बीत चुके हैं और वह अभी भी जीवित हैं और आशावादी रूप से कैंसर से लड़ रही हैं। इसके साथ ही वह डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों के कल्याण के लिए चलाए गए अभियानों में भी भाग लेती हैं। उनके कैफे में अक्सर अन्य कैंसर पीड़ितों की बैठक होती रहती हैं, जो इस बीमारी से उभरने की आस लगाए बैठे हैं। इनौए मरते दम तक इस कैफे को चलाना चाहती हैं।