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    कर्नाटक: झोपड़ी में रहने को मजबूर 2018 एशियन पैरा गेम्स मेडल विजेता दिव्यांग एथलीट्स

    कर्नाटक: झोपड़ी में रहने को मजबूर 2018 एशियन पैरा गेम्स मेडल विजेता दिव्यांग एथलीट्स

    लेखन Neeraj Pandey
    Jun 23, 2020
    05:14 pm

    क्या है खबर?

    भारत में एथलीट्स के मेडल जीतने पर लोग उन्हें खूब सम्मान देते हैं, लेकिन कुछ समय बाद ही लोग उनके बारे में भूल जाते हैं।

    दिव्यांग धाविकाएं रक्क्षिता राजू और राधा वेंकटेश को 2018 एशियन पैरा गेम्स में मेडल जीतने के बाद खूब सम्मान दिया गया था, लेकिन आज वे राज्य सरकार की मदद की राह देख रही हैं।

    टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बातचीत में उन्होंने अपना दर्द दिखाया और बताया कि वे कितनी मुश्किल में हैं।

    मौजूदा हालात

    मदद नहीं मिलने पर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही हैं रक्क्षिता

    गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की पहली दिव्यांग महिला एथलीट रक्क्षिता फिलहाल साई बेंगलुरु से ट्रेनिंग ब्रेक लेकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही हैं।

    उन्होंने TOI को बताया कि उन्हें राज्य सरकार से अब तक कोई मदद नहीं मिली है और अच्छे जीवन के लिए उन्हें मदद की जरूरत है।

    18 वर्षीया रक्क्षिता ने कक्षा नौ में 80 प्रतिशत से ज़्यादा अंक हासिल किए थे और वह पढ़ने के साथ ही खेल में भी अच्छा करना चाहती हैं।

    मदद की जरूरत

    सप्लीमेंट्स और अच्छी ट्रेनिंग के लिए चाहिए मदद- रक्क्षिता

    जनवरी में राधा और रक्क्षिता को साई में एंट्री मिली थी और वे ओलंपियन ओपी जैसा के साथ ट्रेनिंग कर रही हैं।

    रक्क्षिता ने कहा, "हमें सप्लीमेंट्स और अच्छी ट्रेनिंग के लिए मदद की जरूरत है। ओलंपिक काफी कठिन होने वाला है तो मैं केन्या जैसे देशों में ट्रेनिंग करना चाहती हूं। साई बेंगलुरु में हमें रहने की जगह मिली है, लेकिन नहीं पता कि यह कब तक चल पाएगा क्योंकि अन्य पैरा एथलीट्स गांधीनगर में ट्रेनिंग कर रहे हैं।"

    संघर्ष

    कम उम्र में ही हो गई थी रक्क्षिता के माता-पिता की मौत

    रक्क्षिता ने 2017 में एथलेटिक्स को गंभीरता से लेना शुरु किया था और उनके पीटी टीचर मंजूनाथ ने उन्हें दौड़ पर फोकस लगाने के लिए प्रेरित किया था।

    उन्होंने बताया, "मैंने नेशनल ब्लाइंड स्कूल मीट्स में हिस्सा लिया और राहुल सर गाइड रनर के तौर पर आते थे। इसके बाद उन्होंने मुझे ट्रेनिंग देना शुरु किया और मैं बेंगलुरु चली आई।"

    कम उम्र में ही रक्क्षिता के माता-पिता की मौत हो गई थी।

    राज्य सरकार की मदद

    एथलीट्स को चाहिए राज्य सरकार की मदद- राहुल

    राहुल ने आगे बताया कि दोनों एथलीट्स को केंद्र सरकार द्वारा 30 लाख रूपये की मदद मिली थी और इसकी फिक्स डिपॉजिट से मिल रहे ब्याज से उनका काम चल रहा है।

    उन्होंने कहा, "हर महीने उन्हें गाइड रनर और सप्लीमेंट्स के लिए 20 हजार रूपयों की जरूरत होती है। सौभाग्य है कि पिछले 4-5 महीनों में गोस्पोर्ट्स ने सहायता प्रदान की है, लेकिन उन्हें राज्य सरकार के समर्थन की जरूरत है।"

    घर की स्थिति

    छोटी सी झोपड़ी में रहते हैं एशियन मेडलिस्ट के माता-पिता- राहुल

    रेलवे कर्मचारी राहुल ने रक्क्षिता और राधा की काफी मदद की है, लेकिन वह इन दोनों को नहीं मिल रहे मदद से निराश हैं।

    उन्होंने बताया, "मैं राधा को उसके घर छोड़ने गया और एक छोटी सी झोपड़ी के घर को देखकर चौंक गया। एशियन मेडल जीत चुकी एथलीट के माता-पिता किसान हैं और काफी गरीबी में जी रहे हैं। कार पार्क करने के बाद हमें पैदल चलकर जाना पड़ा था।"

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