एशियन पैरा खेल: कौन हैं शीतल देवी, जिन्होंने बिना हाथ के तीरंदाजी में जीता स्वर्ण पदक?
एशियाई पैरा खेल 2023 में जम्मू कश्मीर की रहने वाली शीतल देवी ने कमाल कर दिया है। दोनों बाजुएं न होने के बाद छाती के सहारे दांतो और पैर से तीरंदाजी करने वाली इस खिलाड़ी ने एक ही संस्करण में 2 स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं। 16 साल की इस खिलाड़ी ने महिलाओं की युगल स्पर्धा में रजत पदक भी जीता है। वह ऐसा करने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बनीं हैं। आइए उनके बारे में जानते हैं।
कैसा रहा है शीतल का प्रदर्शन?
शीतल ने राकेश कुमार के साथ मिलकर एशियाई खेल की मिश्रित कंपाउंड इवेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया था। बुधवार को उन्होंने टीम इवेंट में रजत पदक जीता था। व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी स्पर्धा में उन्होंने सिंगापुर की अलीम नूर सयाहिदा को 144-142 से हराकर दूसरा स्वर्ण पदक अपने नाम किया। उन्होंने शुक्रवार को भारत के लिए हांगझोऊ में हो रहे इस खेल में पहला पदक जीता। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने वाली बिना हाथों वाली पहली महिला तीरंदाज हैं।
फोकोमेलिया बीमारी से पीड़ित हैं शीतल
शीतल को जन्म से ही फोकोमेलिया नाम की बीमारी है। इस बीमारी में अंग का विकास नहीं होता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वह धनुष ठीक से उठा नहीं पाती थीं, लेकिन कुछ महीने उन्होंने लगातार अभ्यास किया और इसके बाद यह उनके लिए आसान हो गया। शीतल बताती हैं कि जब लोगों को पता चलता था कि उनके हाथ नहीं हैं तो उनके चेहरे के भाव बदल जाते थे, इसके बावजूद उनके घरवालों ने पूरा साथ दिया।
2 साल पहले शुरू किया था अभ्यास
शीतल 2 साल पहले धनुष और बाण के साथ अभ्यास करना शुरू किया था। उन्होंने साल 2021 में पहली बार किश्तवाड़ में भारतीय सेना के एक युवा प्रतियोगीता में भाग लिया था। उन्होंने वहां कोच का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद सेना ने उनके कृत्रिम हाथ के लिए बैंगलोर में मेजर अक्षय गिरीश मेमोरियल ट्रस्ट से संपर्क किया था। कृत्रिम हाथ उन्हें फिट नहीं हो पाया। इसके बाद उन्होंने शरीर के ऊपरी हिस्सों को मजबूत करने पर जोर दिया।
पहली बार कोच ने बिना हाथ वाली खिलाड़ी को दी ट्रेनिंग
उनकी कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान ने कभी ऐसे तीरंदाज को ट्रेनिंग नहीं दी थी, जिनके हाथ नहीं हो। शीतल की मेहनत को देखकर उन्होंने हां कर दिया। उन्होंने ही तीर को छोड़ने में मदद करने के लिए उनके मुंह को ट्रिगर बनाने के लिए कहा। इसके बाद वह रोज 50 से 100 तीर चलाने लगी थीं। धीरे-धीरे ये संख्या 300 तक पहुंच गई थी। 6 महीने बाद उन्होंने पैरा ओपन नेशनल्स में रजत पदक अपने नाम कर लिया।